Monday, April 17, 2017

पानीपूरी की जायकेदार दुनिया

व्यंग्य 
पानीपूरी की जायकेदार दुनिया
ब्रजेश कानूनगो  

मुझे लगता है दुनिया ‘नारंगी’ की तरह न होकर ‘पानी पूरी’ की तरह है. एक विशाल पानी पूरी जिसके भीतर जिन्दगी का जायका है. यदि नारंगी की तरह होती तो उसमें बस एक ही स्वाद होता. इस बहुरंगी दुनिया में कितने सारे रस भरे हुए हैं...जीवन के अनेक जायके इस बड़ी पानी पूरी के भीतर लबालब भरे पड़े हैं. और यह भी सच है कि प्राणीमात्र का जीवन जायके पर ही कायम है. रिश्तों की मिठास है, दुःख का खारापन, दुश्मनी की खटास, घृणा की कड़वाहट..और भी बहुत से जायके हैं..  स्वाद नहीं तो जीवन बेकार है.

खाने के लिए जीने वाले लोग हों या जीने के लिए खाने वाले, जायका और स्वादिष्टता सबको आकर्षित करती है. सराफा बाजार के रात्रि कालीन ठीये हों या ‘खाऊ गली’ की पैंतीस गुमटियां. स्वाद सागर के पास की ‘चाट चौपाटी’ हो या ‘छप्पन भोग’ की छतरियाँ, जायके का यही आकर्षण जिव्हा की स्वाद ग्रंथियों को ललचाने लगता है और लोग अपनी दुनिया को स्वादिष्ट बनाने की तमन्ना लिए खींचे चले जाते हैं.

स्वाद से भरी इस महकती दुनिया के माथे की बिंदिया होती है ‘पानीपूरी’ की दूकान. इसके बिना बाजार सौभाग्यहीन है. गुलाब जामुन है, पेटिस है, कचोरी है, रबडी है, समोसा है, दही बड़ा है लेकिन पानी पतासे का ठेला नजर नहीं आये तो संसार नीरस लगेगा... लेकिन ऐसा होता नहीं है. हमारे विश्वास की तरह वह होता है और जरूर होता है. शरीर में आत्मा और भोजन में नमक की तरह ‘फूड बाजार’ के प्राण ‘पानी पूरी के ठिये’ में बसे होते हैं.

जहां ‘चाट’ होगी, वहां चटोरे भी होंगे. जो चटोरे नहीं भी हैं, लेकिन चाट के ठेले या दूकान के करीब हैं, उन्हें चटोरा होने से कोई रोक नहीं सकता. पानीपूरी चुम्बक है और यह शरीर मात्र लोहे का टुकड़ा...ऐसा नहीं कि ‘बाजार से निकला हूँ..खरीददार नहीं हूँ...!’  ‘दुनिया में आयें हैं तो जीना ही पडेगा...!’ गुनगुनाते हुए पानी पूरी की प्याली आगे बढाते हुए बोलना ही पडेगा..’भैया, ज़रा पुदीने वाली बनाना..!’

किसी गुब्बारे की तरह फूले हुए पतासे के भीतर स्वाद का सागर हिलोरें मारता रहता है. अब तो ‘ठेले पर हिमालय’ की बजाये विभिन्न जायकों के नौ समुद्र स्टील के मर्तबानों में पतासों के पेट से होकर हमारे भीतर उतर जाने को लालायित रहते हैं. इन समन्दरों के ज्वार-भाटे इतने तेज होते हैं की उनके प्रभाव से अगले पतासे के इंतज़ार में खडे जातक (बंदा) के भीतर की ग्रंथियों में अद्भुत रसयुक्त रिसन होने लगती है. वह बैचैन होने लगता है. लेकिन जैसे ही पानी पूरी वाला एक छलकती दुनिया उसके प्यालें में धर देता है. वह सर्वोच्च आनंद और संतोष से निहाल हो जाता है. इस पापी पेट की दुनिया में भी हमें इस ‘असीम सुख’ के अलावा और चाहिए भी क्या !

