Tuesday, March 16, 2021

हादसा,हमला,हकीकत

हादसा,हमला,हकीकत

हुलिया ही बता रहा था कि उनके साथ कोई 'हादसा' हो गया है। एक हाथ की अंगुली से खून टपक रहा था।यह क्या हो गया साधुरामजी हाथ में?' मैंने चिंता व्यक्त की।

'हमला हुआ है मुझ पर... पहले जरा 'टिंचर आयोडीन' दो। घाव पर लगाना है!' साधुरामजी ने हड़बड़ाते हुए गेट खोलकर लगभग दौड़ते  हुए मेरे घर के बरामदे में प्रवेश किया।

मैं समझ गया साधुरामजी के मोहल्ले के 'हालात' बंगाल की तरह ठीक नहीं हैं। तुरन्त भीतर से दवाई लाकर उनकी अंगुली के घाव पर लगाई और पट्टी कर दी।

'आखिर हुआ क्या साधुरामजी? क्या आज फिर किसी मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल दिया? खतरों को आमंत्रित करने की उनकी इस आदत को मैं जानता था।

'ये मिश्रा का बच्चा अपना 'खेला' कर गया। मैं जानता था वह ऐसा अवश्य करेगा। जलता है मुझ से।' तन से वे इधर थे पर मन वचन बंगाल हो रहा था।

'वह क्यों जलने लगेगा भला आपसे।' मैंने कहा।

'उसे मेरा लिखना,छपना सुहाता नहीं। दूसरे दल का मेम्बर है।' वे बोले।

'इसमें उसको क्या आपत्ति हो सकती है? वह भी लिखे अखबारों में,सोशल मीडिया पर,किन्तु इस बात से आपकी अंगुली टूटने का क्या संबंध हैं?   इसमें मिश्रा जी कहाँ से जुड़ गए? आखिर आपके पड़ोसी हैं।' मैंने कहा।

'मिश्रा को मेरा वह लेख बहुत खटक रहा था जिसमें मैंने बढ़ती महंगाई पर व्यंग्य किया था। कल जब वह अखबार में छपा तभी से उसका मुंह चढ़ा हुआ था। वाट्सएप और फेसबुक पर भी टिप्पणी नहीं की।'  साधुरामजी बोले।

'यह आपका भ्रम भी हो सकता है,किसी कारण उसने रुचि नहीं ली हो। जरूरी नही की वह हर बात में आपसे सहमत ही हो जाए।' मैंने समझाने की असफल कोशिश की।

'खैर,यह मानवीय प्रवृत्ति है। लेकिन इससे यह तो सिद्ध नहीं होता कि उसने आप पर हमला किया है। जरा घटना को विस्तार से बताएं? मैंने जिज्ञासा व्यक्त की।

'आज सुबह मैं दरवाजे के नीचे खिसका ताजा अखबार उठा रहा था, मिश्रा ने दरवाजा जोर से दबा दिया बाहर से। मेरी अंगुली को चोट पहुंचाने का प्रयास किया। हमला किया है उसने। वह नहीं चाहता कि मैं उसकी पार्टी और सत्ता पर व्यंग्य लिखूं।'  साधुरामजी के डीएनए का खास तत्व  उछलकर बाहर आ गया।

'याने न रहेगी अंगुली,न चलेगी कलम!' मैंने चुटकी लेते हुए कहा,

'तो अब क्या करेंगें। यह चुनाव प्रचार जैसा कोई फायदा पहुंचाने वाली बात भी नहीं कि अपनी अंगुली की पट्टी दिखाते हुए वोट मांगते फिरें। राजनेता और आम लेखक की चोट में बड़ा अंतर होता है साधुरामजी।' मैंने कहा।

'तो क्या हुआ। मैं भी कोई कम खिलाड़ी नहीं हूँ। मिश्रा चाहता है मेरी अंगुली तोड़कर वह मेरा लिखना बंद करवा देगा तो मैं भी अब मोबाइल में 'बोलकर' टाइप करके 'खेला' करूंगा।'

इतना कहकर साधुरामजी वापिस लौट गए। वे कब हार मानने वाले थे।

ब्रजेश कानूनगो