कुछ लघु व्यंग्य
1
व्यंजना
'आज जो चड्डी-बनियान गिरोह पर लेख पढ़ा आपका , उसमें आप अपराधी के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं।' साधुरामजी ने आपत्ति जताई।
'वह व्यंग्य लेख है मित्र, उन फटेहाल चोरों के पक्ष में नहीं है जो रात में छोटी मोटी चोरियां करते हैं। बल्कि पूरी टीम वर्क के साथ दिन के उजाले में देश को लूटने वाले सफेदपोश बड़े अपराधियों पर व्यंजना और लक्षणा शब्द शक्तियों में प्रहार करने की कोशिश की गई है।' व्यंग्यकार ने सफाई देते हुए कहा।
'किंतु ऐसा स्पष्टतः समझ में आता नहीं लेख पढ़कर।' साधुरामजी बोले।
'वह तो समझना पड़ता है मित्र। साहित्य में बहुत से अव्यक्त को पढ़ना आना चाहिए।' व्यंग्यकार ने कहा।
'फिर भी,आपको स्पष्ट लिखना चाहिए कि आप सफेदपोश लुटेरों पर प्रहार कर रहे हैं।' साधुरामजी अपनी बात पर अड़े रहे।
'साहित्यिक विधा में ऐसा नहीं होता मित्र, पत्थर फेंकने और लाठी चलाने से अलग होता है रचनात्मक प्रहार।और अभिधा में लिखी रचना तो फिर एक रिपोर्टिंग में बदल जाती है। व्यंजना, लक्षणा शक्तियां व्यंग्य के खास औजार होते हैं।' व्यंग्यकार ने ज्ञान बांटा।
'नहीं, यह तो ठीक नहीं है बिल्कुल। स्वीकार्य नहीं हमें। ये शक्तियां तो बहुत अराजक और आतंकी लगती हैं अपने आचरण से। इन्हें तुरंत निष्काषित करिये साहित्य से। अन्यथा हमें कोई कानून लाना पड़ेगा।' कहते हुए साधुरामजी नें अभिधा शक्ति में देशभक्ति से परिपूर्ण एक जोशीले नारे का उद्घोष किया और दफ्तर को निकल लिए।
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2
अभिमत
उनकी कविताओं का नया संग्रह आया तो साधुरामजी बधाई देते हुए बोले- ' बढ़िया है किताब आपकी।'
'धन्यवाद, कुछ सामग्री पर भी कहिए!' उन्होंने खुश होकर कहा।
'सामग्री भी बढ़िया है, कागज की क्वालिटी बेहतर है।' साधुरामजी बोले।
'मेरा मतलब है, कविताओं पर अपना अभिमत व्यक्त कीजिये।'
'मेरे कुछ कहने से क्या होगा? फ्लैप पर जो वरिष्ठ कवि ने व्यक्त कर दिया है उससे बेहतर भला मैं और आगे क्या कुछ कह पाऊंगा!' साधुरामजी ने कहा।
'अरे ,नहीं मित्र! आप मेरी कविताओं पर अपने विचार रखेंगे तो वह मौलिक होंगे।'
'ऐसा क्यों? क्या फ्लैप पर वरिष्ठ कवि का लिखा ब्लर्ब मौलिक नहीं है?'
