Monday, February 22, 2016

झंडों के डंडे

व्यंग्य
झंडों के डंडे 
ब्रजेश कानूनगो 

उस दिन मैं बहुत अचरज से भर गया. कुछ प्रदर्शनकारी हाथों में झंडा उठाए टीवी कैमरों के सामने चीख-चीख कर नारे लगा रहे थे. अचरज इस बात का नहीं था कि वे प्रदर्शन कर रहे थे और उनके हाथों में झंडे थे. झंडे और प्रदर्शन अब कोई चौंकने वाली चीज नहीं रह गयी है. वो बात इतिहास हो गयी है जब  किसी आन्दोलन की अगुवाई में हमारा नेता झंडा उठा लिया करता था. अब ऐसा नहीं है अब कभी भी झंडा उठाया जा सकता है और विरोध के लिए चीखा जा सकता है.इसके लिए नेता होना भी आवश्यक नहीं है. लोकतंत्र हमें इसकी इजाजत भी देता है. संविधान में भी यह कहीं नहीं कहा गया है कि आप झंडा लहराते हुए नारे नहीं लगा सकते. मुझे आश्चर्य इस बात का हो रहा था कि प्रदर्शनकारियों के हाथों में जो झंडे थे उनके डंडे बहुत मोटे थे. झंडे में जहां डंडा पिरोने की जगह होती है वह  इतनी तंग  थी कि उन्हें किसी तरह सुतली से मोटे डंडों पर बांधा गया था. 

अपनी  जिज्ञासा लेकर मैं अपने मित्र साधुरामजी के पास पहुंचा तो वे खिलखिलाकर हंस दिए. बोले -'बहुत भोले हो मित्र ! इतना भी नहीं जानते.जहां झंडा होगा वहां डंडा भी रहेगा. डंडे पर ही तो झंडा लहराया जा सकता है
'जी, इतना तो मैं भी जानता हूँ साधुरामजी की झंडे डंडे पर ही लहराए जाते हैं मगर प्रदर्शनकारियों के डंडे अक्सर इतने मोटे क्यों होते हैं? मुलायम झंडों के साथ मजबूत डंडों का साथ कुछ ठीक नहीं लगता.' मैंने कहा.
इस पर वे -'अरे, यह तो बहुत स्वाभाविक है भाई ! दो विरोधाभासी चीजें भी मिलकर एक ख़ूबसूरत दृश्य का निर्माण करती हैं. जैसे दिन और रात का मेल ख़ूबसूरत सांझ का नजारा ला खडा करता है.'
'लेकिन झंडे और डंडे का यह मेल तो डरा देता है साधुरामजी!  कभी-कभी तो लगता है डंडों की  मजबूती के लिए इन्हें कड़वा तेल भी पिलाया गया हो.' मैंने कहा तो वे फिर हंस दिए और किसी आद्यात्मिक गुरु की तरह दार्शनिक अंदाज में कहने लगे- 'यह बहुत स्वाभाविक स्थिति है मित्र,  जब दो विपरीत किस्म की चीजें मिलकर एक निष्कर्ष निकालती हैं. मसलन यदि हम चौबीस घंटों की बात करें तो वहां दिन का उजाला और रात के अँधेरे के सह अस्तित्व के बाद ही हमारी जीवन चर्या का एक दिवसीय कालखंड पूर्ण होता है. केवल दिन या केवल रात का होना सम्पूर्ण नहीं कहा जा सकता. इस  सिद्धांत के आधार पर बहुत सी चीजों को समझने में हमें बहुत सुविधा हो जाती है.' ''थोड़ा स्पष्ट करें, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा साधुरामजी!' मैंने बीच में टोंका. 
'अरे भाई!, सुनों,जब कोई कहता है कि उनका व्यक्तित्व नारियल की तरह है तो स्पष्ट है कि वहां इस तरह  बाहर  की सख्ती और मन  की कोमलता के सह अस्तित्व को रेखांकित किया जा रहा होता है.क्या नारियल की खोकल के बगैर उसके भीतर की मधुरता की कल्पना की जा सकती है? बगैर सख्त  डंडे के झंडे की मनमोहक लहरों को भी निहारा जाना संभव नहीं.' उन्होंने समझाया.

' बात में दम है आपकी! बचपन के दिन याद आ रहे हैं मुझे , जब पिता जी फटकार लगाते थे तो माँ चुपके से दुलार दिया करती थी और माँ की चपत के बाद बाबूजी रसगुल्लों का दौना सामने कर देते थे. पालकों के प्रेम और क्रोध के सह अस्तित्व के कारण ही हमारा आज अस्तित्व बना हुआ है.' इस बार हंसने की बारी मेरी थी.

'ठीक पकडे हो!' बिना कंट्रास्ट के सौन्दर्य कहाँ. झंडे की नाजुकता और डंडों की सुदृड़ता मिलकर ही इरादों की दृड़ता का सृजन करती हैं.
अब मैं अच्छी तरह समझ गया था. इरादों के झंडों को फहराने में  मजबूत डंडों की भूमिका बहुत  महत्वपूर्ण होती है. इसी तरह अपने झंडों को आसानी  से गाडा जा सकता है.

