सदन में उनका सो जाना
ब्रजेश कानूनगो
वे इस बार फिर सदन में सो गए. वे ऐसा कर सकते हैं बल्कि यों कहें उनके साथ ऐसा हो जाता है.उनके
दुर्भाग्य और देश के सौभाग्य से पूरा देश उन्हें ऐसा करते हुए टीवी पर देख भी लेता
है. उन्हें इस तरह चैन की नींद सोते देख उन लाखों लोगों का मन कुंठा से से भर जाता
है, जिन्हें नींद की गोली खाकर भी कमबख्त नींद मही आती. और वे हैं कि भरे सदन में
चिल्ल-पों के बीच भी येन-केन प्रकारेण शयन कर लेते हैं.
अब हरेक व्यक्ति पर नींद का ऐसा वरदहस्त कहाँ ! हम तो आँखे
बन्द किए बिस्तर पर पडे होते हैं, न बेडरूम में कोई शोर,न देश को आगे
ले जाने की चिंता, फिर भी नींद है कि कालेधन की तरह आती ही नहीं. घडी की हर ‘टिक-टिक’ पर हमें आशा रहती है कि नींद अब आई
,अब आई..! मगर वे हैं कि टिक-टिक की चिंता किये बगैर कहीं भी ‘टिक’ जाते हैं. कुछ
लोग कठिन और विपरीत परिस्थितियों में भी बडे आराम से नींद के सुखद संसार में झूला
झूलने की सामर्थ्य रखते हैं। वे इसी तरह के जुझारू व्यक्ति हैं जो सदन में भी नींद
निकाल लेते हैं.
वैसे उन्हें इसके लिए दोषी ठहराना भी ठीक नहीं होगा. हो
सकता है देश के प्रति गहरी चिंताओं के चलते वे अनिंद्रा के शिकार हो गए हों. यही
कारण है कि संसद के सत्रों में वे झपकियाँ लेते दिखाई देते हैं. लोकतंत्र के मंदिर
में अक्सर सो जाने वाले नेताओं के प्रति मुझे बहुत हमदर्दी है. जिस तरह आप हम
सुकून पाने मंदिर जाते हैं, उसी तरह इस मंदिर में वे थोड़ा सुकून पा लें तो क्या
बुरा.
उनके पास रात भर नींद नही आने के बडे जायज कारण होते हैं, वे हमारी तरह नही हैं कि तुच्छ कारणो से उनकी
नींद उड जाए. ये तो हम ही हैं जिनकी नींद
मामूली कारणों से ही हराम होती रहती है। बम धमाकों की आवाजों के बीच भले ही
हम नींद निकाल सकते हों लेकिन छोटे से मच्छर की आतंकवादी हलचल हमारी नींद उडा देती
है। पेट्रोल की कीमतों मे आग लगी हो, महंगाई की तपन झुलसा रही हो , हमारी
नींद उचट जाती है और सारी रात करवटें बदलते ही गुजरती है। रात की नींद फिर दफ्तर
में अंगडाई लेने लगती है.
यह भी संभव है कि नेताजी अपने क्षेत्र के विकास और
नागरिकों की समस्याओं के लिए बहुत चिंतित रहते होंगे, जनता के प्रति अपने
दायित्वों के निर्वाह का दबाव भी उन पर बना रहता होगा. हो सकता है इसीलिए रात भर
वे अपने बंगले के सुकून भरे शयन कक्ष में सो नहीं पाते हों और जब संसद में
कार्यवाही शुरू होती है, उनकी आँख लग जाती है. स्वर चाहे लोरी के हों या बहस के
अनिंद्रा पीड़ित पर सामान रूप से असर डालते हैं. इसमें बेचारे नेताजी का क्या दोष
है. माननीय की समस्या समझी जाना चाहिए. अगर वे आज नहीं सोयेंगे तो कल देश को कैसे
जगायेंगे!
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली
पार्क, कनाडिया रोड, इन्दौर-18