Saturday, June 4, 2022

पानीपुरी है दुनिया का सबसे अहम जायका

पानीपुरी है दुनिया का सबसे अहम जायका

वे आए। पूरे लवाजमें के साथ आए। उन्होंने बहुत सी बातें कीं। गरीब के कंधे पर विश्वास का हाथ रखा। दुखी बिटिया के आंसू पौंछे। राज्य का मुखिया हो या देश का, उनका ऐसा करना भला लगता है। उनका मुस्कुराना, भावुक हो जाना एक ओर जहां मनुष्य के मन पर भावनाओं की फुहार करता है वहीं अगले चुनावों में वोट की बौछारों में बढ़ौतरी भी सुनिश्चित करता है।

वे सबके साथ भोजन करते हैं। चाट चौपाटी पर गोलगप्पे खाते हैं। अच्छा लगता है। वे हमारे जैसे हैं। हममें से ही एक होते हैं।  बहरहाल, उन्होंने पानीपूरी का भी आनंद लिया होगा।

मुझे लगता है दुनिया ‘नारंगी’ की तरह न होकर ‘पानीपूरी’ की तरह है। एक विशाल पानीपूरी जिसके भीतर जिन्दगी का जायका है। यदि नारंगी की तरह होती तो उसमें बस एक ही स्वाद होता। इस बहुरंगी दुनिया में कितने सारे रस भरे हुए हैं...जीवन के अनेक जायके इस बड़ी पानी पूरी के भीतर लबालब भरे पड़े हैं। और यह भी सच है कि प्राणीमात्र का जीवन जायके पर ही कायम है। रिश्तों की मिठास है, दुःख का खारापन, दुश्मनी की खटास, घृणा की कड़वाहट...और भी बहुत से जायके हैं... स्वाद नहीं तो जीवन बेकार है।


खाने के लिए जीने वाले लोग हों या जीने के लिए खाने वाले, जायका और स्वादिष्टता सबको आकर्षित करती है। सराफा बाजार के रात्रि कालीन ठीये हों या ‘खाऊगली’ की पैंतीस गुमटियां या इंदौर की छप्पन दुकान। स्वाद सागर के पास की ‘चाट चौपाटी’ हो या ‘ सिटी उद्यान ’ की छतरियाँ, जायके का यही आकर्षण जिव्हा की स्वाद ग्रंथियों को ललचाने लगता है और लोग अपनी दुनिया को स्वादिष्ट बनाने की तमन्ना लिए खिंचे चले आते हैं।

स्वाद से भरी इस महकती दुनिया के माथे की बिंदिया होती है ‘पानीपूरी’ की दूकान। इसके बिना बाजार सौभाग्यहीन है। गुलाब जामुन है, पेटिस है, कचोरी है, रबडी है, समोसा है, दही बड़ा है लेकिन पानी पतासे का ठेला नजर नहीं आए तो संसार नीरस लगेगा। लेकिन ऐसा होता नहीं है। हमारे विश्वास की तरह वह होता है और जरूर होता है। शरीर में आत्मा और भोजन में नमक की तरह ‘फूड बाजार’ के प्राण ‘पानीपूरी के ठिये’ में बसे होते हैं।


जहां ‘चाट’ होगी, वहां चटोरे भी होंगे। जो चटोरे नहीं भी हैं, लेकिन चाट के ठेले या दूकान के करीब हैं, उन्हें चटोरा होने से कोई रोक नहीं सकता। पानीपूरी चुम्बक है और यह शरीर मात्र लोहे का टुकड़ा...ऐसा नहीं कि ‘बाजार से निकला हूँ...खरीददार नहीं हूँ...!’  ‘दुनिया में आए हैं तो जीना ही पडेगा...!’ गुनगुनाते हुए पानीपूरी की प्याली आगे बढाते हुए बोलना ही पडेगा..’भैया, ज़रा पुदीने वाली बनाना..!’

किसी गुब्बारे की तरह फूले हुए पतासे के भीतर स्वाद का सागर हिलोरें मारता रहता है। अब तो ‘ठेले पर हिमालय’ की बजाए विभिन्न जायकों के नौ समुद्र स्टील के मर्तबानों में पतासों के पेट से होकर हमारे भीतर उतर जाने को लालायित रहते हैं। इन समन्दरों के ज्वार-भाटे इतने तेज होते हैं की उनके प्रभाव से अगले पतासे के इंतज़ार में खडे जातक (बंदा) के भीतर की ग्रंथियों में अद्भुत रसयुक्त रिसन होने लगती है। वह बैचैन होने लगता है। लेकिन जैसे ही पानीपूरी वाला एक छलकती दुनिया उसके प्यालें में धर देता है, वह सर्वोच्च आनंद और संतोष से निहाल हो जाता है। इस पापी पेट की दुनिया में भी हमें इस ‘असीम सुख’ के अलावा और चाहिए भी क्या !

जैसे ही रस भरा गुब्बारा मुंह में पहुंचकर फटता है,स्वाद की नौ रसधार जिव्हा से होकर मन और आत्मा तक को आनंदित करने लगती है। कौन ऐसा व्यक्ति होगा जिसके इस अनुपम आनंद में बढ़ती महंगाई, नफरती बयानों या बेरोजगारों के बुझे हुए चेहरों का स्मरण हो पाता होगा।

राजा हो या रंक, नेता हो या वोटर, पार्षद हो या मंत्री सभी इस सुख की तमन्ना मन में बसाए रखते हैं। पानीपूरी का जायका इस दुनिया को एक बेहतरीन तोहफा है।

ब्रजेश कानूनगो

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