ब्रजेश कानूनगो 
503,गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क,कनाडिया रोड, इंदौर-452018  




Tuesday, February 2, 2016

हम पर उनका हाथ

व्यंग्य
हम पर उनका हाथ 
ब्रजेश कानूनगो

कभी-कभी हम किसी बात के कारण बहुत परेशान रहते हैं. यों परेशान रहने में किसी को क्या परेशानी हो सकती है. विद्वानों का मत तो यह है कि आदमी को थोड़ा बहुत परेशान रहना ही चाहिए. परेशान रहने से हाजमा दुरुस्त रहता है.अपनी परेशानी का पता लगाने में हमें कोई  ख़ास परेशानी भी नहीं आती. थोड़े से प्रयास के बाद मुझे भी पता चल गया कि किस कारण मैं दुबला होता जा रहा हूँ.

स्कूटर या मोटर सायकल चलाते वक्त अक्सर बीवियां पीछे की सीट पर बैठकर अपने चालक पति के कंधे अथवा कमर पर हाथ जरूर रखतीं हैं, लेकिन वे ऐसा क्यों करतीं हैं? यही प्रश्न मेरी बैचेनी का कारण बना हुआ था. हर घड़ी हर पल, सोते-जागते, घर में, दफ्तर में, खाते-पीते, यही प्रश्न मेरे दिमाग में चोंच मारता रहता. मित्रों से इसका उत्तर जानना चाहा तो वे भी परेशान रहने लगे और दुबले होने लगे.  

एक मित्र का विचार था कि स्कूटर चलाते समय बीवी का हाथ कमर अथवा कंधे के जरिये पति के भीतर आत्मविश्वास का संचार करता है. लेकिन यह उत्तर मुझे स्वीकार नहीं था. बीवी का कमर में लिपटा हाथ आत्म विश्वास में वृद्धि तो नहीं करता होगा बल्कि चालाक की एकाग्रता जरूर भंग करता होगा. आत्मविश्वास ही प्राप्त करना हो तो चालक हेलमेट पहन ले. क्रिकेट खिलाड़ियों को ही देख लीजिये. चौका छक्का मारते वक्त उनके कन्धों पर पत्नी का हाथ तो नहीं धरा होता. सम्राट अशोक, अकबर महान और महाराणा प्रताप जैसे वीर प्रतापी भी हेलमेट धारण के कारण भारी आत्मविश्वास से भर जाते थे और सफल होते थे.

एक अन्य मित्र का कहना था कि इस बहाने थोड़ा रोमांस हो जाता है. परंतु रोमांस भी हर जगह और हर वक्त संभव नहीं हो सकता. सामने बाइक वाला कट मार रहा है, सायाकिल वाला टकरा रहा है, ठेलेवाला स्कूटर में ही घुसा चला आ रहा है, गौमाता और भैसें बीच सड़क में पसरी हुईं हैं, गली के कुत्ते आपके हॉर्न पर मोहित हुए जा रहे हैं लेकिन साहब! आप रोमांस कर रहे हैं, असंभव है. और फिर हमारे नैतिक आग्रह भी तो कुछ होते हैं. मित्र के तर्क में कोई दम नहीं था.
कहते हैं, हरेक समस्या का हल अतीत में खोजा जा सकता है. अपने सवाल के जवाब की आकांक्षा में मैंने ध्यान लगाया और मन को एकाग्र किया . अब मैं उन दिनों में था जब पहले-पहल नया स्कूटर खरीदा था और पुरानी पत्नी को लेकर शहर भ्रमण को निकला था. शहर की गलियों, बाजारों, मुख्य सडकों और राष्ट्रीय राज मार्ग से अपना स्कूटर गुजारा, लेकिन किसी भी स्थिति परिस्थिति में श्रीमतीजी ने अपना हाथ या शरीर का कोई भी अंग हमारी देह से स्पर्श तक नहीं होने दिया. याने चर्चित क्रिया की कोई आवश्यकता तब उन्हें महसूस ही नहीं हुई. एक मोड़ पर मेरे सामने एक ट्रक आ गया तो मैंने अपना स्कूटर तनिक धीमा कर लिया. जब ट्रक मेरे पास से होकर आगे निकल गया तो सामान्य गति से स्कूटर चलाते हुए लौट आया. लेकिन घर पहुंचकर जब पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि स्कूटर की पिछली सीट खाली पड़ी थी, बीवी नदारद थी.  
मैं उलटे स्कूटर पत्नी की खोज में निकल पडा था. श्रीमतीजी उसी मोड़ पर केले खरीद रहीं थीं जहां मैंने ट्रक आने पर स्कूटर धीमा कर लिया था. ट्रक के आतंक और स्कूटर की सुस्त रफ़्तार का लाभ उठाते हुए वे वहीं उतर पडीं थीं और मैं अपने चिंतन में लीन उनकी पुकारों को सुने बिना आगे बढ़ गया था.
बहरहाल, उस वक्त बीवी के मिल जाने से बहुत खुश हुआ था और आज अपनी परेशानी का समाधान पाकर प्रसन्न हूँ. अब मैं जान गया हूँ कि पत्नियां स्कूटर चलाते पति की कमर में हाथ क्यों डाले रखती हैं. उनका ऐसा करने पर मेरा कोई ऐतराज नहीं है बल्कि मेरा तो आग्रह है वे एक नहीं बल्कि अपने दोनों हाथों से स्कूटर चलाते पति को जकड़े रहें.   
ब्रजेश कानूनगो