व्यंग्य
स्मार्टनेस और 'इमोजी'
ब्रजेश कानूनगो
पहले तो आप 'इमोजी' नाम से कतई भ्रमित न हों।
यह कोई 'सूमोजी' या 'शर्माजी' जैसा जीता जागता प्राणी नहीं है और न ही रजवाड़ी स्टाइल का कोई अनुरोध है कि भोजन की थाली में छप्पन भोज सजाकर
कोई सास अपने दामाद से कहे- 'आइये कंवर साब "जीमोजी!".
यदि आप अभी भी एक बार में पांच दिन के लिए चार्ज हो जाने वाले सुदृढ़ चलित
भाष्य यंत्र को पट्टे से लटकाकर बुशर्ट की ऊपरी जेब में रखकर धडकनों को सुनते हैं
तो आप ‘इमोजी’ को ठीक से समझ नहीं पाएंगे।
'इमोजी' को समझने और उसके संग-साथ के लिए आपको थोड़ा स्मार्ट होना पड़ेगा। बाजार भी यही चाहता है कि आप पुराने को पितामह
मानकर ‘मार्ग दर्शक’ का सम्मान दें और उसे
शो-केस में सजाते रहें. इसके लिए पुराने जमाने के परमप्रिय
हैंडसेट को अपनी काम वाली बाई को समर्पित करके 'स्मार्ट फोन' के नए युग में आपको प्रवेश करना होगा। हालांकि शास्त्रीय
अर्थों में एक युग बारह वर्षों का माना गया है किंतु स्मार्ट और तकनीकी समय में अब
साल-दो साल में युगांतर हो जाता है। नई जनरेशन का बस इतना ही स्मार्ट युग होता है।
वह ‘जी-वन’ से होता हुआ फोर जी,फाइव जी सिक्स होने में जी जान लगा देता है....
और जल्दी जल्दी दौड़ता चला जाता है। मनुष्य की औसत आयु भले ही बढ़ गयी हो मगर स्मार्ट उत्पादक कभी नहीं चाहेंगें कि उनका कोई
भी प्रोडक्ट अमरता का वरदान लेकर बाजार में अवतरित हो.
दरअसल, जो लोग स्मार्ट हो गए हैं, वे शब्दों और वाक्यों की बजाय ‘इमोजी’ का प्रयोग करते हैं। जैसे हमारे
समाज में वर्ग विभाजन होता है उसी तर्ज पर सूचना संसार में भी एक वे होते हैं, जिनके मोबाइल फोन में इमोजी हैं और दूसरा वह वर्ग जो इमोजी के बगैर ही
अपना काम चलाने को अभिशप्त है। वास्तविक दुनिया में जैसे राजनीतिज्ञों,उद्योगपतियों, फिल्मी सितारों के घराने सिक्का जमाये होते हैं, ठीक उसी तरह स्मार्ट संचार में 'इमोजी परिवारों' का बोलबाला होता है। 'इमोजी वंश' के सदस्य आभासी दुनिया के जगमगाते सितारे होते हैं। और ये सितारे यही चाहते हैं कि आम लोग ‘शब्दों’ की बजाय ‘चित्रों’,’संकेतों’
या ‘इमोजी’ आदि में उलझे रहें, इससे ‘विचार’ का उनका निरर्थक परिश्रम बचेगा. विचार
से क्रान्ति हो सकती है, बगावत की आग फैलने और खून खराबे की आशंका बलवती होती है.
शांति-सद्भाव के लिए ‘इमोजी’ शब्दों की तरह खतरनाक और हानिकारक नहीं होते.
स्मार्ट संचार(संसार) में इमोजी का अपना
नमस्कार होता है,
इमोजी का सुख- दुःख होता है, इमोजी के फूल, पक्षी,आसमान,नदी ,पहाड़,
उसकी प्रकृति होती है, उसका अपना वैभव होता है, सब कुछ होता है। 'इमोजी' की पूरी अपनी दुनिया होती है। वह सब दिखलाती है, महसूस करवाती है जो असल दुनिया में बहुत मुश्किलों से संभव हो पाता
है। इमोजी ठीक उसी तरह काम करता है जैसे भूखे व्यक्ति के लिए चाँद रोटी का काम करता है। रोटी का आभास होता है आकाश का चाँद , अनुभूतियों का आभास होता है मोबाइल मैसेज का 'इमोजी'।
गब्बर के तमंचे की तरह निर्देशक ने पिस्तौल में दुनिया की मैगजीन को ऐसा
घुमा दिया है...कि अब किसी को पता नहीं है कहाँ असली है और कहाँ आभासी.. हमें कुछ
नहीं पता... विकास के इस महत्वपूर्ण समय में इमोजी से दोस्ती जरूरी है या रू-ब-रू
अनुभूतियों, दिली संवेदनाओं का सम्प्रेषण... किसी को कुछ नहीं मालूम...! स्मार्टनेस
की रेस में कहीं हम पीछे न छूट जाएं, इस चिंता में सब दौड़े जा रहे हैं. इस दौड़ में
भी 'इमोजी' हमारा बहुमूल्य पसीना बचा लेता है। बस एक ‘पिक’
तो ‘टच’ करनी होती है धावक इमोजी की, अपने स्मार्टफोन में।
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल
रीजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर -18