Thursday, June 16, 2022

मुस्कुराइए और कत्ल कर दीजिए

मुस्कुराइए और कत्ल कर दीजिए

अगर विचार करें तो पाएंगे कि जिस तरह आदमी अलग अलग तरह से रोता है,उसी तरह अलग अलग प्रकार से हंसता भी है। कोई खुलकर ठहाके लगाता है तो कोई खिसियानी हंसी हंसता है। और भी भिन्न रूप देखे जा सकते हैं हंसी के, लेकिन जो बात 'मुस्कुराहट' में है वह भला और कहां! मुस्कुराहट को किसी ने मनमोहक मीठी छुरी भी कहा है, खून भी नहीं बहता और सामने वाला कत्ल हो जाता है।

बहरहाल, इन दिनों मैं उनकी मुस्कुराहट का कायल हो गया हूँ । वे अक्सर टीवी पर होने वाली बहसों में दिखाई देते हैं। बहस का मुद्दा कुछ भी रहा हो, चाहे जो दलीलें दी जा रहीं हों , मुझे कोई फर्क नही पडता, मैं तो बस उनकी मुस्कुराहट में डूबा रहता हूँ। विपक्षी वक्ता के वक्तव्य पर वे मुस्कुराहट की ऐसी छुरी चलाते हैं कि सामनेवाला लहुलुहान हो जाता है। निसन्देह उनकी मुस्कुराहट उनके व्यक्तित्व और आचरण पर कोई विपरीत प्रभाव नही छोडती लेकिन वह एक ऐसी ढाल जरूर बन जाती है जो विपक्षी प्रवक्ता के तीखे शब्द बाणों की मारक क्षमता को बोथरा कर देती है।

बहरहाल, बात मुस्कुराहट की निकली है तो मुझे चीन की वह लोकप्रिय कहावत याद आ रही है जिसमें कहा गया है कि ‘मुस्कुराएँ और सभ्य नागरिक बनें’। चीन और हमारे देश की संस्कृति में बहुत सी समानता होने के बावजूद मुझे नही लगता कि हमारे यहाँ मुस्कुराहट और सभ्यता के बीच ऐसा कोई रिश्ता सही बैठता होगा। यह सही है कि मुस्कुराहट एक संक्रामक क्रिया है,अगर आप मुस्कुरा रहे हैं तो सामनेवाला भी मुस्कुराने लगता है, लेकिन यह कतई जरूरी नही है कि हर मुस्कुराते व्यक्ति के भीतर सभ्यता या मूल्यों की मधुरता के सोते फूट रहे होंगे।

किसी व्यक्ति का जनाजा उठ रहा है और आप मुस्कुरा रहे हैं, पडोसी की बिटिया को मुहल्ले का गुंडा परेशान कर रहा है और आप गुंडे की हरकत पर उसके सम्मान में मुस्कुराहट के फूल बरसा देते हैं। आन्दोलनकारी किसानों और अपने हक के लिए प्रदर्शन करते मजदूरों पर पुलिस की लाठियों और पानी की बौछार से भागते गिरते लोगों को देखकर आपकी आंखों में पानी नही आता बल्कि आप खिलखिला उठते हैं। चीन की यह कहावत कोई गारटी नही देती कि जो मुस्कुरा रहा है वह सभ्य या सुसंस्कृत होगा ही। इसकी बजाय हमारे एक फिल्मी गीत का दर्शन शायद अधिक सटीक उत्तर देने की क्षमता रखता है। गीत में कहा गया है -‘मुस्कुराते हुए दिन बिताना..’ । गीत में आगे यह दावा नही किया गया है कि इससे आप सभ्य बन जाएँगे बल्कि समय की अनिश्चितता की आशंका व्यक्त करते हुए आगाह किया गया है कि-‘यहाँ कल क्या हो किसने जाना..’ आज तो जी भर कर मुस्कुरा लो ,कल का क्या भरोसा, मुस्कुराहट पर कल कोई नया नियम कानून लागू हो जाए या बुद्धिमत्ता और सहिष्णुता की तरह मुस्कुराने को भी हीनता के भाव से एक गलती की तरह देखा जाने लगे। तब शायद मुस्कुराना भी दूभर हो जाए। इसलिए जितना हो सके बस मुस्कुराते रहिए। चीन में मुस्कुराहट का कोई सम्बन्ध भले होता हो, हम तो अपनी सभ्यता खुद बनाते हैं। पेट्रोल के दाम बढ़ें या नींबू ,प्याज के। बकासुरों के आग उगलते बयान हों या बुलडोजरों से कुचले घरों से निकली सिसकारियां। हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। हम चुपचाप मुस्कुराते रहते हैं। जितना चाहते हैं, जब चाहते हैं,मुस्कुराते हैं।

आप भी बेआवाज मुस्कुराइए। पर ध्यान रखें ठहाका मत लगाइए। वह लाउड होता है। महाभारत का कारण बनता है। अपने प्राकृतिक स्पीकर को लाउडस्पीकर न बनने दें। मुस्कुराहट में मोहकता है। मोहते रहिए। इसी में सबका कल्याण है। इति!!

