व्यंग्य कथा
भजन संध्या
उर्फ़ खुलना ‘सेंट वेलेंटाइन
व्यायाम शाला’ का
ब्रजेश कानूनगो
भजन बाबू अपनी धर्म पत्नी संध्या देवी के उस आधुनिक और सुसज्जित जिम में मैनेजर हैं जिसका नाम उन्होंने बहुत सोच विचार के बाद 'सेंट वेलेंटाइन व्यायाम शाला' रखा है।
भजन बाबू अपनी धर्म पत्नी संध्या देवी के उस आधुनिक और सुसज्जित जिम में मैनेजर हैं जिसका नाम उन्होंने बहुत सोच विचार के बाद 'सेंट वेलेंटाइन व्यायाम शाला' रखा है।
नाम थोड़ा अटपटा जरूर लगता है किन्तु इसके पीछे की
कथा जानकर इस नामकरण को उचित ही कहा जाएगा।
नामों और आचार-विचार से कभी कभी भ्रम की स्थिति
बन जाती है। इस रचना के नायक भजन बाबू को भी अक्सर लोग किसी धार्मिक या आध्यात्मिक
प्रतिष्ठान से जुड़ा व्यक्ति मान लेने की गलती कर बैठते हैं। जिस प्रकार'हरिगंधा' किसी अगरबत्ती का पैकेट या भजन संग्रह न होते हुए साहित्य की पत्रिका
है, उसी तरह हमारे भजन बाबू भी किसी साधु सम्प्रदाय से तालुक्क नहीं रखते।
किसी मंदिर में वे सरकारी पुजारी के पद पर नियुक्त भी नहीं हैं किंतु एक अर्थ में
उन्हें पुजारी अवश्य कहा जा सकता है।
भजन बाबू प्रेम के पुजारी हैं और ज्यादातर गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करते हैं। उनका मानना है कि इस रंग से मन गुलाब की तरह खिला रहता है और चित्त प्रेम की गंध से सरोबार रहता है। उनके शरीर से पसीने की जगह अद्भुत प्रेम रस झरता रहता है। जिस तरह विश्वविख्यात डीओ स्प्रे के प्रभाव से अनन्य सुंदरियां बेहद कुरूप पुरुष के पीछे-पीछे दौड़ती चली आती हैं उसी प्रकार भजन बाबू की देह से प्रेम के इस अदृश्य प्रस्फुटित विकिरण से नगर की सुकन्याएँ बरबस खींची चली आती हैं।
यद्यपि भजन बाबू का नाम जन्म प्रमाण पत्र में भजनसिंह लिखवाया गया था किन्तु क्षत्रीय कुल की इस सात मासी संतान में ‘सिंह’ जैसे कोई लक्षण रहे ही नहीं। गुलाबी कोमलता उनकी देह और दिल मे कुछ इस कदर व्याप्त थी कि कुटुंब के बड़े बूढ़ों को संदेह होने लगता था कि उनका जन्म संतान अभिलाषी दंपत्ति द्वारा किसी संत प्रदत्त प्रसाद में दिए गुलाबी सेवफल को ग्रहण करने के पश्चात हुआ है। जो भी कारण रहा हो लेकिन यह बालक आगे चलाकर संत वेलेंटाइन के विचारों से लगातार प्रभावित होता गया।
उम्र के साथ साथ इस बालक के मन,प्राण में प्रेम रस की उत्पत्ति बड़े वेग से होती रही। किशोर होते होते उसके हृदय समुद्र में प्रेम लहरों के ज्वार भाटे आने लगे। युवावस्था में कदम रखते ही प्रेम की बाढ़ ने पहले मुहल्ला फिर पूरा नगर ही भिगो कर रख दिया। भजन बाबू के प्रेम से कस्बे की भूमि उर्वरा हो गई । तरुणियाँ प्रेमनगर में घर बसाने के गीत गाने लगीं।
नगर सेठ मोटाभाई काला की तीसरी सुकन्या संध्या इस रचना की प्रेमपगी नायिका है। प्रेम में वह पागल तो नहीं हुई लेकिन खेल की दीवानी के जीवन से खेल को प्रेम ने खो-खो कर दिया. दरअसल संध्या को पढ़ने लिखने से ज्यादा खेल कूद में गहरी रुचि थी। खोखो उसका प्रिय खेल रहा । जैसा कि आप जानते हैं इस खेल में एक खिलाड़ी दूसरे को खो बोलते हुए उसका स्थान ले लेता है, संध्या ने भी अपनी बड़ी बहन सुधा को खो किया। प्रेम रंग में डूबती सुधा एक दिन सुअवसर देख कर स्थानीय बस सर्विस के मालिक के बेटे के साथ मुंबई दर्शन करने चली गई। बाद में संध्या सुधा के स्थान पर आ गई। खेल के प्रति समर्पण ने संध्या को खोखो में जिला चैंपियन बना दिया था। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है।
हमारे पर्व और उत्सव सांस्कृतिक चेतना के साथ-साथ मेल-मिलाप, भाई-चारे , प्रेम के उन्वान और सुख की स्थापना में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जन्माष्टमी के अवसर पर नगर के दशहरा मैदान में जलोटा जी प्रभु भजन सुनाते रहे, उधर नायिका संध्या पर भजन बाबू से प्रस्फुटित प्रेम विकिरण ने जादू सा कर दिया। जलोटा जी के भजन में कृष्ण का राधा से आध्यात्मिक मिलन हो रहा था। इधर भजन और संध्या के मन प्राण एक हो रहे थे। रात के साथ हर तरफ भजन संध्या गहराने लगी थी। इस मधुर अनुभूति के अगले दिन नजदीक शहर के आर्य समाज मंदिर में भजन और संध्या ने एक दूसरे को गेंदे की मालाएं पहना कर प्रेम को स्थायित्व प्रदान कर दिया.
कुछ दिनों की लुका छिपी के बाद भजन बाबू और संध्या देवी ने मोटाभाई की मदद से एक जिम खोल लिया। अब संध्या केवल भजन के लिए थी और भजन दिन में व्यायाम शाला का प्रबंधन देखने लगा है।
ईश्वर ने जैसे भजन और संध्या का कल्याण किया, दुआ करते हैं सभी
प्रेमियों पर कृपा बरसे. प्रेम से बड़ा दुनिया में कुछ नहीं होता. ‘संत वेलेंटाइन
कोचिंग’ से लेकर ‘संत वेलेंटाइन बुटिक’ भी हमें देखने को मिलें.
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रीजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर 452018