Thursday, September 8, 2016

मुन्नाभाई का भ्रातृप्रेम

व्यंग्य
मुन्नाभाई का भ्रातृप्रेम
ब्रजेश कानूनगो

भारतीय भूत में भाई की बड़ी महत्ता रही है. भाई की खातिर भाई जान पर खेल जाया करते थे. राम को वनवास भेजने वाली सगी माँ को एक सोतेला भाई  आजीवन क्षमा नहीं कर पाता  और स्वयं राम की पादुकाएं सिंहासन पर रखकर वनवासी सा जीवन चौदह वर्षों तक व्यतीत करता है ,दूसरा अपनी नवब्याहता पत्नी को छोडकर भाई की सेवा में वन को चला जाता है. कहावत सी बन गई है कि इस युग में राम तो बहुत मिल जाएँगे लेकिन भरत और लक्ष्मण सा भाई  मिलना कठिन है.

फिल्मों में भी भाईभाई को लेकर अनेक रोचक  कहानियां आती रहीं हैं.  अलग अलग विचारधारा और चरित्र के भाई अंत में परम्परानुसार एक दूसरे के शुभचिंतक हो जाते हैं. लेकिन वास्तविक जीवन में भ्रातृप्रेम  के ऐसे सच्चे प्रसंग कभी-कभार ही देखने को मिल पाते हैं .

इसी भ्रातृप्रेम का निर्वाह करते हुए एक युवक परीक्षा देते हुए इंदौर में पकड़ लिया  गया. यह हमारी  सामाजिक कमजोरी ही कहा जाएगा कि नियम कानून के तहत उनका केस बना दिया गया.  एक महान परम्परा जो साकार होने जा रही थी,एक इतिहास जो फिर अपने को दोहराने का प्रयास कर रहा था, ना-समझ निरीक्षकों की नादानी की वजह से संभव नहीं हो पाया.

बड़ा जालिम है यह ज़माना. जब-जब भाई ने भाई के लिए कुछ करना चाहा है ,तब तब फच्चर फसाया गया है. कुछ वर्ष पूर्व भी एक भाई के साथ ऐसा ही हुआ था, संयोग से वह पुलिसकर्मी था. उसने अपनी छुट्टी के लिए विभाग को आवेदन किया तो स्वीकृत नहीं हुई . तब अंतत: भाई ही भाई के काम आया. उसने अपने छोटे भाई  को वर्दी पहनाई और ड्यूटी पर तैनात कर दिया.   लेकिन वही हुआ , भाई का भाई से यह प्रेम जमाने की कुटिल निगाहों में आ गया. भाई पकड़ा गया और आदर्श का एक शिलालेख स्थापित होने के पहले ही खान नदी के पेंदे में पहुँच गया.

दोषी वही है जो पकड़ा जाए. ये भाई पकड़ लिया गया  इस लिए अपराधी हो गया. बड़ी विडम्बना है यह तो! वे अनेक लोग जो विभिन्न योजनाओं में दूसरों के हकों का लाभ ले रहे हैं, वे जो दूसरों के खेतों पर अपनी फसल काट रहे हैं, निर्दोष हैं. भाई भाई  के काम आ रहा है तो वह दोषी हो गया है.

भूल गए हैं हम अपनी परम्पराओं और अपनी महान संस्कृति को जब एक भाई दूसरे भाई की पादुकाएं सिंहासन पर रखकर राजकाज चलाया करते थे .और अब जब एक भाई दूसरे भाई की सहायता करना चाहता है उसे अपराधी घोषित कर दिया जाता है. परीक्षा में भाई के भले के लिए अपने ज्ञान का  मौन समर्पण करने पर उसे मुन्नाभाई जैसे  गुंडे की श्रेणी में ला खडा कर दिया जाता है.

हमारी संस्कृति रही है कि भाई भाई के काम आए.मुँह बोले भाईयों तक ने वक्त पडने पर एक दूसरे की मदद की है.    लेकिन  समय ने अब ऐसी करवट बदली है कि ऐसा आसानी से करने नहीं दिया जाता है.  यह उचित समय है जब हम भ्रातृप्रेम की महान परम्परा को बचाने के लिए विमर्श की शुरुआत कर सकते है. ज़रा सोंचिए..!
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ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रिजेंसी ,चमेली पार्क कनाडिया रोड,इंदौर-18



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