Thursday, April 7, 2022

भ्रातृप्रेम की महान परंपरा

भ्रातृप्रेम की महान परंपरा


जब भी हमारे पड़ोसी पर संकट आया है,हमने एक भाई की तरह उसकी मदद की है। उसका दुख हमारी आंखों में पानी ला देता है। चाहे वह पड़ोसी देश ही क्यों न रहा हो। श्रीलंका हो, नेपाल हो या बांग्लादेश रहा हो एक भाई की तरह हमने कठिन वक्त में उनकी मदद की है। पाकिस्तान माने न माने पर उसके दुखों पर भी हमारे मन में करुणा उमड़ ही जाती है। यही हमारी परंपरा रही है।

भारतीय भूत में भाई की बड़ी महत्ता रही है. भाई की खातिर भाई जान पर खेल जाया करते थे. राम को वनवास भेजने वाली सगी माँ को एक सोतेला भाई  आजीवन क्षमा नहीं कर पाता  और स्वयं राम की पादुकाएं सिंहासन पर रखकर वनवासी सा जीवन चौदह वर्षों तक व्यतीत करता है ,दूसरा अपनी नवब्याहता पत्नी को छोडकर भाई की सेवा में वन को चला जाता है. कहावत सी बन गई है कि इस युग में राम तो बहुत मिल जाएँगे लेकिन भरत और लक्ष्मण सा भाई  मिलना कठिन है.

फिल्मों में भी भाई—भाई को लेकर अनेक रोचक  कहानियां आती रहीं हैं.  अलग –अलग विचारधारा और चरित्र के भाई अंत में परम्परानुसार एक दूसरे के शुभचिंतक हो जाते हैं. लेकिन वास्तविक जीवन में भ्रातृप्रेम  के ऐसे सच्चे प्रसंग कभी-कभार ही देखने को मिल पाते हैं.

इसी भ्रातृप्रेम का निर्वाह करते हुए एक युवक परीक्षा देते हुए इंदौर में पकड़ लिया  गया था. यह हमारी  सामाजिक कमजोरी ही कहा जाएगा कि नियम कानून के तहत उनका केस बना दिया गया.  एक महान परम्परा जो साकार होने जा रही थी,एक इतिहास जो फिर अपने को दोहराने का प्रयास कर रहा था, ना-समझ निरीक्षकों की नादानी की वजह से संभव नहीं हो पाया.

बड़ा जालिम है यह ज़माना. जब-जब भाई ने भाई के लिए कुछ करना चाहा है ,तब तब फच्चर फसाया गया है. कुछ वर्ष पूर्व भी एक भाई के साथ ऐसा ही हुआ था, संयोग से वह पुलिसकर्मी था. उसने अपनी छुट्टी के लिए विभाग को आवेदन किया तो स्वीकृत नहीं हुई . तब अंतत: भाई ही भाई के काम आया. उसने अपने छोटे भाई  को वर्दी पहनाई और ड्यूटी पर तैनात कर दिया.   लेकिन वही हुआ , भाई का भाई से यह प्रेम जमाने की कुटिल निगाहों में आ गया. भाई पकड़ा गया और आदर्श का एक शिलालेख स्थापित होने के पहले ही खान नदी के पेंदे में पहुँच गया.

दोषी वही है जो पकड़ा जाए. ये भाई पकड़ लिया गया  इस लिए अपराधी हो गया. बड़ी विडम्बना है यह तो! वे अनेक लोग जो विभिन्न योजनाओं में दूसरों के हकों का लाभ ले रहे हैं, वे जो दूसरों के खेतों पर अपनी फसल काट रहे हैं, निर्दोष हैं. भाई भाई  के काम आ रहा है तो वह दोषी हो गया है.

भूल गए हैं हम अपनी परम्पराओं और अपनी महान संस्कृति को जब एक भाई दूसरे भाई की पादुकाएं सिंहासन पर रखकर राजकाज चलाया करते थे. और अब जब एक भाई दूसरे भाई की सहायता करना चाहता है उसे अपराधी घोषित कर दिया जाता है. परीक्षा में भाई के भले के लिए अपने ज्ञान का  मौन समर्पण करने पर उसे मुन्नाभाई जैसे  गुंडे की श्रेणी में ला खडा कर दिया जाता है.

हमारी संस्कृति रही है कि भाई भाई के काम आए. मुँह बोले भाईयों तक ने वक्त पड़ने पर एक दूसरे की मदद की है.  लेकिन  समय ने अब ऐसी करवट बदली है कि ऐसा आसानी से करने नहीं दिया जाता है. अब तो भाई तो क्या अपने स्वयं के खून को ही आगे बढाने का काम करते हैं तो 'परिवारवाद' को बढ़ावा देने का आरोप लगने लगता है। खासतौर पर लोकतंत्र में 'वंशवाद' को एक वायरस की तरह देखा जाने लगा है। जब राजनेता का बेटा तक मंत्रीपद की दौड़ में केवल इसी वजह पिछड़ जाता है तब किसी भाई या बहिन की महत्वाकांक्षा की पूर्ति तो बहुत दूर की बात होगी।

पूरे विश्व को अपना परिवार मानने वाले हमारे संस्कारों से प्रेरित होकर जब हम कदम उठाते हैं मन गर्व से भर जाता है। यह उचित समय है जब हम भ्रातृप्रेम की महान परम्परा को बचाने के लिए विमर्श की शुरुआत कर सकते है। ज़रा सोंचिए..!

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ब्रजेश कानूनगो

Tuesday, April 5, 2022

व्यंग्य बाण : महंगाई पर कुछ दोहे

 व्यंग्य बाण : महंगाई पर कुछ दोहे

1
महंगाई सुरसा भई

याचक बन मत मांगते,
कैसे हो इंकार।
सत्ता पाते ही सभी,
बन जाते भरतार।

बड़ी चीज को लघु करें,
बोले बड़ी लकीर।
कुर्सी के मद में पड़ें,
खुद को कहें फकीर।

बात पुरानी हो गई,
जनता करे हिसाब।
सत्ता जिसकी आ जाए ,
देता नहीं जवाब।

दुनिया हुई उलट-पुलट,
जीवन है दुश्वार।
सुरसा महंगाई हुई,
प्रभु करो उद्धार।

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2
महंगाई का वध करें

अपने घर की क्या कहें,
खस्ता सबका हाल।
कैसे शरबत खुद पिएं,
जब कोई बेहाल।

रोज बढ़ रही कीमतें,
जीना हुआ हराम।
रावण की लंका जली,
मदद करे श्रीराम।

महंगाई इक दैत्य है,
रोक रहा प्रवाह।
कुम्भकर्ण सी नींद में,
कैसे निकले राह।

यूँ हलाल सा लग रहा,
अनचाहा यह दर्द।
झटके में निपटाइए,
कहलाओगे मर्द।

महंगाई का वध करें,
यही वक्त की मांग।
सुख चैन की हवा बहे,
मिटे नफरती भांग।

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ब्रजेश कानूनगो