Friday, October 7, 2016

आलू की फैक्ट्री का सपना

व्यंग्य
आलू की फैक्ट्री का सपना
ब्रजेश कानूनगो

उन्होंने यदि कह भी दिया कि वे किसानों के लिए आलू की फेक्ट्री लगायेंगे. तो इसमें हंगामा करने की क्या बात है. एक बात कही उन्होंने. और आप हैं कि उसका बतंगड़ बनाने पर तुले हैं. जब विश्व में कृत्रिम दिल बनाने के प्रयास हो रहे हों तब आलू किस खेत की मूली है. वह भी फेक्ट्री में बनाया जा सकता है. चाहे उनकी जुबान ही क्यों न फिसल गयी हो लेकिन उनके कथन को सकारात्मक रूप से लिया जाना चाहिए.

हाँ, यह बात अवश्य है कि पटाटो जैसी इतनी पापुलर चीज के बारे में इतने पापुलर व्यक्ति का अज्ञान संदेह अवश्य पैदा करता है. भारतीय भोजन में आलू की लोकप्रियता निर्विवाद है. एक तरह से इसे राष्ट्रीय कन्द के खिताब से नवाजा जा सकता है. कथा सम्राट प्रेमचंद की कहानियों से लेकर लीडरकिंग लालू प्रसाद के गुण-गौरव तक में ‘आलू’ की उपस्थिति चर्चित रही है. हमारे भोजन में आलू ठीक उसी प्रकार उपस्थित रहता है, जैसे शरीर के साथ आत्मा, आतंकवाद के साथ खात्मा, नेता के साथ भाषण, यूनियन के साथ ज्ञापन, मास्टर के साथ ट्यूशन,वोटर के साथ कन्फ्यूजन, टेलर के साथ टेप, भूगोल के साथ मैप, पुलिस के साथ डंडा और इलाहाबाद के साथ पंडा, अर्थात भोजन है तो आलू है. आलू है तो समझो भोजन की तैयारी है.

आलू हमारी तरह धर्म निरपेक्ष है. हर सब्जी का धर्म उसका अपना धर्म है. हर सब्जी के रंग में डूबकर वह उसके साथ एकाकार हो जाता है.बैगन,पालक,गोभी,टमाटर,बटला,दही,खिचडी,पुलाव, आलू सभी में अपने को जोड़े रखता है.आपसी मेल-मिलाप हमारी परम्परा रही है,यही संस्कार हमारे आलू में भी देखे जा सकते हैं.

विनम्रता और और दूसरों की अपेक्षाओं के अनुसार अपने को ढाल लेना हमारे चरित्र की विशेषताएं होती हैं.उबलने के बाद आलू भी हमारी तरह नरम और लोचदार होकर अपने आपको समर्पित कर देता है. चाहो तो आटे में गूंथकर पराठा सेंक लो या मैदे में लपेटकर समोसा तल लो अथवा किसनी पर किस कर चिप्स का आनंद उठा लो.

आलू की नियति से हमारी नियति बहुत मिलती है. राजनीतिक नेता और पार्टियां जिस तरह हमारी भावनाओं को उबालकर उनके पराठें सेंकते हैं, समोसा तलते हैं या चिप्स बनाकर वोटों के रूप में उदरस्थ करते हैं, उसी तरह आलू हमारे पेट में जाता है.

परम मित्र साधुरामजी ने बताया कि जहां हम आलू के दीवाने हैं, वहीं रूसियों को मूली, गाजर और गोभी बहुत पसंद है. इसी तरह अमेरिकियों को शकरकन्द खाने का बहुत शौक होता है. पिछले रविवार जब हमने साधुरामजी के यहाँ भोजन ग्रहण किया तो तो उन्होंने एक नई सब्जी परोसी जिसका नाम था- ‘इंडो-रशिया फ्रेंडशिप वेजिटेबल’ (भारत-रूस मित्रता सब्जी). जब मैंने वह खाई तो मुझे आलू, मूली और गोभी का मिला-जुला जायका आया. मित्रता की खुशबू दिलों से होकर सब्जियों तक महसूस कर मुझे अपने आलुओं पर गर्व हुआ. अब तो शकरकंद में आलू मिलाकर बनाई गयी सब्जी भी हम बड़े चाव से खा रहे हैं, परोस रहे हैं. दुनिया में यह एक मिसाल भी है जब हमारा देश, दुनिया में हमारी आलू-प्रवत्ति का कायल हुआ है.

संभवतः उन्होंने हमारे सर्व प्रिय आलू के और अधिक विकास पर ध्यान दिया और आकांक्षा व्यक्त की है कि अब आलू की फेक्ट्री भी शुरू की जानी चाहिए. नया विचार रखा है, जेम्स वाट ने केतली से निकली भाप को देखकर जो विचार दिया था उससे आगे चलकर रेल गाड़ियां दौड़ने लगीं. ‘नवोन्मेष विचार’ ही भविष्य के किसी अन्वेषण का आधार बनता है. बुद्धिमान और हुनरमंद लोग घरों में डिटर्जेंट के पैकेटों और वनस्पति तेल के पीपों से भैस का दूध दुह रहे हैं, कोई आश्चर्य नहीं जब फैक्ट्रियों से निकले आलुओं से समोसे बनाए जाने लगें.


ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रीजेंसी चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018  



1 comment: