Tuesday, April 5, 2022

व्यंग्य बाण : महंगाई पर कुछ दोहे

 व्यंग्य बाण : महंगाई पर कुछ दोहे

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महंगाई सुरसा भई

याचक बन मत मांगते,
कैसे हो इंकार।
सत्ता पाते ही सभी,
बन जाते भरतार।

बड़ी चीज को लघु करें,
बोले बड़ी लकीर।
कुर्सी के मद में पड़ें,
खुद को कहें फकीर।

बात पुरानी हो गई,
जनता करे हिसाब।
सत्ता जिसकी आ जाए ,
देता नहीं जवाब।

दुनिया हुई उलट-पुलट,
जीवन है दुश्वार।
सुरसा महंगाई हुई,
प्रभु करो उद्धार।

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महंगाई का वध करें

अपने घर की क्या कहें,
खस्ता सबका हाल।
कैसे शरबत खुद पिएं,
जब कोई बेहाल।

रोज बढ़ रही कीमतें,
जीना हुआ हराम।
रावण की लंका जली,
मदद करे श्रीराम।

महंगाई इक दैत्य है,
रोक रहा प्रवाह।
कुम्भकर्ण सी नींद में,
कैसे निकले राह।

यूँ हलाल सा लग रहा,
अनचाहा यह दर्द।
झटके में निपटाइए,
कहलाओगे मर्द।

महंगाई का वध करें,
यही वक्त की मांग।
सुख चैन की हवा बहे,
मिटे नफरती भांग।

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ब्रजेश कानूनगो


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