Sunday, October 10, 2021

मंगलग्रह पर फ्लैट की मद्यमवर्गीय आकांक्षा

मंगलग्रह पर फ्लैट की मद्यमवर्गीय आकांक्षा


जैसे कोई अफसर बोतल खुलते ही खुलने लगता है, जैसे कोई मिनिस्टर कड़कनाथ के बाद अपनी कड़कता भूलकर ढीला पडने लगता है, जैसे कोई प्रेयसी बादल घिरते ही प्रियतम की याद में बेचैन होने लगती है वैसे ही साधुरामजी में मिठाई देखकर मिठास घुलने लगती है। मीठा उनकी कमजोरी है। लेकिन महंगाई के इस दौर में सम्भव नहीं कि हर मेहमान के आगमन पर मोतीचूर के लड्डू या गुलाब जामुन की खुशबू से कोई मद्यमवर्गीय मेजमान अपने ड्राइंग रूम को महका कर सत्कार कर सके।

और फिर साधुरामजी तो वैसे भी घर के सदस्य की तरह हैं अतः एक कप चाय पिलाना परम्परा सी हो गई है।  उनके आते ही मैने बिटिया को आज का अमृत लाने का आदेश दिया और उनसे मुखातिब हुआ- ‘कहिए कैसी चल रही है आपकी सरकार? सुना है इनके और उनके फैसलों में कोई अंतर नही दिखाई दे रहा।’


‘हाँ, यह तो है! न उनके पास कोई चमत्कारी छड़ी थी और न ही ये भी किसी पीसी सरकार के वंशज हैं कि जादू चला के महंगाई के दानव को कबूतर में बदल सकें।’ साधुरामजी ने पीडा व्यक्त की।


तभी चाय बनकर आ गई। चुस्की लेते ही प्रश्न भरी नजरों से मुझे घूरने लगे। प्याली के साथ उनकी यह मुद्रा खबरिया चैनलों के किसी शातिर एंकर की तरह दिखाई दे रही थी। मैने भी चाय का स्वाद लिया तो पाया कि जैसे चाय में शकर थी ही नही। मैने पत्नी को पुकारा तो उन्होने बेटी को भेज दिया।


‘बेटे ,चाय में शकर नही डाली क्या?’ मैने पूछा।


‘डाली तो है पापा, मगर रोज से कम। मम्मी कहती है अब ऐसी ही कम शकर वाली चाय पीना पड़ेगी। घर गृहस्थी के खर्च में कमी के लिए मम्मी ने कुछ नियम बनाए हैं।' इतना कह कर वह भीतर चली गई।


‘ओ-हाँ ,याद आया, साधुरामजी वह क्या है कि बढ़ती महंगाई की वजह से हम आत्मानुशासन से घर का वित्तीय प्रबंधन कर रहे हैं।  हमने सोचा है कि जो चीजें हमारी औकात से दूर हो रहीं हैं उनके खर्च पर लगाम लगा लें। सरकार का रुख भी कुछ ठीक नही दिखाई देता।’ मैने संकोचभरी हकलाहट के साथ कहा।


साधुरामजी अपने मुख को थोड़ा विकृत ज्यामितीय रूप देते हुए बोले- ‘लगता है राजनीति में फिर कुछ न कुछ घटेगा, मँहगाई की मार वैसी ही बनी हुई है जैसी इस सरकार के आने के पहले थी... और अब यह शकर के दामों का किस्सा.. शकर के कारण लोगों के दिलों में बड़ती कडुवाहट का मूल्य कहीं सरकार को न चुकाना पड़ जाए, देश की राजनीति पर इसका गहरा असर पड़ सकता है।’ साधुरामजी के भीतर के नेता को चिंता सताने लगी।


‘लेकिन हमें राजनीति से क्या? हमे तो शकर मिलनी चाहिए सस्ते दामों पर।’ मैने कहा तो उनका सत्ता समर्थित राजतीतिज्ञ जाग गया- ‘क्या शकर का इस्तेमाल इतना जरूरी है तुम्हारे लिए?’ ऐसा लगा जैसे मधुमक्खी गुलाब पर अपनी मिठास की आवश्यकता के लिए प्रश्नचिन्ह लगा रही हो।


