Thursday, September 15, 2016

छोटे भाषण के बड़े विषय

व्यंग्य
छोटे भाषण के बड़े विषय 
ब्रजेश कानूनगो

'क्या बात है साधुरामजी बड़े चिंतित नजर आ रहे हैं।मैंने साधुरामजी से पूछा।
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चिंता क्या! नाक ही कट गई हमारी तो।' वे झल्लाते हुए बोले। 'भला ऐसा क्या पहाड़ टूट पड़ा।मैंने पूछा तो वे बोले ' हमारे शहर के कॉलेज का कोई छात्र अंतर महाविद्यालयीन भाषण प्रतियोगिता में  भाग नहीं ले सका इस बार।क्या कॉलेज में छात्र वक्ताओं का अभाव हो गया था या प्रतियोगिता ही निरस्त हो गई।'  मैंने जिज्ञासा व्यक्त की।  'विषय की कठिनता के कारण कोई छात्र प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए तैयार ही नहीं हुआ।' उन्होंने बताया। 
'ऐसा कौन सा विषय था जिस पर अमूमन ‘बहुत बोलने वाली’ यह नई पीढी के लिए बोलना इतना कठिन हो गया।' मैंने जानना चाहा तो साधुराम जी ने बताया- ‘वाट्सएप के माध्यम से जनजागृति और समाज कल्याण में फेसबुक जैसे नए माध्यमों का सदुपयोग। 

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हे भगवान ! इतना बड़ा और इतना कठिन विषय।' मैं  आश्चर्य से बोल उठा।
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क्या खाक कठिन विषय है!साधुरामजी बोले-  ‘दिन भर लगे रहतें हैं सोशल मीडिया पर, आँखें मोबाइल से हटती नहीं,..खाने –पीने तक की चिंता नहीं रहती..और जब इसी बात पर बोलने का वक्त आता है तो रणछोड़दास बन जाते हैं..' नई पीढी के वैचारिक खोखलेपन पर उनका दर्द ऊंची आवाज में बाहर आया।

'साधुरामजी, भाषण पर भाषण देना सरल है लेकिन किसी निश्चित विषय पर भाषण देना बहुत कठिन होता है। छात्र तो क्या इस विषय पर आप स्वयं भी बगलें झांकने लगेंगे।' मैंने उन्हें शांत करने की कोशिश की।
'भाषण के विषय भले ही बड़े हो, परंतु वे आसान और अपने जीवन परिवेश से जुड़े होना चाहिए। भाषण, भाषण होता है कोई शोध-प्रबंध तो है नहीं कि इतना लंबा चौड़ा क्लिष्ट विषय रखा जाए।' मैंने आगे कहा।
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तो क्या हम अभी भी 'चांदनी रात में नौका विहार' ,'कृषि प्रधान भारत में आबादी की समस्या,' विज्ञान वरदान या अभिशाप,' जैसे पुरातन विषयों पर ही प्रतियोगिताएं आयोजित करते रहें।' साधुरामजी बोले।
'नहीं, मेरा मतलब यह नहीं है, बहुत से सरल और साधारण विषय भी हो सकते हैं जो हमारे छात्रों के सामर्थ्य और रुचि के अनुकूल हों ।मैंने कहा।

‘और फिर भाषण तो भाषण होता है साधुरामजी, कोई शोध-प्रबंध तो है नहीं कि यहाँ-वहां से टीप-टाप कर लिख दिया, वरना पुरानी थीसिस में निशाँ लगाकर अपना शोध-प्रबंध पूरा करने में उन्हें महारत हासिल है ही. इतना लंबा चौड़ा क्लिष्ट विषय रखने की क्या जरूरत थी? ऐसे विषयों पर  लगाम लगानी होगी वरना आगे से आयोजकों का दुस्साहस और बढेगा. और वे भविष्य में 'नारी के अत्याचार में देश की आदिकाल से प्रचलित सामाजिक व्यवस्था जिम्मेदार है,  चुनाव प्रचार और सभाओं में खाटों आदि के बढ़ते नवोन्मेष प्रयोग, महंगाई के दौर में दालों के विकल्प के रूप में विटामिन युक्त वनस्पति और नए कंदों की खोज, आदि-आदि.. जैसे लम्बे-लम्बे विषय निर्धारित करने लगेंगे.’  मैंने कहा तो साधुरामजी गुस्सा करते अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए बोले- 'चलता हूँ, बच्चों को एक भाषण प्रतियोगिता के लिए जरा तैयारी करवानी है; जल्दी में हूँ.' 

'यह तो बताते जाइए भाषण का विषय क्या है और कितना बड़ा है?'  मैंने चुहुल करते हुए पूछा । ‘ऋण लेकर देश से बहिर्गमन करते कॉर्पोरेट्स और आत्महत्या करते किसानों के अंतरसंबंधों का सामाजिक पक्ष.’   उन्होंने बताया और अपनी फिशरकिंग मोपेड की चाबी घुमा दी।


ब्रजेश कानूनगो
503,
गोयल रिजेंसी, चमेली पार्क,कनाड़िया रोड,इंदौर-452018




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