Thursday, January 27, 2022

व्यंग्य बाण : कुछ दोहे

 

व्यंग्य बाण : कुछ दोहे

ब्रजेश कानूनगो  

नीति राजनीति 

1
कल है उनका जन्मदिन
वे अवतार दबंग। 
मनुज हैं पर मना रहे,
प्रकट उत्सव प्रसंग।

2
यों आई समता यहां,
कारज बिना उपाय।
गंगू जी टोपी पहन
राजा भोज कहाय। 

3
ध्वजदंड लहराय के
ऊंचे सुर गरियाय।  
देख विरोधी सामने
फटके खूब लगाय। 

4
बोतल में है सोम रस,
यौवन का है संग।
अपना हक जो मांगता
रंजन करता भंग। 

5
लाते हैं जन योजना,
लोकतंत्र सिरमौर। 
प्रशस्ति बांचे मंडली,
ऐसा आया दौर।

6
सत्य रहा संदिग्ध ही,
मत समझो परिहास।
आज वही मैं लिख रहा,
झूठों का इतिहास।

8
गगरी अधजल झर गई,
मद में उसकी चाल।
मिला नहीं जल कंठ को,   
बुझा पाई आग।

9
विक्रेता वह बड़ा चतुर,
बोली यों लगाए।
जुमलों के सच झूठ से
कंकड़ भी बिक जाए।

10
अपने शाही देव को
छप्पन भोग चढ़ाय।
खेतीहर की पत्तल में,
काजू नहीं सुहाय। 

11
चीजें कुछ मिटती नहीं,
जैसे भ्रष्टाचार। 
दे दें उसको वैधता,
बुरा नहीं सुविचार।

12
मन धतूरा जुबाँ शहद,
एक छुरी मुस्काए।
ढाई आखर प्रेम का,
कब कैसे हो पाए।

14
रंग बिरंगी पोशाख़ें,
बदलूँ दिन में चार।
पहन सूट घोड़ी चढ़े,
छीतू खाए मार।

15
राज विरोधी बात जब,
देश द्रोह कह लाय।
'
बुद्धिजीवी' तंज बने,
ज्ञान भाड़ में जाय।

16
दिखता लीडर सामने,
डोर सेठ के हाथ।
नीति नियम वैसे बनें,
देते पूँजी साथ।

17
नया हो रहा इंडिया,
आया ऐसा काल।
हो बात अधिकारों की,
मचता खूब बवाल।  

18
यथा स्थिति से समझौता,
सुख की यही है कल।
कल की चिंता मत करो,
प्रभु जी निकालें हल।

19

चीजें कुछ मिटती नहीं,
जैसे भ्रष्टाचार। 
दे दें उसको वैधता,
बुरा नहीं विचार।

 

20

ध्वनि मत से पारित हो,

कानून वही सही।

कोई करे विरोध भी,

हम तक पहुँच  नहीं।

 

21

चले मिटाने गरीबी,

बढ़ गए नव अमीर।

हुआ नहीं लेवल ऊंचा,

बदली गयी लकीर।

 

22

सत्ता भोगिये इस तरह,

कूटनीति से आज।

दोष विरोधी पर मढो,

हो सके जब काज।

 

23

अपना मत जब कम पड़े,

अक्ल लगाएं खूब।

दुर्बल विपक्षी अश्व को,

ज़रा खिलाएं दूब।  

 

24

ना काहू से दोस्ती,

ना काहू से बैर।

जनता हो नाराज यदि,

नही किसी की खैर।

 

०००   

महामारी: पांच स्टेज

1
बहुत रहे दिन खुशहाल,
जैसे हो त्योहार।
खुद को डाल संकट में,
स्वयं पड़े बीमार।

2
नियम प्रकृति के बदले,
भोगा हमने कष्ट।
दूषित जल या संक्रमण,
जीवन सबका नष्ट।

3
अस्पताल सितारा में,
सुखी बहुत बीमार।
परिजन से डॉक्टर लगें,
सिस्टर है तीमार।

4
बीमारी छोड़े नहीं,
रोगी है लाचार।
सेवा करके रात दिन,
परिजन भी बीमार।

5
खबर मौत की गई,
मचा खूब कुहराम।
बचा रहे तब तक मनुज,
बीमा करता काम।

000


सुनो ससुरजी

1

रुके नहीं इच्छा प्रबल,
पाने को सम्मान।
डाले घास कोई
कैसे बनें महान।

2

नाच रहे बाजार में
ऐसे हैं हम मोर।
लिखें खूब कागज रंगें,   
छपते भी घनघोर।

3

दाल बराबर ये मुर्गी,
बुने महल का ख्वाब।
कितनी कटी निर्णय में,  
इसका नहीं जवाब। 

4

जामाता के दरद का,
ससुर यही उपचार।
सम्मानित करें तुरन्त
आप रहे सरकार।


5

यही हो रहा हर जगह,
कब कहाँ एतराज।
बटती खीर अपनों में,
समझो इसे रिवाज।

6

मिले हमे सम्मान यदि,
गौरव की ये बात।
पुत्री का भी मान बढ़े,
समझो इसको तात।

000 

 

 

बीता समय यों आए

 

1

सौ के ऊपर पैट्रोल,

मोटर का क्या काम।

बीता समय यों आए,

हाथ साइकिल थाम।

 

2

उड़े सिलेंडर गगन में,

कीमत जैसे गैस।

गोबर छाब चूल्हे पर,

घर में पालो भैंस।

 

3

घृतं दूध की नदी बहे,

गोधन है अनमोल।

रामू शामू खींचे हल,

डीजल खर्चा गोल।

 

4

रोटी होए सात्विक,

पके उपले आग

धरती से मानव जुड़े,

गाए जीवन राग।

 

5

गौरव किया अतीत पर ,

करते संस्कृति नाज

क्या मालूम इसी तरह,

जाए प्रभुराज    

 

०००

 

ब्रजेश कानूनगो