Thursday, November 17, 2022

कुत्तों का खलल

कुत्तों का खलल


अक्सर वीकेंड पर साधुरामजी और मैं लांग ड्राइव के लिए निकल जाते हैं। इससे मेरी पुरानी कार भी हमारे साथ थोड़ी सी ताजगी प्राप्त कर लेती है। साधुरामजी के साथ देश दुनिया की खट्टी मीठी खबरों की चर्चा करके हम भी नई ताजगी से भर जाते हैं। बड़ा आनंद आता है।

'इन दिनों हमारे यहां कुत्तों ने बड़ा आतंक मचाया हुआ है बंधु!' साधुरामजी ने कार में बैठते ही चर्चा के विषय को आगे बढ़ाया।
'हां,बिलकुल! अभी हाल ही में एक बच्चे को लिफ्ट में  पालतू कुत्ते ने काट लिया। थोड़े दिन पहले एक सुरक्षा गार्ड को घायल कर दिया। हर कहीं लोग कुत्तों के इस खतरनाक व्यवहार से चिंतित हैं। हमारे जीवन में इनका अवांछित अतिक्रमण सबको परेशान कर रहा है।' मैने कार स्टार्ट करते हुए कहा।
'कुछ न कुछ इनका करना ही पड़ेगा!' साधुरामजी बोले।

तभी एक पिल्ले ने मेरी कार के सामने आकर खुदकुशी करने का विचार बनाया। मैं कह नहीं सकता किस वजह से उसने मेरी ही कार को आत्महत्या का माध्यम बनाया होगा।

'कुत्ता कहीं का, इसे मेरी ही कार मिली मरने के लिए!'  घबराहट में मेरे मुंह से उसके लिए कुत्ते की ही गाली निकली। मुझे गुस्से के साथ साथ एतराज भी था कि वह इंसानों के लिए बनाई गई सड़क पर आया ही क्यों!'

'तुम्हारा मतलब है कि जब कुत्ते के पिल्ले कोई सड़क पार करें तब उन्हे इतना अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि वह उनके बाप दादा की जागीर नही है कि यहाँ वहाँ ताकते हुए उस पर आराम से चहल कदमी करते फिरें। सड़क सरकार मनुष्य के लिए बनाती है। यह सरकार की मर्जी पर है कि उस पर भ्रमण करने की इजाजत वह किसे दे और किसे नही दे। कुत्ते और अन्य प्राणियों के पिल्ले कोई टैक्स नही चुकाते कि वे भी उसका उपयोग करें और फ्री-फोकट में हमारी गाड़ियों के सामने आकर हमारी जान को मुसीबत में डालें।' साधुरामजी चुहुल के मूड में आकर मजे लेने लगे।

'और नहीं तो क्या! न कुत्ते का बच्चा सड़क का साझेदार बनने की कोशिश करता न वह हमारी गाड़ी के रास्ते में रुकावट बन पाता।  स्वयं की गलती का खामियाजा तो उसको भुगतना ही पडेगा साधुरामजी।'  अब थोड़ा मूड मेरा भी बनने लगा था।

'जब हम बडे आराम से कैलाश खैर के सूफियाना प्रेम गीतों के रस में सराबोर होते हुए सफर का मजा ले रहे थे कि साले इस कम्बख्त कुत्ते के पिल्ले ने सारा मजा किरकिरा करके रख दिया। यह तो अच्छा हुआ कि सामने कुत्ते का पिल्ला ही आया, खुदा ना खास्ता कोई आदमी का बच्चा आ गया होता तो...!' साधुरामजी पूरे मूड में आ गए।

हम कहां पीछे रहने वाले थे थोड़े दार्शनिक अंदाज में कहने लगे-'यों देखा जाए तो यह बात केवल डामर और सीमेंट से बनाई गई सड़कों तक ही सीमित नही है मित्र, जहाँ अनाधिकृत जीवों का आना-जाना बना रहता है...देश में कई प्रकार की अन्य सड़कें भी हैं और उन पर कई प्रकार की गाड़ियां दौड लगा रहीं हैं।'
'जैसे? जरा स्पष्ट तो करो...' साधुरामजी ने मेरी तरफ ताकते हुए कहा।

