Monday, May 29, 2017

चड्डी बनियान और चौर्य प्रबंधन

व्यंग्य
चड्डी बनियान और चौर्य प्रबंधन
ब्रजेश कानूनगो  


बेचारे 'चड्डी- बनियान'  फिर चर्चा में आ गए।  हर बार अपने काम को अंजाम देते हुए धर लिए जाते हैं। कहा जाता है पकड़े गए लोग चड्डी बनियान गिरोह के आदमी थे। यों देखा जाए तो ऊपरी गणवेश उतार दिया जाए तो लगभग हर व्यक्ति  इसी गिरोह का सदस्य होता है। कुर्ते-धोतीटी-शर्ट ट्राउजर के पीछे क्या है टाइप.  

यह भी एक सच है कि चड्डी बनियान गिरोह का आमतौर पर कार्य प्रबंधन ठीक नही होता है। प्रबंधन का सूत्र कहता है कि सफलता पाने के लिए  'टीम वर्कपर भरोसा करना चाहिए। जब किसी व्यक्ति के पास कार्य विशेष की जिम्मेदारी आती है तो वह अपनी एक टीम बनाता है। हर क्षेत्र में यही होता है। सामाजिक क्षेत्र हो, प्रशासनिकराजनैतिकखेलकूद या किसी योजना परियोजना के क्रियान्वयन का मसला होएक टीम तैयार करना बेहद जरूरी है।
अब टीम बोले तो इसे दल कहेंसमूह कहें या गिरोह सभी लगभग पर्यायवाची शब्द ही हैं। सामान्यतः  दल और समूह कुछ भी करते हों लेकिन रचनात्मक और लोक हितकारी कामों में संलग्न दिखाई देते रहते हैंलेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो ऐसा नहीं जता पाते या फिर अपने स्वार्थ और लालच में तथाकथित अनैतिक गतिविधियों को अंजाम देते हैं। इन्हें 'गिरोह'कहने का चलन है हमारे कुलीन समाज में.
समूह हो, टीम हो या गिरोह ही क्यों न हो हरेक की अपनी विशेष आइडेंटिटी होती है। कोई चिन्हगणवेश, बैजदुपट्टा आदि से पता चल जाता है कि समूह के दिल में कौनसा विचार और हाथों में इन दिनों कौनसा औजार है. वह आखिर किस जमीन की मिट्टी खोदने में लगा हुआ है। विकास की सड़क बन रही हैप्यासे के लिए कुएं का निर्माण हो रहा है अथवा व्यवस्था और सौहार्द्र की कब्र खोदने का काम प्रगति पर है।
उजली दुनिया में टीम वर्क का बोलबाला होता ही है वहीं स्याह दुनिया के सरताज  'गिरोहबनाकर अपने काम को अंजाम देते हैं। उनके यहां भी वही सब होता है जो उजली दुनिया के समूहों के पास होता है। उनकी भी खास पहचान होती है जैसे पहले काले कुर्ते और धोती पहनकर घोड़े पर सवार मुंह को गमछे में छिपाए डाकुओं का गिरोह धावा कर देता था वैसे ही अब कुछ गिरोह नकाब पहन कर गनपिस्टल,चाकू के साथ प्रकट होते हैं और आतंक मचाते संपत्ति लूट कर  अपने बिलों में लौट जाते हैं। 
जिन बेचारों की सामर्थ्य नहीं होती वे चड्डी-बनियान को ही अपना 'चौर्य किटबनाकर लूटपाट करने लगते हैं। चड्डी बनियान गिरोह प्रायः आसानी से पकड़ भी लिए जाते हैं। 
डिजायनर और ब्रांडेड कपड़ों वाले लुटेरे गिरोह आसानी से पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ पाते। पकड़े जाने के बाद उनके वकीलों से जूझना भी कठिन समस्या खड़ी कर देता है। दिन के उजालों में उजले लोग काले कारनामों के बाद भी बच निकलने में सफल हो जाते है जबकि  चड्डी बनियान वाला अंधेरे में भी कपड़े उतारकर भी गिरफ्त में आ जाता है।  ऐसा लगता है उसके टीमवर्क में कहीं तो कोई कमी अवश्य रह जाती है। क्या कहते हैं आप !

ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर 452018

कुछ लघु व्यंग्य

कुछ लघु व्यंग्य 

1  
व्यंजना 

'आज जो चड्डी-बनियान गिरोह पर लेख पढ़ा आपका , उसमें आप अपराधी के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं।' साधुरामजी ने आपत्ति जताई।

'वह व्यंग्य लेख है मित्र, उन फटेहाल चोरों के पक्ष में नहीं है जो रात में छोटी मोटी चोरियां करते हैं। बल्कि पूरी टीम वर्क के साथ दिन के उजाले में देश को लूटने वाले सफेदपोश बड़े अपराधियों पर व्यंजना और लक्षणा शब्द शक्तियों में प्रहार करने की कोशिश की गई है।' व्यंग्यकार ने सफाई देते हुए कहा।


'किंतु ऐसा स्पष्टतः समझ में आता नहीं लेख पढ़कर।' साधुरामजी बोले।

'वह तो समझना पड़ता है मित्र। साहित्य में बहुत से अव्यक्त को पढ़ना आना चाहिए।' व्यंग्यकार ने कहा।

'फिर भी,आपको स्पष्ट लिखना चाहिए कि आप सफेदपोश लुटेरों पर प्रहार कर रहे हैं।' साधुरामजी अपनी बात पर अड़े रहे।


'साहित्यिक विधा में ऐसा नहीं होता मित्र, पत्थर फेंकने और लाठी चलाने से अलग होता है रचनात्मक प्रहार।और अभिधा में लिखी रचना तो फिर एक रिपोर्टिंग में बदल जाती है। व्यंजना, लक्षणा शक्तियां व्यंग्य के खास औजार होते हैं।' व्यंग्यकार ने ज्ञान बांटा।


'नहीं, यह तो ठीक नहीं है बिल्कुल। स्वीकार्य नहीं हमें। ये शक्तियां तो  बहुत अराजक और आतंकी लगती हैं अपने आचरण से। इन्हें तुरंत निष्काषित करिये साहित्य से। अन्यथा हमें कोई कानून लाना पड़ेगा।' कहते हुए  साधुरामजी नें अभिधा शक्ति में  देशभक्ति से परिपूर्ण एक जोशीले नारे का उद्घोष किया और  दफ्तर को निकल लिए। 


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2
अभिमत 


उनकी कविताओं का नया संग्रह आया तो साधुरामजी बधाई देते हुए बोले- ' बढ़िया है किताब आपकी।'
'
धन्यवाद, कुछ सामग्री पर भी कहिए!' उन्होंने खुश होकर कहा।
'
सामग्री भी बढ़िया है, कागज की क्वालिटी बेहतर है।' साधुरामजी बोले।

'
मेरा मतलब है, कविताओं पर अपना अभिमत व्यक्त कीजिये।' 
'
मेरे कुछ कहने से क्या होगा? फ्लैप पर जो वरिष्ठ कवि ने व्यक्त कर दिया है उससे बेहतर भला मैं और आगे क्या कुछ कह पाऊंगा!' साधुरामजी ने कहा।

'
अरे ,नहीं मित्र! आप  मेरी कविताओं पर अपने विचार रखेंगे तो वह मौलिक होंगे।' 
'
ऐसा क्यों? क्या फ्लैप पर वरिष्ठ कवि का लिखा ब्लर्ब मौलिक नहीं है?'
'
जी, वह मैंने स्वयं ही लिख लिया था,उनके नाम से।'

'
अरे भाई तो जो पिछले दिनों अखबार में समीक्षा आई है,उसमें भी तो वरिष्ठ आलोचक ने बड़ी प्रशंसा की है, तुम्हारी कविताओं की।' 

'
अब जाने दीजिए!' उन्होंने निराश होकर कहा 'आपसे नहीं होगा, मैं ही लिख लेता हूँ आपका अभिमत।'

ब्रजेश कानूनगो 

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3
विवेक 

साधुरामजी ने अपनी लायब्रेरी की कविता संग्रहों की सारी पुस्तकें कबाड़ी को बेच दीं तो मैंने पूछा- गद्य की क्यों नहीं बेची?

उन्होंने स्पष्टीकरण दिया- गद्य की किताब की बजाय,कविता की किताब का पन्ना स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक रहता है।

'
क्या मतलब?' में भौचक्क रह गया।

'
कबाड़ी से किताबों की रद्दी मंगू चाटवाला खरीदता है, समोसे पर कम शब्दों की स्याही चिपकती है, जिससे  बीमारी की संभावना का प्रतिशत भी घट जाता है।'

ब्रजेश कानूनगो

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ब्रजेश कानूनगो
503,
गोयल रीजेंसी,चमेली पार्क,कनाड़िया रोड, इंदौर - 452018