Wednesday, September 14, 2016

गणेश जी पहुंचे कर्जा लेने

व्यंग्य
गणेश जी पहुंचे कर्जा लेने
ब्रजेश कानूनगो

एक टांग पर दूसरी टांग धरे बैठे गणेशजी बोर हो गए. जब केवल दो हाथों वाले मनुष्य मशीनों की तरह काम धंधे में जुटे हों तो फिर उनके पास तो दो जोड़ी हाथ है. कोई काम धंधा ही शुरू करके देखा जाए. चंद दिनों मनोरंजन ही सही. और फिर अनुभव का अनुभव.

दूसरे दिन ‘स्वर्ग समाचार’ में विदेश गमन की खबर छपवाई और भारत में उतर आए. गणेशजी अब गणेशदत्त थे. एक बेरोजगार युवक. रोजगार की तलाश में भारत की सड़कों पर भटकने लगे.

अचानक उनकी निगाह एक आटा चक्की पर पड़ी, लिखा था- ‘इंद्र फ्लोर मिल’. वे चौंक पड़े. अच्छा तो देवराज इंद्र भी आजकल पृथ्वी पर आटा चक्की चलाने का प्रशिक्षण ले रहे हैं उन्होंने मन ही मन सोचा.
‘यह आटा चक्की आपकी ही है?’ उन्होंने चक्की में गेहूं डालते युवक से पूछा.
‘तो क्या आप की है?’  युवक के  रूखे उत्तर से गणेशदत्त भौचक्क रह गए.
‘देवराज इंद्र नाराज क्यों होते हैं.’  विनम्रता से वे फिर बोले.
‘देवराज किसे कह रहे हो, मेरा नाम दिनेश है, हां, मेरे स्वर्गवासी पिता का नाम जरूर इंदर सिंह था.’ युवक ने बताया तो उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया.

आटा चक्की पर एक पट्टिका लगी थी- ‘लोक सेवा बैंक की वित्तीय सहायता से’, यानी दिनेश को किसी बैंक से ऋण प्राप्त हुआ है.
दिनेश से बैंक का पता पूछ कर व सीधे वहां पहुंचे. चपरासी से उन्होंने प्रबंधक महोदय के लिए पूछा तो उन्हें पता चला कि वह पशु बाजार में भैसे खरीदने गए हुए हैं. उन्होंने मन ही मन सोचा, शायद प्रबंधक महोदय का परिवार बड़ा होगा और दूध भी अधिक लगता होगा इसीलिए वे  अपने लिए भैसें खरीदने गए होंगे.

गणेशदत्त वहीं लगी बैंच पर बैठकर शाखा प्रबंधक के लौटने का इंतजार करने लगे. बैंक शाखा में उस वक्त बिजली आ रही थी और पंखे चल रहे थे. हवा लगी तो बोझिल शरीर को आराम मिला और उन्हें झपकी लग गई.

नींद खुली तब बैंक की घड़ी में शाम के चार बज रहे थे और प्रांगण में दस-बारह भैसें बंधी हुई थी. कोई आमंत्रित नेताजी भाषण दे रहे थे. एक फोटोग्राफर भैसों और नेता जी को एक साथ कैमरे में कैद करने का प्रयास कर रहा था. उन्हें कुछ समझ में नहीं आया. वे ध्यान से नेताजी का भाषण सुनाने लगे. कुछ देर बाद सारा माजरा स्पष्ट हो गया. किसी सरकारी योजना में गरीब खेतीहर लोगों को भैसे खरीदने के लिए ऋण प्रदान किया गया था.

‘अहा! कितना आसान है सहायता प्राप्त करना दिनेश ने आटाचक्की खोली और यह बारह  व्यक्ति भैसों के लिए ऋण प्राप्त कर रहे हैं .’ गणेशदत्त पुलकित हो उठे.
अगले दिन वे बैंक के प्रबंधक के सामने उपस्थित थे. प्रबंधक ने उन्हें ऋण अधिकारी के पास पहुंचा दिया.
‘अर्जी लाए हो?’  फाइलों पर से बगैर नजर उठा कर अधिकारी ने प्रश्न किया.
‘लाया तो नहीं, पर अभी लिख देता हूं.’ गणेश दत्त ने ऐसे आत्मविश्वास से कहा जैसे उनके अर्जी लगाते ही बैंक अधिकारी दराज में से रुपए निकाल कर उन्हें दे देगा.
‘किस धंधे के लिए कर्ज चाहिए?.
‘जी, आप ही बता दीजिए; कुछ न कुछ तो करना ही है!’ गणेशदत्त बोले.
अधिकारी ने कंप्यूटर से चेहरा हटाकर पहली बार उनकी ओर देखा और पूछा- ‘क्या बेरोजगार हो?.
‘हां, शिक्षित बेरोजगार हूँ.’ गणेशजी ने कहा.
‘रोजगार दफ्तर में पंजीयन करा लिया है?’ अधिकारी ने पूछा. गणेशदत्त को पहली बार पता चला कि रोजगार पाने के लिए पहले किसी सरकारी दफ्तर में पंजीकृत होना पड़ता है. उन्होंने झूठ ही कह दिया- ‘हां, करा लिया है.’ और मन ही मन सोचा ‘ना कराया है तो अब करा लेंगे आखिर हम भगवान है’. अधिकारी ने उन्हें दो फार्म दिए ‘यह एप्लीकेशन फार्म है दूसरा नो ड्यूस सर्टिफिकेट, इस शहर के सभी बैंकों की शाखाओं से प्रमाणित करवाना है कि आपने उनसे कोई कर्ज  प्राप्त नहीं किया है और यह सब लेकर सोमवार के बाद आइएगा.’