‘हाँ,मिठास भी आवश्यक है मनुष्य के लिए, और अगर आप सोचते हैं कि खाने में हम मिठास को त्याग दें तो चलिए आप हमें अपनी व्यवस्था से, तंत्र से ‘मीठा-व्यवहार’ दिलवाइए। हम शकर का उपयोग छोड़ देंगे। जब हर तरफ कडुवाहट फैली हुई है तो वहाँ शकर के चन्द दाने कौनसी मिठास घोल देंगे जीवन में। मैं तो कहता हूँ, आप घरेलू बाजार में शकर उपलब्ध ही मत कराओ बल्कि समूची शकर को निर्यात करके कुछ हेलिकाप्टर और तोपें खरीद लो, वक्त बेवक्त आपका और विपक्ष का समय संसद में कट जाया करेगा बहसों में।’ रक्तचाप ग्रसित मेरा चेहरा तमतमा उठा।


‘तुम तो ख्वामखाह नाराज हो गए, मेरा मतलब यह थोड़े था। ये तो तात्कालिक स्थितियाँ हैं, कभी प्याज तो कभी तेल, कभी दूध तो कभी शकर, महंगी-सस्ती होती रहती हैं। जरा जीना सीखो। ये छोटे-छोटे अभावों से क्यों प्रभावित होते हो। तुम तो महान देश के एक समझदार और सच्चे देशभक्त नागरिक हो। जरा उन अमर क्रांतिकारियों के बलिदान को याद करो, जिन्होने भारी अभावों और कष्टों के बीच देश को आजाद कराया....और आज भी तुम एक नई आजादी के दौर से गुजर रहे हो...।’ साधुरामजी का राजनीतिज्ञ शब्दों में निरंतर शकर घोल रहा था...और हम तुम्हे क्या नही दे रहे... थोडा-सा इंतजार तो करो...इतना अधीर भी मत बनों...अच्छी चीजें आसानी से नही मिल जाती... थोडा-बहुत सेक्रिफाइज और त्याग तो हरेक को करना पडेगा... तुम भी क्या यह तुच्छ-सा महंगाई  का रोना लेकर बैठ गए।’ 


‘मैं आपकी मीठी-मीठी बातों में आने वाला नही हूँ, साधुरामजी। सरकार को चाहिए कि वह शकर को सस्ते दामों में हमेशा उपलब्ध कराए,बस।’ मैने सीधे-सीधे कहा तो वे क्रोधित हो गए-‘तुम भी अजीब आदमी हो, एक मामूली सी चीज के लिए अड़ रहे हो, माँगना ही है तो एयरपोर्ट मांगो, एक्सप्रेस हाई वे मांगो, एम्स मांगो, यूनिवर्सिटी मांगो, जो दिया जा सके वह माँगो।’ इतना कहकर साधुरामजी आँखे लाल किए पैर पटकते लौट गए। वे रुकते तो एक बार अवश्य उनसे पूछता, एयरपोर्ट पर कौनसी कम्पनी के विमान में हम यात्रा करें? एक्सप्रेस हाइवे पर गाड़ियां किस ईंधन से दौड़ाएं? एम्स ही क्या अन्य चिकित्सालयों में डॉक्टरों की भर्ती कब पूरी हो जाएगी? नई यूनिवर्सिटियों से पहले पुराने स्कूल कॉलेजों में शिक्षकों की संख्या और गुणवत्ता पर क्या कहना है?

मन ही मन मैं सोचने लगा- शायद साधुरामजी ठीक ही कह रहे थे। अब सस्ते तेल,शकर, पेट्रोल,डीजल,गैस जैसी मामूली चीजों के लिए सरकार को परेशान करने  की बजाए मंगल ग्रह पर नई कॉलोनी के विकास और उस पर अपने लिए एक फ्लैट आबंटन की गुजारिश करना ही उचित होगा। क्या कहते हैं आप!


ब्रजेश कानूनगो

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