'जी, वह मैंने स्वयं ही लिख लिया था,उनके नाम से।'
'अरे भाई तो जो पिछले दिनों अखबार में समीक्षा आई है,उसमें भी तो वरिष्ठ आलोचक ने बड़ी प्रशंसा की है, तुम्हारी कविताओं की।'
'अब जाने दीजिए!' उन्होंने निराश होकर कहा 'आपसे नहीं होगा, मैं ही लिख लेता हूँ आपका अभिमत।'
ब्रजेश कानूनगो
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व्यंजना
'आज जो चड्डी-बनियान गिरोह पर लेख पढ़ा आपका , उसमें आप अपराधी के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं।' साधुरामजी ने आपत्ति जताई।
'वह व्यंग्य लेख है मित्र, उन फटेहाल चोरों के पक्ष में नहीं है जो रात में छोटी मोटी चोरियां करते हैं। बल्कि पूरी टीम वर्क के साथ दिन के उजाले में देश को लूटने वाले सफेदपोश बड़े अपराधियों पर व्यंजना और लक्षणा शब्द शक्तियों में प्रहार करने की कोशिश की गई है।' व्यंग्यकार ने सफाई देते हुए कहा।
'किंतु ऐसा स्पष्टतः समझ में आता नहीं लेख पढ़कर।' साधुरामजी बोले।
'वह तो समझना पड़ता है मित्र। साहित्य में बहुत से अव्यक्त को पढ़ना आना चाहिए।' व्यंग्यकार ने कहा।
'फिर भी,आपको स्पष्ट लिखना चाहिए कि आप सफेदपोश लुटेरों पर प्रहार कर रहे हैं।' साधुरामजी अपनी बात पर अड़े रहे।
'साहित्यिक विधा में ऐसा नहीं होता मित्र, पत्थर फेंकने और लाठी चलाने से अलग होता है रचनात्मक प्रहार।और अभिधा में लिखी रचना तो फिर एक रिपोर्टिंग में बदल जाती है। व्यंजना, लक्षणा शक्तियां व्यंग्य के खास औजार होते हैं।' व्यंग्यकार ने ज्ञान बांटा।
'नहीं, यह तो ठीक नहीं है बिल्कुल। स्वीकार्य नहीं हमें। ये शक्तियां तो बहुत अराजक और आतंकी लगती हैं अपने आचरण से। इन्हें तुरंत निष्काषित करिये साहित्य से। अन्यथा हमें कोई कानून लाना पड़ेगा।' कहते हुए साधुरामजी नें अभिधा शक्ति में देशभक्ति से परिपूर्ण एक जोशीले नारे का उद्घोष किया और दफ्तर को निकल लिए।
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2
अभिमत
उनकी कविताओं का नया संग्रह आया तो साधुरामजी बधाई देते हुए बोले- ' बढ़िया है किताब आपकी।'
'धन्यवाद, कुछ सामग्री पर भी कहिए!' उन्होंने खुश होकर कहा।
'सामग्री भी बढ़िया है, कागज की क्वालिटी बेहतर है।' साधुरामजी बोले।
'मेरा मतलब है, कविताओं पर अपना अभिमत व्यक्त कीजिये।'
'मेरे कुछ कहने से क्या होगा? फ्लैप पर जो वरिष्ठ कवि ने व्यक्त कर दिया है उससे बेहतर भला मैं और आगे क्या कुछ कह पाऊंगा!' साधुरामजी ने कहा।
'अरे ,नहीं मित्र! आप मेरी कविताओं पर अपने विचार रखेंगे तो वह मौलिक होंगे।'
'ऐसा क्यों? क्या फ्लैप पर वरिष्ठ कवि का लिखा ब्लर्ब मौलिक नहीं है?'
'जी, वह मैंने स्वयं ही लिख लिया था,उनके नाम से।'
'अरे भाई तो जो पिछले दिनों अखबार में समीक्षा आई है,उसमें भी तो वरिष्ठ आलोचक ने बड़ी प्रशंसा की है, तुम्हारी कविताओं की।'
'अब जाने दीजिए!' उन्होंने निराश होकर कहा 'आपसे नहीं होगा, मैं ही लिख लेता हूँ आपका अभिमत।'
ब्रजेश कानूनगो
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3
विवेक
साधुरामजी ने अपनी लायब्रेरी की कविता संग्रहों की सारी पुस्तकें कबाड़ी को बेच दीं तो मैंने पूछा- गद्य की क्यों नहीं बेची?
उन्होंने स्पष्टीकरण दिया- गद्य की किताब की बजाय,कविता की किताब का पन्ना स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक रहता है।
'क्या मतलब?' में भौचक्क रह गया।
'कबाड़ी से किताबों की रद्दी मंगू चाटवाला खरीदता है, समोसे पर कम शब्दों की स्याही चिपकती है, जिससे बीमारी की संभावना का प्रतिशत भी घट जाता है।'
ब्रजेश कानूनगो
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ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रीजेंसी,चमेली पार्क,कनाड़िया रोड, इंदौर - 452018
साधुरामजी ने अपनी लायब्रेरी की कविता संग्रहों की सारी पुस्तकें कबाड़ी को बेच दीं तो मैंने पूछा- गद्य की क्यों नहीं बेची?
उन्होंने स्पष्टीकरण दिया- गद्य की किताब की बजाय,कविता की किताब का पन्ना स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक रहता है।
'क्या मतलब?' में भौचक्क रह गया।
'कबाड़ी से किताबों की रद्दी मंगू चाटवाला खरीदता है, समोसे पर कम शब्दों की स्याही चिपकती है, जिससे बीमारी की संभावना का प्रतिशत भी घट जाता है।'
ब्रजेश कानूनगो
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ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रीजेंसी,चमेली पार्क,कनाड़िया रोड, इंदौर - 452018
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