गणेश फार्म लेकर लौट आए. शताब्दियाँ हो गईं ज्ञान लुटाते हुए. सैकड़ों धर्म ग्रंथ लिख डाले मगर कभी फॉर्म नहीं भरा था. इधर दिनेश से उनकी अच्छी दोस्ती हो गई थी. वह सीधे उसकी चक्की पर पहुंचे. चक्की पर बैठे बैठे ही सामने चाय की गुमटी पर दो कप चाय का आर्डर फेंका. तब दिनेश उनका फॉर्म भरने को तैयार हुआ.

‘कर्ज किस लिए चाहिए?’ दिनेश का प्रश्न था.
‘टेंपो खरीदने के लिए’. गणेशदत्त तपाक से बोले. बैंकों से नो ड्यूज करवाने गए थे तब उन्होंने हर टेम्पों पर किसी न किसी की बैंक की पट्टी देखी थी.  उन्होंने तब ही सोच लिया था कि वे टेम्पो चलाएंगे. बैंको से नो ड्यूज सर्टिफिकेट लेने के चक्कर में गणेशजी,  जिन्होंने माता-पिता का चक्कर लगाकर का मैराथन का पदक प्राप्त किया था, अपना वजन तीन  किलोग्राम घटा चुके थे.

दो दिन विश्राम करने के बाद वे बैंक पहुंचे. उनका आवेदन पत्र ऋण अधिकारी ने पढ़ा और गणेशदत्त की ओर गौर से देखते हुए पूछा- ‘अनुभव कितना है?’
‘जी वही लेने तो आए हैं.’ गणेशदत्त बोले. ‘क्या!’  अधिकारी चौका. ‘कितने वर्ष हो गए ड्राइवरी करते करते?’
‘जी यही बीस-पच्चीस वर्ष हो गए होंगे.’ गणेशदत्त को लगा, शायद अधिकारी चूहे की सवारी का पूछ रहा है.
‘लाइसेंस है गाड़ी चलाने का? उसकी कॉपी लाओ और दिखाओ.’ अधिकारी ने उनका आवेदन पत्र फाइल करते हुए कहा और गणपति की मूर्ति बनाने के लिए करजा मांगने आए दूसरे व्यक्ति से बात करने लगा.

गणेशदत्त बैंक अधिकारी के प्रश्नों से थोड़ा घबरा गए. दिनेश के पास जाकर उन्होंने सारी बात बताई. दिनेश ने उन्हें सुझाया कि पहले उन्हें चार पहिया व्यावसायिक वाहन चलाना सीखना पड़ेगा, फिर आरटीओ से प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा. इसमें कम से कम चार-पांच माह लग जायेंगे.
गणेशदत्त ने टेंपो के लिए ऋण लेने का विचार त्यागा और हलवाई की दुकान डालने की सोचने लगे. आराम से गद्दी पर बैठेंगे. कारीगर लड्डू बनाता रहेगा, बेचेंगे और इच्छा हुई तो स्वयं भी ग्रहण कर लेंगे.

गणेशदत्त पुनः  नए सिरे से बैंक के चक्कर लगाने लगे. अर्जी बदली और मिठाई की दुकान के लिए आवेदन कर दिया. गणेशदत्त का डील डोल देखकर बैंक अधिकारी को उनका मिठाई का धंधा जम गया और वह किसी व्यक्ति की जमानत पर कर्जा देने के लिए तैयार हो गए.
गणेश दत्त का सिवाए दिनेश के यहाँ और था ही कौन !  वह दौड़ते हुए उसी के पास गए और सारी बात बताई. दिनेश अनुभवी था वह उन्हें जमुनालाल जमानत वाले के पास ले गया जो सिर्फ यही धंधा करता था. जमानत के बदले वह ऋण राशि का दस प्रतिशत  कमीशन प्राप्त करता था. गणेशदत्त पहले तो सकपकाए लेकिन बाद में तैयार हो गए क्योंकि इसके अलावा उनके पास अन्य कोई विकल्प भी नहीं था.

वह बहुत खुशी खुशी जब बैंक में कागजातों पर दस्तख़त करने पहुंचे तो अधिकारी महोदय ने बहुत ही सहजता से कह दिया-  ‘क्षमा करना, धंधों के लिए ऋण देने का हमारा सालाना लक्ष्य  पूरा हो चुका है. कृपया आप अगले वर्ष तशरीफ़ लाएं.’ गणेशदत्त पर जैसे घड़ों पानी गिर गया.

तभी  मेरे चेहरे पर पानी की बौछार पड़ी और कानों में मां का स्वर- ‘उठ बेटा, क्या अभी तक सोया पडा है. आज गणेश चतुर्थी है जा बाजार से गणपति की मूर्ति लेकर आ और पूजा कर. शाम को पड़ोस वाले जैन साहब से बैंक का फॉर्म भी भरवा लेना. वे बैंक में ही हैं. कल लोन हेतु  साक्षात्कार के लिए तुझे ‘लोक सेवा बैंक’ भी तो जाना है.’ माँ लगातार बोलती चली गई.

मैं उठा और दीवार पर लगी गणेशजी की तस्वीर को नमस्कार किया. मुझे गणेशजी कुछ थके थके और कमजोर से नजर आए. शायद उनका वजन भी कुछ कम हो गया था.

ब्रजेश कानूनगो

503, गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, इंदौर-452018

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