Monday, September 5, 2016

ओलिम्पिक खिलाड़ी के नाम

व्यंग्य
ओलिम्पिक खिलाड़ी के नाम 
ब्रजेश कानूनगो   

हे भारत भाग्य विधाता ! हे शूरवीर ओलिम्पिक प्रतिभागी ! हे खेल श्रेष्ठ! यह जानकर बहुत प्रसन्नता है कि आखिर तुम अपने साथियों सहित खेल महाकुम्भ में पहुंचा ही दिए गए हो.
तुम पूछ सकते हो मैंने परम्परागत रूप से ‘सकुशल पहुँचने’ की बजाय ‘पहुंचा दिए गए’ क्यों कहा? तो बंधु, भारतीय खिलाड़ी सिर्फ खेलता है. उसका प्रतियोगिता में हिस्सा लेना उसके बस में कभी नहीं होता. मूल प्रतियोगिता में उतरने के पहले उसे कई छद्म प्रतियोगिताओं में संघर्ष करना पड़ता है. यहाँ भी उसकी जीत या हार कोई ख़ास मायने नहीं रखती. तुम भाग्यशाली रहे कि आखिर तुम्हारे कदम भी किसी न किसी तरह इस महाकुम्भ की धरती पर पड़े. वरना आज भी तुम्हारे जैसे कई शूरवीर खिलाड़ी आशा का दीप जलाए चन्दन चाचा के बाड़े में मल्लयुद्ध का अभ्यास करते हुए अपनी बारी की प्रतीक्षा में बैठे रह गए हैं.

हालांकि तुम्हारे साथ और भी कई खिलाड़ी वहां गए हैं जिनकी ओर भारत आशाभरी नज़रों से देख रहा है. मगर तुम जानते ही हो जब हमारे खिलाड़ी खेलने जाते हैं तो सवा सौ करोड़ का एक हिन्दुस्तान वहां किसी एक खिलाड़ी में केन्द्रित हो जाता है. कभी मिल्खासिंह भारत बन जाते हैं या कभी पप्पू यादव और कभी वह किसी एक विराट, विश्वनाथ आनंद, पी टी उषा, लिम्बाराम में सिमट जाता है.

तो प्रिय खेल श्रेष्ठ !  तुम वहां एक भारत हो और समूचा आर्यावृत तुम्हारे स्वर्ण पदक (या जो भी मिल जाए) को अपने भाल पर स्पर्श करना चाहता है. महाबली भीम रूपी विशाल भारतीय खेल जगत तुम्हारे किसी चमत्कारी दांव की प्रतीक्षा में विजयमन्त्रों की ध्वनि तरंगें और यज्ञ आहुतियों के धूम्र को रियो रणक्षेत्र की दिशा में प्रवाहित करने में तल्लीनता से संलग्न हो गया है.
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि जब तुम अपना ख़ास दांव लगा रहे हों तब यहाँ भारत में हो रहीं सामान्य घटनाएं तुम्हारा ध्यान भंग न कर सकें. संसद के हंगामें तुम्हारी स्मृति से विलुप्त हो चुके हों. छद्म गो-रक्षकों का आतंक और दलितों के आन्दोलन, नेताओं के विवेकहीन ओछे बयान और बड़ी संख्या में सामूहिक बलात्कार, हमारी भूलों के कारण आई विकराल प्राकृतिक आपदाएं आदि की घटनाएं तुम्हारे मन-मस्तिष्क को प्रभावित न कर सकें.

हे शूरवीर, श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए शरीर के साथ-साथ मन मस्तिष्क का स्वस्थ होना बहुत जरूरी होता है. तुम्हारा देश भले ही कठिन परिस्थितियों से गुजर रहा है, लेकिन परिस्थितियाँ इतनी भी विकट और विषम नहीं हैं कि उनकी चिंता में तुम अपना पदक गवां बैठो. तुम रियो से पदक जीतकर अवश्य लाना. हम आस लगाए बैठे हैं, निराश मत करना.


ब्रजेश कानूनगो


  

No comments:

Post a Comment