Sunday, October 16, 2016

डाकिया दाल लाया

डाकिया दाल लाया...
ब्रजेश कानूनगो

जब कोई अपना काम ठीक से नहीं कर पाए तो उसका काम दूसरों को सौंप दिया जाना चाहिए जो उसे कुशलता पूर्वक कर सके. अड़ियल और शक्तिहीन हो गए खच्चर से काम लिए जाने और उसे घी-मेवा खिलाते रहने से कोई फ़ायदा नहीं. समय पर अपना काम किसी तरह निकाल लेना ही समझदारी है. केंद्र सरकार बुद्धिमान है जिसने बढ़ती महंगाई को रोकने और राज्यों  के असहयोग के चलते अब  डाकघरों के मार्फ़त लोगों को सस्ती दालें मुहय्या करवाने की प्रशंसनीय पहल की है.

यह पहली बार नहीं हुआ है. बरसों से यह नुस्खा आजमाया जाता रहा है. अब देखिये कुछ राज्यों में सरकारी रोडवेज नागरिकों को अपनी सेवाएं ठीक से न दे पाया तो अन्ततः यह काम सेठों, साहूकारों और बिल्डरों को सौंपना पड़ा। और देखिये क्या चका-चक बसें दौड़ रहीं हैं.

अस्पतालों, कॉलेजों में कुप्रबंधन का वायरस आया तो स्वस्थ नेताओं और उनके समाज सेवी परिजनों को जिम्मेदारी का हस्तांतरण करना जरूरी माना गया। न सिर्फ इससे शिक्षा का स्तर ऊपर उठा बल्कि छात्रों के लिए सीटों की अनुपलब्धता की समस्या ही समाप्त हो गई.

बहुपरीक्षित कहावत है कि जो खच्चर बिना ना नाकुर किये बोझा ढोता है उसी पर अधिक  सामान लाद दिया जाता है। यही परंपरा रही है। सरकारी विभाग जब योजनाओं के कार्यान्वयन में गच्चा देने लगे तो बैंकों का राष्ट्रीकरण करके उनके ऊपर योजनाओं की पोटली धर दी गयी। 
बैंक जब ढीले पड़ने लगे तो फिर से उद्योगपतियों और कॉर्पोरेट्स को नए बैंक के लिए लायसेंस बांटने की पहल की जाने लगी।

हमारे यहाँ कभी गुरुजन ही कर्मठ माने जाते थे,  उन सम्मानितों पर समाज और सरकार को पूरा भरोसा हुआ करता था। संकट की घड़ी में इन्होने देश की काफी मदद की है. बच्चों को ज्ञान बांटने के अलावा मलेरिया की गोलियां और कंडोम बांटने तक का काम तल्लीनता से किया है.  जानवर से लेकर आदमी, कुओं से लेकर बोरिंग और ताड़-पत्रों से लेकर मत-पत्रों तक की गणना के कार्य को सफलता पूर्वक निष्पादित किया है.

यह बहुत खुशी की बात है कि मास्टरजी के बाद पोस्टमास्टर जी ने इस भरोसे को अर्जित कर लिया है. डाकघर अब बैंकों का काम करते हुए आपका खाता खोलते हैं, बुजुर्गों को पेंशन बांटते हैं, टेलीफोन और बिजली का बिल जमा करते हैं। क्या कुछ नहीं करते।   चिट्ठी-पत्री भले ही समय पर गन्तव्य तक पहुंचे ना पहुंचे, डाक सामग्री उपलब्ध हो न हो, लेकिन इस बात का पूरा विश्वास है कि गंगाजल की तरह दाल भी जरूर हमारी रसोई तक पहुँच जायेगी. डाकिया बाबू के इंतज़ार के वे मार्मिक दिन बस अब लौटने ही वाले हैं.

ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रिजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018  

  

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