'मसलन राजनीति को ही लें। यह भी सत्ता तक पहुंचने की एक सड़क ही है। अनेक पार्टियाँ अपनी अपनी विचारधाराओं के रंगों और रणनीति के दुपट्टे टोपियां डाले, विभिन्न तकनीकों से लेस होकर, सत्ता प्राप्ति का महान लक्ष्य लिए प्रजातंत्र की सड़क पर दौड़ लगा रही हैं। अब इस दौड़ में यदि कोई अवांछित आपके राजनीतिक हितों की राह में आकर बाधक बन जाए तो उसका तो कुत्ते के पिल्ले की तरह कुचल जाना निश्चित ही है।' मैंने साधुरामजी की कमजोर नस को दबाया।

'तो भैया, इस बात को तो अब यहीं खत्म करो और जरा इन बेलगाम पिल्लों के आतंक पर अंकुश लगाने का उपाय करो वरना ये इसी तरह हमारे जीवन की खुशनुमा राह में आकर हमें मुश्किल में डालते रहेंगे।' कहते हुए साधुरामजी ने प्रसंग का लगभग पटाक्षेप ही कर दिया।

ब्रजेश कानूनगो

Tuesday, November 8, 2022

रोबोट भी बन रहा है मानव

रोबोट भी बन रहा है मानव  


सुबह की चाय की चुस्की भरी ही थी कि साधुरामजी अखबार थामें बड़ी ही चिंतित मुद्रा में उपस्थित हो गए। 

'मैंने कहा था ना कि एक दिन विज्ञान हमारे लिए अभिशाप बन जाएगा!' आते ही बोले।

'ऐसा क्या हो गया?' मैंने उत्सुकता से पूछा। 
'हो क्या गया! गजब हो गया है! अब हज्जाम, पुलिसकर्मी जैसे लोग बेकार हो जाएंगे। ऐसे यंत्र मानव याने रोबोट बनाए जा चुके हैं जो बहुत ही कुशलता से अपना काम कर सकते हैं।'  वह बोले।

'क्या रोबोट भी बाल काटते समय अपनी कैंची से ज्यादा जीभ चलाएगा?' मैंने पूछा। 
'पता नहीं।' बे बोले। 'हमारी दाढ़ी बनाते समय वह भी राजनीति के गिरते स्तर पर अपनी राय प्रकट करेगा?' मैंने पूछा तो वे बोले, 'तुम्हें मजाक सूझ रहा है अगर ये रोबोट मानव बहुतायत से वाकई हमारे देश में छा गए तो बेचारे कितने गरीब मजदूरों, कर्मचारियों, पुलिसकर्मियों की छुट्टी हो जाएगी, उनके परिवार भूखे मरेंगे।
दुनिया के कई देशों में तो काफी पहले ही रोबोट को नौकरी पर रखा जा चुका है। जहां जहां रोबोट नियुक्त किए गए हैं, उनके व्यवहार में बदलाव देखा जा रहा है। अभी अपने इंदौर जैसे शहर में एक ही रोबोट ट्रैफिक पुलिस यातायात को कंट्रोल कर रहा है,यदि वह कंट्रोल से बाहर हो जाए तो जरा सोचिए क्या हाल हो।

हाल ही के एक सर्वे के अनुसार रोबोटों में जो लक्षण नजर आ रहे उनसे उनके अंदर मानवीय गुण आ जाने के खतरे संभावित हैं।' साधुरामजी अपनी रौ में बोले चले जा रहे थे।

