Monday, September 5, 2016

प्रोफ़ाइल पिक्चर

प्रोफ़ाइल पिक्चर 
ब्रजेश कानूनगो

बहुत से लोगों के चेहरे पर हमेशा बारह बजे रहते हैं। ख़ुशी के कांटे उनकी सूरत के घण्टाघर में कभी दस बजकर दस नहीं बजाते। हमेशा रोनी शक्ल लिए मनहूसियत  की गंध यहाँ-वहाँ फैलाते रहते हैं। हमारे मित्र साधुरामजी के एक मित्र हैं, शर्मा जी। मित्र के मित्र तो हमारे भी मित्र. शर्मा जी कभी किसी मजाक पर शरमा भले ही जायेंगे मगर मजाल है कि कभी मुस्कुराहट में  ओष्ठ कमल की पंखुरियाँ खिल जाएँ।

अपने फेस पर सदा उदासी के मरुस्थल को ढोने वाले इन्ही शर्मा जी की फेसबुक पर उनकी तस्वीर में खिली हुई बत्तीसी के साथ खुशी का समंदर दिखा तो आश्चर्य में पड़ जाना स्वाभाविक था। एक दिन साधुरामजी के घर पर मिले तो हम ने पूछ ही लिया इतनी तूफानी और मिलियन डॉलर खिलखिलाहट वाली तस्वीर का जो राज. जो कुछ उन्होंने बताया तो हम भी ठहाका लगाए बगैर रह नहीं सके। आप भी सुनिए वह वाकया।

शर्माजी उवाच-
"हमारी कॉलोनी के सामने अभी भी खेत हैं।जी हाँ, इंदौर जैसे महानगर में। हमारी पंक्ति के आखिरी घर के बाद भी एक खेत है। जिसमे एक झोपड़ी है और उसमें एक खेतिहर मजदूर परिवार रहता है। एक प्रौढ़ सज्जन जिन्हें हम सुविधा के लिए 'जग्गू भैया' भी कह सकते हैं। लगभग रोज शाम को चौराहे तक जाते हैं और थोड़ी देर बाद लहराते हुए आते हैं।उनकी इस स्वतः लहराती चाल के पीछे राज्य का राजस्व जुड़ा है।

हमारा  रोज शाम को पत्नी सहित खेतों के पास बनी सड़क पर घूमने का क्रम रहता है।यही हो रहा था, मौसम मस्त था तो मूड भी बहुत मस्त हो रहा था।और जब व्यक्ति मस्त होता है तो वह सेल्फी लेने लगता है। मजे मजे में हमारा सेल्फी सेशन चल रहा था, हरीभरी वसुंधरा पर चलकदमी करते हुए। वैसे साठ के आसपास की सेल्फी अपने को और जीवन साथी को ही खूबसूरत  लगती है। इसलिए दूसरों के बीच शेयर न हो तो बेहतर। लेकिन सठियाया दिल है कि मानता नहीं। हम चाहते थे कि बरसात के बाद का यह शानदार  समय और मन मोहक हरियाली उस साथी के साथ कैमरे में कैद कर ली  जाए जिसके कारण हमारे जीवन में हरियाली है।

कुछ तस्वीरें हम पत्नी के  साथ ले चुके थे पर मन अभी भरा नहीं था, और फोटो सेशन सूरज की रोशनी रहने तक जारी रखना चाहते थे। तभी अचानक जग्गू भैया लहराते हुए पीछे चले आये। हमने चुहुल करने की सोची और श्रीमती जी से कहा कि अब हम जग्गू भैया,प्रकृति और अपन दोनों की एक ही फ्रेम में सेल्फी लेने की कोशिश कर रहे हैं।
इतना सुनना था कि वे तेजी से भाग खड़ी हुईं, जग्गू भैया भी फ्रेम से बाहर हो गए। बहुत हास्य प्रसंग निर्मित हुआ और मेरी खिलखिलाहट फूट पडी। जो तस्वीर आई उसको क्रॉप किया तो यह 'मोहक सेल्फी' बन गई। है न मजेदार।"

शर्माजी के कथा कथन के बाद ठहाके के साथ हमारा यह भ्रम भी टूट गया कि वे उतने मनहूस भी नहीं हैं जितना हम अनुमान लगाया करते थे। उनके भीतर भी हंसी और आनन्द का कोई सोता  बाहर आने के इन्तजार में बैचैन रहता था। जो मौका मिलते ही  खिलखिलाता हुआ आज फव्वारे की तरह प्रोफ़ाइल पिक्चर में फूट पड़ा था।

ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018


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