ब्रजेश कानूनगो

Saturday, June 4, 2022

पानीपुरी है दुनिया का सबसे अहम जायका

पानीपुरी है दुनिया का सबसे अहम जायका

वे आए। पूरे लवाजमें के साथ आए। उन्होंने बहुत सी बातें कीं। गरीब के कंधे पर विश्वास का हाथ रखा। दुखी बिटिया के आंसू पौंछे। राज्य का मुखिया हो या देश का, उनका ऐसा करना भला लगता है। उनका मुस्कुराना, भावुक हो जाना एक ओर जहां मनुष्य के मन पर भावनाओं की फुहार करता है वहीं अगले चुनावों में वोट की बौछारों में बढ़ौतरी भी सुनिश्चित करता है।

वे सबके साथ भोजन करते हैं। चाट चौपाटी पर गोलगप्पे खाते हैं। अच्छा लगता है। वे हमारे जैसे हैं। हममें से ही एक होते हैं।  बहरहाल, उन्होंने पानीपूरी का भी आनंद लिया होगा।

मुझे लगता है दुनिया ‘नारंगी’ की तरह न होकर ‘पानीपूरी’ की तरह है। एक विशाल पानीपूरी जिसके भीतर जिन्दगी का जायका है। यदि नारंगी की तरह होती तो उसमें बस एक ही स्वाद होता। इस बहुरंगी दुनिया में कितने सारे रस भरे हुए हैं...जीवन के अनेक जायके इस बड़ी पानी पूरी के भीतर लबालब भरे पड़े हैं। और यह भी सच है कि प्राणीमात्र का जीवन जायके पर ही कायम है। रिश्तों की मिठास है, दुःख का खारापन, दुश्मनी की खटास, घृणा की कड़वाहट...और भी बहुत से जायके हैं... स्वाद नहीं तो जीवन बेकार है।


खाने के लिए जीने वाले लोग हों या जीने के लिए खाने वाले, जायका और स्वादिष्टता सबको आकर्षित करती है। सराफा बाजार के रात्रि कालीन ठीये हों या ‘खाऊगली’ की पैंतीस गुमटियां या इंदौर की छप्पन दुकान। स्वाद सागर के पास की ‘चाट चौपाटी’ हो या ‘ सिटी उद्यान ’ की छतरियाँ, जायके का यही आकर्षण जिव्हा की स्वाद ग्रंथियों को ललचाने लगता है और लोग अपनी दुनिया को स्वादिष्ट बनाने की तमन्ना लिए खिंचे चले आते हैं।

स्वाद से भरी इस महकती दुनिया के माथे की बिंदिया होती है ‘पानीपूरी’ की दूकान। इसके बिना बाजार सौभाग्यहीन है। गुलाब जामुन है, पेटिस है, कचोरी है, रबडी है, समोसा है, दही बड़ा है लेकिन पानी पतासे का ठेला नजर नहीं आए तो संसार नीरस लगेगा। लेकिन ऐसा होता नहीं है। हमारे विश्वास की तरह वह होता है और जरूर होता है। शरीर में आत्मा और भोजन में नमक की तरह ‘फूड बाजार’ के प्राण ‘पानीपूरी के ठिये’ में बसे होते हैं।


जहां ‘चाट’ होगी, वहां चटोरे भी होंगे। जो चटोरे नहीं भी हैं, लेकिन चाट के ठेले या दूकान के करीब हैं, उन्हें चटोरा होने से कोई रोक नहीं सकता। पानीपूरी चुम्बक है और यह शरीर मात्र लोहे का टुकड़ा...ऐसा नहीं कि ‘बाजार से निकला हूँ...खरीददार नहीं हूँ...!’  ‘दुनिया में आए हैं तो जीना ही पडेगा...!’ गुनगुनाते हुए पानीपूरी की प्याली आगे बढाते हुए बोलना ही पडेगा..’भैया, ज़रा पुदीने वाली बनाना..!’

किसी गुब्बारे की तरह फूले हुए पतासे के भीतर स्वाद का सागर हिलोरें मारता रहता है। अब तो ‘ठेले पर हिमालय’ की बजाए विभिन्न जायकों के नौ समुद्र स्टील के मर्तबानों में पतासों के पेट से होकर हमारे भीतर उतर जाने को लालायित रहते हैं। इन समन्दरों के ज्वार-भाटे इतने तेज होते हैं की उनके प्रभाव से अगले पतासे के इंतज़ार में खडे जातक (बंदा) के भीतर की ग्रंथियों में अद्भुत रसयुक्त रिसन होने लगती है। वह बैचैन होने लगता है। लेकिन जैसे ही पानीपूरी वाला एक छलकती दुनिया उसके प्यालें में धर देता है, वह सर्वोच्च आनंद और संतोष से निहाल हो जाता है। इस पापी पेट की दुनिया में भी हमें इस ‘असीम सुख’ के अलावा और चाहिए भी क्या !

जैसे ही रस भरा गुब्बारा मुंह में पहुंचकर फटता है,स्वाद की नौ रसधार जिव्हा से होकर मन और आत्मा तक को आनंदित करने लगती है। कौन ऐसा व्यक्ति होगा जिसके इस अनुपम आनंद में बढ़ती महंगाई, नफरती बयानों या बेरोजगारों के बुझे हुए चेहरों का स्मरण हो पाता होगा।

राजा हो या रंक, नेता हो या वोटर, पार्षद हो या मंत्री सभी इस सुख की तमन्ना मन में बसाए रखते हैं। पानीपूरी का जायका इस दुनिया को एक बेहतरीन तोहफा है।

ब्रजेश कानूनगो