'कहने का मतलब अब रोबोट भी बलात्कार कर पाएगा,भ्रष्टाचार कर सकेगा। वाकई विज्ञान ने बहुत प्रगति कर ली है।' मैंने कहा तो साधुरामजी थोड़ा झुंझलाकर कर बोले,'हां, हां वह बलात्कार करेगा पैसे खाएगा और और...!' 
'और रोबोट अधिकारी के आदेश से एनकाउंटर भी करेगा।' मैंने बात पूरी की। 

साधुरामजी उठ कर जाने ही लगे थे कि श्रीमतीजी चाय का प्याला ले कर आ गईं। मैंने कहा, 'अजी बैठिए, बैठिए!  रोबोट पत्नी चाय ले आई है।' वे मुस्कुरा दिए और पुनः अपनी कुर्सी पर जम गए।

'मेरे ख्याल से जैसे हमने परमाणु बम नहीं बनाया है उसी तरह यह फैसला भी कर लेना चाहिए कि देशहित में हम रोबोट को भी बढ़ावा नहीं देंगे। डिजिटलाइजेशन व तरक्की के ढोल नगाड़ों के बीच भी हमें मशीनों की बजाय मजदूरों के श्रम का ही उपयोग करना चाहिए। देश में बेरोजगारी और गरीबी का स्तर अभी भी कम नहीं हुआ है। हंगर इंडेक्स में हमारा बड़ा बुरा हाल है।'  चाय का घूंट उतरते ही साधुरामजी का कामरेड जाग उठा। 

'लेकिन हमने रोबोट नहीं बनाए और पड़ोसियों ने रोबोट सैनिक बना लिए तो?' मैंने पूछा।

'नहीं वे ऐसा नहीं करेंगे। वे ऐसा तभी करेंगे जब हम वैसा करें। वे अक्सर हमारा अनुसरण करते हैं। महात्मा गांधी पर फ़िल्म बनने के काफी बाद उनके यहां भी कायदे आदम जिन्ना पर फ़िल्म बनीं। वे बस हमारी नकल करते हैं।'   

बात पुरानी थी पर कुछ ठीक ही लगी। 'हां गांधी फिल्म ने तो वाकई कमाल ही कर दिया था। शायद यह कमाल कोई रोबोट भी नहीं कर पाता जो अभिनेता बेन किंग्सले ने कर दिखाया। रोबोट से तो आदमी ही बेहतर होता है।' मैंने कहा तो वे फिर उत्तेजित हो गए। 'तुम्हें फिर मजाक सूझ रहा है।' 

'मैं मजाक नहीं, सच कह रहा हूं। इन रोबोटों का उपयोग आपकी राजनीति में बहुत अच्छी तरह किया जा सकता है। इन दिनों तो सब राजनीतिक कार्यकर्ता रोबोट की तरह ही तो कार्य करते हैं। जैसा ऊपर से आदेश होता है, करने लगते हैं। सब अलग अलग रंगों की टोपी और दुपट्टा पहने रोबोट हैं।' मैंने साधुराम जी की दुखती रग पर उंगली रख दी। 

'तुम तो राजनीति को बहुत ही गिरी हुई चीज समझते हो। एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के नागरिक होकर ऐसी घटिया बातें तुम्हे शोभा नहीं देती।' वे गुस्से से लाल हो गए।

मैंने चुटकी लेते हुए कहा, 'नहीं नहीं राजनीति तो बहुत अच्छी चीज है। रोबोट और राजनीतिज्ञों की क्या तुलना। रोबोट वह नहीं कर सकता जो राजनेता करते हैं। रोबोट कुर्सी से प्यार नहीं कर सकता। रोबोट असंतुष्ट नहीं हो सकता। वह कोई गुट नहीं बना सकता। रोबोट दल नहीं बदल सकता। रोबोट की राजनीतिज्ञ से क्या तुलना। आप ठीक कहते हैं।' 

साधुरामजी की चाय खत्म हो गई। गुस्से से लाल पीले होते लौट गए। शायद कल फिर कोई नया समाचार लेकर आएं।

ब्रजेश कानूनगो