Wednesday, December 27, 2023

प्रतिरोध में लौटाना

प्रतिरोध में लौटाना

 
समझ में नहीं आ रहा मैं क्या लौटाऊं। लौटाने के लिए अपने पास कुछ होना भी तो चाहिए। जिसे पहले कुछ मिला हो वही तो लौटाने के बारे में सोच सकता है।
हां, बचपन में जब एक बार किसी कक्षा में पहले नंबर पर आया था तब दादा जी ने जरूर खुश होकर अपना पैन इनाम में दे डाला था। अन्याय के खिलाफ वही पेन लौटाकर में अपना विरोध जता सकता हूं लेकिन स्टील का वह बॉलपेन अभी भी मेरे पास दादाजी की स्मृतियों के रूप में धरोहर की तरह रखा हुआ है जिसे लौटाकर में अपने अच्छे दिनों की याद को धुंधलाना नहीं चाहता।  मैं अन्ना हजारे जैसा कोई महान आंदोलनकारी भी नहीं रहा कि अपना पद्मश्री सम्मान लौटा कर प्रतिरोध से सरकार की नाक में दम कर डालूं। बहुतों के पास तो और भी मौके होते हैं। सम्मानों का ढेर लगा होता है। पद्मश्री ही क्या पद्म भूषण लौटने का भी चांस बन जाता है। सम्मानों की संदूक भरी होती है कुछ के पास, एक-एक करके लौटते जाएं क्या फर्क पड़ता है। 
मुश्किल तो हम जैसे कंगलों की है। गुस्सा तो मुझे भी बहुत आता रहता है। आहत होकर मैं भी विरोध भी दर्ज कराना चाहता हूं लेकिन तरीका ही नहीं सूझ रहा।
मैं कोई ऐसा खिलाड़ी भी नहीं हूं जिसे कोई पदक वगैरा मिला हो अन्यथा पदक लौटाकर ही अपना गुस्सा व्यक्त कर देता। थोड़ा बहुत कहानी कविता जरूर लिख लेता हूं पत्र पत्रिकाओं  में। बेहतर सामग्री के अभाव में मेरी रचनाओं का उपयोग भी कर लिया जाता है लेकिन केवल इतने से ही ज्ञानपीठ या अन्य साहित्य सम्मान और पुरस्कार तो नहीं दे देता कोई, तो वह भी मेरे पास नहीं है लौटाने के लिए। 
ऐसा नहीं है कि पुरस्कार या सम्मान पाने की कोई इच्छा मेरे भीतर कभी रही नहीं। बहुत हाथ पैर मारे हैं। देशभर के हिंदी प्रदेशों और कई गैर हिंदी भाषी राज्यों की संस्थाओं के प्रस्ताव आए थे कि भाई ले लो एक अदद पुरस्कार ले लो, लेकिन मेरी ही मती मारी गई थी जो वांछित सहयोग राशि का इंतजाम नहीं कर सका। अब पछता रहा हूं। तब विवेक से काम लेता और पत्नी का सोना बेचकर ही कोई सम्मान खरीद लेता तो यह दिन नहीं देखना पड़ता। आज वही सम्मान तेरा तुझको अर्पण के भाव से लौटाकर विरोध भी हो जाता और इज्जत भी रह जाती। 
लिहाजा मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं जिसे लौटा सकूं। एक डिग्री जरूर है, जब मिली थी तब सोचा था उसको ध्वज की तरह लहराते हुए सफलता का रास्ता तय कर लूंगा, लेकिन अब उसे लौटना भी क्या लौटाना हुआ!  कहा गया है कि इज्जत उसकी जाती है जिसकी होती है। ठीक उसी तरह मेरी मूल्यहीन डिग्री को लौटाने पर भी प्रतिरोध का क्या कोई मूल्य रहेगा। 
बड़े बड़े सम्मानित व्यक्तियों का मजाक बनता रहा है। अतः मुझे माफ कीजिएगा मैं उन महान लोगों में शामिल नहीं हो सकता जो कुछ पाकर नहीं कुछ लौटाकर अपना आक्रोश व्यक्त कर सकूं।  इतना जरूर है कहीं न कहीं अपनी मुस्कान और खुशी का कुछ हिस्सा जरूर मेरे पास से लौट गया है। इसके लौटने में जो थोड़ा बहुत प्रतिरोध का अंश है,सामान्यतः वह किसी को नजर नहीं आ रहा। 

ब्रजेश कानूनगो