ब्रजेश कानूनगो

Wednesday, April 5, 2017

माफी नहीं मुक्ति का मार्ग


व्यंग्य 
माफी नहीं मुक्ति का मार्ग अपनाइए  
ब्रजेश कानूनगो
 

यदि कोई व्यक्ति कुछ ऐसा कार्य करता है जो किसी के प्राकृतिक और वैध सुख में बाधा डालता हो, देश के कानून का उलंघन करता हो या सामाजिक मान्यता से  पाप और संवैधानिक रूप से अपराध की श्रेणी में आता हो, वह व्यक्ति दंड का भागीदार है। अब ये और बात है कि कभी कभी उसे माफ भी किया जा सकता है।

कर्ज लेने वाले किसान अपराधी नहीं होते हैं। कर्ज लेकर उन्होंने कोई पाप भी नहीं किया होता है,बल्कि वे अपने खून,पसीने से अनाज के दाने सींच कर समाज में सुखों की फसल खड़ी करते हैं। कर्ज लेना उनकी विवशता जरूर हो सकती है।

सरकारें भी स्थितियों के दबाव में व्यापक  'कर्ज माफी' जैसे निर्णय लेने को विवश हो जाती है।किसानों को भी 'कर्ज माफी' जैसी प्रक्रिया से गुजरना होता है। किसानों के दुख दर्द दूर करने की इस अस्थायी पहल का कदापि गलत नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन मेरी आपत्ति इस मामले में  'माफी' शब्द के भाषिक प्रयोग को लेकर है।


जो लोग यह समझते हैं कि 'कर्ज माफी' से समस्या से 'मुक्ति' मिल जाएगी वे भ्रम में पड़े हैं। 'अम्मी' और 'मम्मी' की तरह दोनों एक नहीं है। 'माफी' और 'मुक्ति' में खासा अंतर होता है।

मुक्ति' का हमारे संस्कारों में बड़ा आध्यात्मिक महत्व रहा है। इस शब्द से पवित्रता की सुगंध बिखरती है। संसार से मुक्ति के बाद आदमी इस दुनिया की गंदगी को छोड़कर ईश्वर में विलीन हो जाता है। बुरा से बुरा व्यक्ति देह मुक्ति के बाद आदरणीय और पूजनीय होने की अभिलाषा में तड़पता रहता है। कुछ अच्छे और भले बुजुर्ग जिन्हें होनहार संतानें वृद्धाश्रमों में भर्ती कराकर अपना वर्तमान सुखद बनाने  का प्रयास करते हैं, वे भी देह मुक्ति के बाद मोतियों की माला पहनकर अपनी  संतति को दुआओं से नवाजते हैं।

यही कारण है कि इसी आध्यात्मिक और पवित्रता को ध्यान में रखकर हमारे यहां 'मुक्ति' शब्द का अधिकाधिक  प्रयोग करने की कोशिश रहती आई है। स्वतंत्रता संग्राम के व्यापक 'फिरंगी मुक्ति' आंदोलन के बाद 'गरीबी मुक्ति' पर हमारा जोर रहा। इसी बड़े उद्देश्य को  लेकर कई मुक्ति अभियान चलते रहे हैं।

'मलेरिया, चेचक,पोलियो मुक्ति' के अलावा और भी प्रयास हुए हैं। हम एक बुराई से देश को मुक्त करते हैं, रावण के सर की तरह फिर नया अभिलाषी मुक्ति की कामना लिए सामने आ खड़ा होता है- ये लो, में आ गया।, फिर उससे मुक्ति के उपायों में जुट जाते हैं. यह एक निरंतर प्रक्रिया है.  

आप खुद समझदार हैं सो थोड़े कहे में ज्यादा समझने की काबिलियत आप में है।माफी से किसानों और कर्जदारों के दुख दूर होते हैं। मुक्ति अभियानों में प्रायोजकों, अभिनेताओं,बिचौलियों और अधिकारियों की भी चांदी होती है। काम ऐसा हो जिसमें सबका भला हो। 

बाबा कबीर कह गए हैं ' ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय।' 'मुक्ति' में भी ढाई अक्षर हैं और 'प्रेम' में भी। देश को विश्व का पंडित(गुरु) बनाने के लिए बहुत आवश्यक है कि हम 'मुक्ति' को प्रेम पूर्वक आत्मसात करें। मुक्ति मार्ग सबके कल्याण का पथ होता है। 'मुक्ति' शब्द में विवश व्यक्ति के कल्याण का भाव है,जबकि 'माफी' में अपराधी को 'माफ' कर देने की राजसी प्रवत्ति का बोध होता है। जरा सोचिए!!  

ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रीजेंसी,चमेली पार्क,कनाड़िया रोड, इंदौर 452018

मुक्तिमार्ग और उसका माहात्म्य

व्यंग्य
मुक्तिमार्ग और उसका माहात्म्य  
ब्रजेश कानूनगो 
 
ज्यादातर शहरों में जो गलियां और रास्ते श्मशान की दिशा में जाते हैं उन्हें 'मुक्ति मार्ग' कहा जाता है। इन रास्तों के नामकरण के संदर्भ में कभी विवाद पैदा नहीं होते।   'कबीर मार्ग' या 'रैदास मार्ग' जैसा यदि कुछ पुराना नाम हुआ भी तो वह अपने आप कालांतर में  'मुक्ति मार्ग' नाम में रूपांतरित हो जाता है। 


श्मशान की दिशा में जाने वाले रास्ते के नामकरण में कभी कोई बांदा या लफडा नहीं पड़ता।  अन्य सडकों के मामले में नगर पालिका और प्रशासन एक बड़ी झंझट में उलझ जाते हैं। 'धड़कन साहित्य समिति' का आग्रह रहता है कि अमुक मार्ग का नाम 'महादेवी पथ' रखा जाए, वहीं 'भभूति भजन मंडली' का दबाव बनता है कि मार्ग का नाम 'भोलेनाथ' पर होना चाहिये। उनका कहना भी ठीक है।  शिवमंदिर तक पहुंचने वाले रास्ते का नाम लोगों का कल्याण करने वाले भगवान शिवशंकर के नाम पर नहीं होगा तो क्या किसी सेठ जी के नाम पर होगा। जबकि मंडी व्यापारी संघ चाहता है नामकरण नगर के प्रतिष्ठित दाल व्यवसायी के पितामह 'लच्छू सेठ' के नाम पर हो. भले ही  संघ उनके नाम पर पूर्व में बनी धर्मशाला में हुई आर्थिक गडबडियों का केस अदालत में लड़ रहा हो, लेकिन कोशिश यही रहती है कि सड़क को  प्रातः स्मरणीय समाजसेवी  'सेठ लक्ष्मीनारायण मार्ग ' के नाम पर ही पुकारा जाए।

वैसे नामकरण से होता भी क्या है. रज्जब अली खां मार्ग पर रहने वाले स्वयं नहीं जानते कि खां साहब के संगीत की दुनिया में कैसे जलवे हुआ करते थे. रवीन्द्रनाथ टैगौर मार्ग किसी शोपिंग माल के नाम से जाना जाता है. अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के नाम पर बने एमजी रोड पर कई शहरों में हलाल और झटके का मटन बिकता रहता है. की शहरों के मुक्ति मार्गों पर एक अलग तरह का कारोबार सेट हो चुका है. जहां गमछों,टोपी, टॉवेल से लेकर कुंकू और म्रत्यु को प्राप्त हुए भले मानुष पर उड़ाने के लिए चिल्लर तक की दुकानें खुली हैं. कुछ लोगों ने भूख को मृत्यु से भी ऊपर स्थान देकर नाश्ते की दुकाने जमा ली हैं. ‘मुक्ति पथ के मूंग बड़े’ से लेकर ‘परम धाम पूड़ी सेंटर’ तक.

बहरहाल हम बात मुक्ति मार्ग की ही करते हैं. जिस तरह किसी ख़ास विचारधारा  या दर्शन के अनेक पंथ और उप धाराएं होती हैं या राजनीतिक दलों के कई अनुषंगी सेवा प्रकल्प होते हैं उसी तरह मुख्य मुक्ति मार्ग से जुड़ी गलियों को भी मुक्तिमार्ग गली नंबर एक, दो, तीन आदि के रूप में मान्यता मिलती जाती है। इसी पते पर गांव में शेष बचे  बुजुर्गों की देह मुक्ति का समाचार लाकर डाकिया भी कोने कटे पोस्ट कार्ड को ईमानदारी से डिलीवर करके, एक बड़ी राष्ट्रीय  जिम्मेदारी से मुक्त होता रहता है।


ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर 452018