Thursday, September 15, 2016

ढूंढ सके तो ढूंढ

व्यंग्य
ढूंढ सके तो ढूंढ 
ब्रजेश कानूनगो

जो व्यक्ति अरसे से फिल्मों का विरोधी रहा हो, टीवी  को बुद्धू बक्सा कहता हो, अचानक सिनेमा और टीवी की तकनीक पर मोहित हो उठे। अभिनय को जिंदगी की वास्तविकता से दूर निरुपित करने वाला शख्स, बात-बात पर अभिनय से लेकर फिल्मांकन से जुडे तमाम  तकनीकी विषयों पर चर्चा करने लगे तो उसमें आया ऐसा  परिवर्तन उसके हितैषियों  के लिए चिंता की बात  हो जाना स्वाभाविक  है । साधुरामजी के साथ भी कभी ऐसा ही हुआ था। किस्सा  उस समय का है जब  भारत में टीवी नया नया ही आया था।

उस दिन रविवार था। मैं उनके घर पहुंचा तो वे  रामायण धारावाहिक देख रहे थे । मैं चुपचाप उनके पास बैठ गया।
'देखो यह ट्राली शॉट है।साधुरामजी अचानक बोल उठे । मैंने कोई जवाब नहीं दिया। तभी रामायण सीरियल के उस दिन के एपिसोड में इंद्रजीत के शव को एक स्ट्रेचर नुमा पालकी में रखकर चार लोग उठा कर ले जाने लगे तो साधुरामजी फिर बोले- 'इंद्रजीत के रूप में यह मूल कलाकार का डुप्लीकेट है, यह एक एक्स्ट्रा कलाकार है जो लेटा हुआ है।' इसी तरह धारावाहिक के दौरान पूरे समय  साधुरामजी तकनीक और अभिनय पर अपनी विशेषज्ञ टिप्पणियां देते रहे। मैं मन ही मन सोचता रहा कि आखिर ऐसा क्या हुआ जिससे अचानक साधुरामजी में  फिल्मांकन कला और उसकी  तकनीकी जानकारी का इतना बौद्धिक फव्वारा फूट पड़ा था। मैंने उनके मन को टटोलना चाहा और पूछा- 'पिछले दिनों आप कहीं बाहर गए थे शायद !' 
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हां ,शूटिंग पर गया था।' उन्होंने बताया।
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क्या किसी फिल्म की शूटिंग देखने गए था?' 
मैंने थोड़ा आश्चर्य से पूछा। 
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हाँ, उमरगांव रामायण की शूटिंग पर गया था।उन्होंने कहा। 
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अच्छा! रामायण धारावाहिक की शूटिंग देखने गए थे आप  वहां ' मैंने बात आगे बढ़ाई 
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शूटिंग देखने नहीं, शूटिंग में भाग लेने गया था।' वे बोले।
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अरे वाह!  रामायण धारावाहिक में काम करने के लिये बहुत-बहुत बधाई भाई। अब आपके कैरियर में  एक नया मोड़ आएगा, इस लोकल राजनीति से सिनेमा और टीवी  का कैनवास ज्यादा विशाल है  प्रतिभा प्रदर्शन के लिए।'   मैंने कहा तो वे मुस्कुरा दिए।
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आपके अभिनय वाला हिस्सा टीवी  पर कब तक आएगा?मैंने जिज्ञासा व्यक्त की तो वे बोले-   'शायद  अगले रविवार  को  ही  आप  मुझे छोटे पर्दे पर  देख सकेंगे।
एक सप्ताह बाद जैसे ही दूरदर्शन पर  रामायण धारावाहिक  शुरू हुआ, हमारा पूरा परिवार आंखें गड़ाए, साधुरामजी को  उसमें  शॉट दर शॉट खोजने लगा।  महाबली रावण  रथ पर सवार हुआ।  'जय लंकेश!' के घोष के साथ  लंका का पश्चिमी द्वार खुलते ही रावण के खूँखार सैनिक और  श्रीराम के वानर सैनिक एक दूसरे पर टूट पड़े। 

हम हर अभिनेता को  ध्यान से  देख रहे थे।  तभी अचानक  मेरी छोटी बिटिया  चिल्ला पड़ी - 'वह रहे! पापा, साधु अंकल ' 'कहां-कहां?'   'वह, वह। आगे से तीसरी पंक्ति में बांये से तीसरे गदा उठाएं, पूछ लगाएं। अरे ! वे  गिर पड़ेकिसी राक्षस ने उन्हें तलवार से घायल कर दिया है.. वे  अब नहीं दिख रहे पापा।'   
तभी महेंद्र कपूर की बुलंद आवाज में समापन चौपाई  'मंगल भवन अमंगल हारी' गूंजने लगी. उस दिन का एपिसोड समाप्त हो गया। 

मेरा दुर्भाग्य रहा कि  मैं अपने परम मित्र साधुरामजी के अभिनय की झलक तक चाहकर भी अंततः नहीं देख पाया। यह दुःख आज तक बना हुआ है. परंतु मुझे  यह जरूर समझ में आ गया  था कि साधुरामजी के कन्धों  पर  उन  दिनों अभिनय का वानर क्यों चढ़ा हुआ था।  साथ ही इस बात का भी विश्वास प्रबल हुआ था कि और भी कई साधुरामजी  जैसे अभिनेता इस रोग से पीड़ित हो रहे होंगे।  और उनके बहुत से मित्र  हर रविवार राम और रावण को देखने सुनने की बजाए  आगे से चौथी पांचवी पंक्ति के छठे सातवे नंबर पर  अपने अभिनेता दोस्त को तलाश करते करते बेहाल हो रहे होंगे। किसी को उअनकी पूंछ दिखी होगी तो किसी को उनकी गदा या तलवार.

ब्रजेश  कानूनगो
503,
गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क,कनाड़िया रोड, इंदौर - 452018


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