Wednesday, April 5, 2017

माफी नहीं मुक्ति का मार्ग


व्यंग्य 
माफी नहीं मुक्ति का मार्ग अपनाइए  
ब्रजेश कानूनगो
 

यदि कोई व्यक्ति कुछ ऐसा कार्य करता है जो किसी के प्राकृतिक और वैध सुख में बाधा डालता हो, देश के कानून का उलंघन करता हो या सामाजिक मान्यता से  पाप और संवैधानिक रूप से अपराध की श्रेणी में आता हो, वह व्यक्ति दंड का भागीदार है। अब ये और बात है कि कभी कभी उसे माफ भी किया जा सकता है।

कर्ज लेने वाले किसान अपराधी नहीं होते हैं। कर्ज लेकर उन्होंने कोई पाप भी नहीं किया होता है,बल्कि वे अपने खून,पसीने से अनाज के दाने सींच कर समाज में सुखों की फसल खड़ी करते हैं। कर्ज लेना उनकी विवशता जरूर हो सकती है।

सरकारें भी स्थितियों के दबाव में व्यापक  'कर्ज माफी' जैसे निर्णय लेने को विवश हो जाती है।किसानों को भी 'कर्ज माफी' जैसी प्रक्रिया से गुजरना होता है। किसानों के दुख दर्द दूर करने की इस अस्थायी पहल का कदापि गलत नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन मेरी आपत्ति इस मामले में  'माफी' शब्द के भाषिक प्रयोग को लेकर है।


जो लोग यह समझते हैं कि 'कर्ज माफी' से समस्या से 'मुक्ति' मिल जाएगी वे भ्रम में पड़े हैं। 'अम्मी' और 'मम्मी' की तरह दोनों एक नहीं है। 'माफी' और 'मुक्ति' में खासा अंतर होता है।

मुक्ति' का हमारे संस्कारों में बड़ा आध्यात्मिक महत्व रहा है। इस शब्द से पवित्रता की सुगंध बिखरती है। संसार से मुक्ति के बाद आदमी इस दुनिया की गंदगी को छोड़कर ईश्वर में विलीन हो जाता है। बुरा से बुरा व्यक्ति देह मुक्ति के बाद आदरणीय और पूजनीय होने की अभिलाषा में तड़पता रहता है। कुछ अच्छे और भले बुजुर्ग जिन्हें होनहार संतानें वृद्धाश्रमों में भर्ती कराकर अपना वर्तमान सुखद बनाने  का प्रयास करते हैं, वे भी देह मुक्ति के बाद मोतियों की माला पहनकर अपनी  संतति को दुआओं से नवाजते हैं।

यही कारण है कि इसी आध्यात्मिक और पवित्रता को ध्यान में रखकर हमारे यहां 'मुक्ति' शब्द का अधिकाधिक  प्रयोग करने की कोशिश रहती आई है। स्वतंत्रता संग्राम के व्यापक 'फिरंगी मुक्ति' आंदोलन के बाद 'गरीबी मुक्ति' पर हमारा जोर रहा। इसी बड़े उद्देश्य को  लेकर कई मुक्ति अभियान चलते रहे हैं।

'मलेरिया, चेचक,पोलियो मुक्ति' के अलावा और भी प्रयास हुए हैं। हम एक बुराई से देश को मुक्त करते हैं, रावण के सर की तरह फिर नया अभिलाषी मुक्ति की कामना लिए सामने आ खड़ा होता है- ये लो, में आ गया।, फिर उससे मुक्ति के उपायों में जुट जाते हैं. यह एक निरंतर प्रक्रिया है.  

आप खुद समझदार हैं सो थोड़े कहे में ज्यादा समझने की काबिलियत आप में है।माफी से किसानों और कर्जदारों के दुख दूर होते हैं। मुक्ति अभियानों में प्रायोजकों, अभिनेताओं,बिचौलियों और अधिकारियों की भी चांदी होती है। काम ऐसा हो जिसमें सबका भला हो। 

बाबा कबीर कह गए हैं ' ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय।' 'मुक्ति' में भी ढाई अक्षर हैं और 'प्रेम' में भी। देश को विश्व का पंडित(गुरु) बनाने के लिए बहुत आवश्यक है कि हम 'मुक्ति' को प्रेम पूर्वक आत्मसात करें। मुक्ति मार्ग सबके कल्याण का पथ होता है। 'मुक्ति' शब्द में विवश व्यक्ति के कल्याण का भाव है,जबकि 'माफी' में अपराधी को 'माफ' कर देने की राजसी प्रवत्ति का बोध होता है। जरा सोचिए!!  

ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रीजेंसी,चमेली पार्क,कनाड़िया रोड, इंदौर 452018

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