Wednesday, October 6, 2021

व्यंग्य के शरीर में हास्य की तोंद

व्यंग्य के शरीर में हास्य की तोंद


ऑन लाइन गोष्ठी में चल रहे गम्भीर व्यंग्य विमर्श के बीच उस दिन यकायक वरिष्ठ व्यंग्यकार की तोंद क्या नजर आई, देश के कोने कोने  में बैठे सहभागी रचनाकारों और प्रेक्षकों के कम्प्यूटर की खिड़कियों से निकलकर मुस्कुराहटें खुशबू की तरह वातावरण को महकाने लगीं।


कुछ चीजें छुपाए नहीं छुपतीं। इस संदर्भ में बड़ी पुरानी कहावत है, इश्क और मुश्क कभी छुपते नहीं, पता चल ही जाता है। मृग की नाभि से रिस रही कस्तूरी हो या मोगरे की महक, पता चल ही जाती है। समझने वाले जान ही लेते हैं कि कौनसा मामला पक रहा है आसपास। प्रेम प्रसंग की खुशबू से मालूम पड़ जाता है कि कल्लू हलवाई के बेटे और इमरती देवी की बेटी चमेली के बीच कौनसी खिचड़ी पक रही है।


दरअसल, यहां संदर्भ उजागर होने का तो है किंतु इसमें किसी प्रकार की सुगन्ध महसूस नहीं की जा सकती। तथापि कुछ अर्थों में यहां 'स्मेल' के दर्शन जरूर हो जाते हैं। रविवार था तो बेचारे वरिष्ठ सुबह से लगातार गोष्ठियों में शिरकत करते करते थक गए तो थोड़ी कमर सीधी करने की दृष्टि से सोफे पर लेटे लेटे ही स्क्रीन देखने लगे। इस बीच गलती से मोबाइल का कैमरा ऑन हो गया। शरीर का मध्य क्षेत्र क्लोज़ अप में आकर सार्वजनिक हो गया। खिड़की अचानक खुल जाए तो रहस्य उजागर हो ही जाते हैं। चाँद का टुकड़ा भी दिख सकता है और व्यंग्यकार के पेट का उभार भी।


किसी सुंदर मुखड़े वाली नायिका और किसी बावले छोरे की कोई रोमेंटिक कहानी होती तो इस अवसर पर दूसरी खिड़की वाला गा सकता था, मेरे सामने वाली खिड़की में एक चाँद का टुकड़ा रहता है। यहां तो क्लोजअप के कारण पेट का पहाड़ नजर आ गया था। यह छोटा सा टीला मोबाइल की छोटी खिड़की में से होकर हिमालय में रूपांतरित हो गया था। गोष्ठी के सारे प्रतिभागियों का ध्यान मुख्य वक्ता के वक्तव्य से हटकर हिमालय के सौंदर्य में भटक गया। जहाँ व्यंग्य के सौंदर्यशास्त्र की बारीकियों पर नहीं व्यंग्यकार की वृहद तोंद पर चर्चा होने लगी। इस विमर्श में शामिल जो सहभागी चादर ओढ़कर आंखें बंद कर कैमरा ऑफ, माइक म्यूट कर विमर्श का आनन्द ले रहे थे निश्चित ही वरिष्ठ व्यंग्यकार की तोंद की भव्यता व दिलकश सौंदर्य के दर्शन करने में चूक गए होंगे। दुर्भाग्य रहा उनका। व्यंग्यकार के खुरापाती मस्तिष्क के आगे सामान्यतः बेचारा यह शूद्र पेट कहाँ नजर आ पाता है।


मुख्य वक्ता अपने उद्बोधन में रचना में व्यंग्य और हास्य के जरूरी अनुपात की बात कर रहे थे लेकिन इधर वरिष्ठ जी की ऑन लाइन खिड़की ने व्यंग्य की गंभीरता के बीच हास्य की हवा बहा दी। व्यंग्य की यही तो खूबी है कि हास्य की तनिक स्निग्धता के बीच व्यंग्य की आरी चलती रहे।


बहरहाल, व्यंग्यकार के तोंद दर्शन प्रसंग ने ऑन लाइन लाइव विमर्श के विषय 'व्यंग्य रचना में   कितना हास्य हो?' को भी बड़े ही प्रभावी रूप से स्पष्ट कर दिया था कि रचना के भारी शरीर में मात्र तोंद जितना हास्य ही उचित  माना जा सकता है। यही उस गंभीर गोष्ठी की बड़ी सफलता कही जा सकती है।


ब्रजेश कानूनगो

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