Thursday, September 29, 2016

पितरों को खीर

व्यंग्य
पितरों को खीर  
ब्रजेश कानूनगो  

पिताजी को खीर बिलकुल पसंद नहीं थी. अपने जीवन काल में पशु चिकित्सक होने के बावजूद उन्होंने पशु पालकों से कभी दूध अथवा मिल्क प्रोडक्ट स्वीकार नहीं किया. इस मामले में वे थोड़े ईमानदार टाइप के व्यक्ति थे. माँ का इसको लेकर कई बार उनसे विवाद भी हुआ था. बहरहाल, उनकी ना पसंद के बावजूद श्राद्ध पर उन तक खीर पहुंचानी जरूरी थी.

इसके लिए परम्परानुसार भोजन बनाकर एक पंडित जी को जिमाना होता है. कुछ भोजन गाय, कुत्ते और कौए के लिए निकाल कर प्रेम से उन्हें भी खिलाना अनिवार्य माना गया है.

श्राद्ध के दिन हमें भी यह करना जरूरी था. इसके करने से माँ की मोतिया बिन्द ग्रसित आँखों में संतोष की जो चमक दिखाई देती है, वह हमारे मन में अद्भुत मिठास पैदा करती है और वह श्राद्ध पर बनाई गयी खीर से कहीं मीठी होती है.

हालांकि श्राद्ध कर्म में इन दिनों कुछ कठिनाइयां भी सामने आती हैं. पुराने जमाने की तरह ‘भोजन भट्ट’ किस्म के पंडितजी अब कम ही मिलते हैं. जो मिलते हैं वे बेचारे कहाँ–कहाँ जाएँ और कितनी खीर पियें. हमारे लिए यह समस्या कतई नहीं थी. परम मित्र साधुरामजी सहज उपलब्ध थे. ‘दोस्त वही जो श्राद्ध जीमने को तैयार हो जाए’. उनकी सेवायें हमें आसानी से मिल गईं. एक पर एक फ्री की तरह भोजन करने के साथ वे अपने वार्तालाप से बोझिल वातावरण को भी थोड़ा रसमय बनाते रहते हैं.

अग्नि में धूप देने के बाद चार पूडियां गाय माता को ,चार पूडियां श्वान महाराज को और चार कौओं को खीर सहित परोसने और खिलाने का आग्रह-आदेश हम से हुआ.

गायों और कुत्तों की कोई समस्या नहीं थी. हमारी कॉलोनी में ही बारहों मास सत्रह गौवंश पशु और पैतीस श्वान सामूहिक विचरण करते रहते हैं. यों शहरी क्षेत्र में पशु पालन प्रतिबंधित है, क़ानून बने हैं, मगर हमारे पशु प्रेम के आगे नगर पालिका विवश हो जाती है. पहले ‘भावना’ बाद में पशु पकड़ने की कोई ‘कामना’. सो गाय माता और श्वान महाराज ने हमें जल्दी ही उपकृत कर दिया.

वहां से निवृत्त होकर हम छत पर पहुंचे. खूब ‘कांव-कांव’ का उद्घोष किया मगर दूर-दूर तक कहीं कौओं की झलक तक नहीं मिली. हार कर वहीं छत पर छाँव करके भोजन सजा आये, मान लिया कि थोड़ी देर में कौए आयेंगे और भोजन ग्रहण कर लेंगे. विश्वास जरूरी होता है ऐसे कठिन समय में . हमारे पास विश्वास के साथ आस्था भी थी. कौआ जरूर आयेगा और भोजन ग्रहण करेगा. और पिताजी की आत्मा तृप्त हो जायेगी.

साधुरामजी को बहुत मनुहार से खूब खीर खिलाई. जो उनके मार्फ़त पिताजी तक पहुँची होगी वह निश्चित ही उन्होंने अपने अधीनस्थ मोहनलाल को ट्रांसफर कर दी होगी. इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है.

ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रिजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018



 
   



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