Monday, July 12, 2021

महाराज श्रृंखला 8

 महाराज श्रृंखला 8

8

श्वेत सींगों वाला काला टोप


जयकारों की गगनभेदी गूंज के बीच महाराज मंच पर पहुंचे और दोनों हाथ जोड़ लगभग आधे झुक कर प्रजाजनों को नमन किया। यह उनकी अपनी विशेष शैली बन गई थी। लोग जानते थे कि अब दोनों हाथ उठाकर वे श्रोताओं,दर्शकों की ओर अपनी हथेलियाँ फैला कर स्नेह किरणों का प्रस्फुटन करेंगें। उन्होंने यही किया। इस बीच जयकारे और तालियों की ध्वनि लगातार बनी रही। 

पाषाण पुष्प की प्राथमिक पाठशाला के राज सम्मान से विभूषित अध्यापक हरि उपाध्याय बहुत अच्छी भाषा बोलते थे। हर राजकीय सार्वजनिक गोष्ठी,सभा,सम्मेलन आदि में सूत्रधार की भूमिका उन्ही के पास रहती थी। कुशल संचालन की वजह से गत वर्ष ही आदर्श शिक्षक  का राज सम्मान उन्हें प्राप्त हुआ था। आज भी मंच पर संचालन वे ही कर रहे थे। लगातार महाराज के सम्मान में जयकारे लगवा रहे थे।

महाराज की 'प्रजा नमन प्रक्रिया' के बाद तालुका प्रमुख ने जो अभी तक मंच पर ही थे, इशारा किया।  मंच के पीछे से दो वनवासी कन्याएं पारंपरिक वेशभूषा में सजीधजी बड़ी फूलमाला और सम्मान सामग्री लेकर आईं। तालुका प्रमुख ने गोपाल सेठ से अनुरोध किया कि महाराज को स्वागत माला वे पहनाएं। गोपाल सेठ ने कृष्णपाल को निकट बुलाकर कान में कुछ कहा तो उन्होंने मंच के सामने लगी एक कुर्सी पर बैठे व्यक्ति की ओर इशारा किया। वे प्रशांत कुमार थे, सेठ के दामाद और उत्खनन कम्पनी 'राधिका एंटरप्राइज' के प्रबंध निदेशक। तेजी से मंच पर आए। महाराज को माला उन्ही के हाथों पहनाई गई। अब वे मंच पर सबके साथ खड़े हो गए थे। इस बीच मंच संचालक हरि उपाध्याय उनका परिचय व प्रशंसा शब्द प्रसारित कर चुके थे।

पहले वाली दोनों कन्याओं के मंच के पीछे चले जाने के बाद दो अन्य बालिकाएँ मोगरे की वेणियों से मंच को महकाती हुई प्रकट हुईं। उनके हाथों में परातें थीं। एक में अंगवस्त्र और दूसरी में आदिवासी समाज में प्रचलित परंपरागत मुकुट रखा था। मुकुट क्या एक बड़ा काले रंग का धातु का टोप सा था जिसके दोनों ओर गजदंत की तरह ऊपर दो सफेद सींग निकले दिखाई देते थे।

यहां यह बताना भी आवश्यक है कि महाराज यहाँ राज्य के सम्राट की हैसियत से उपस्थित थे। उनका गणवेश भी इसका अहसास करा रहा था। वेशभूषा आज रेशमी कपड़े से बनी हुई थी। लाल धोती और पीले अंगरखे में उनका व्यक्तित्व बहुत चमक रहा था। सिर पर उन्होंने लाल,पीला और बैगनी रंग में रंगा बन्धेज का रेशमी साफा धारण किया था। जिस पर राजकीय चिन्ह का स्वर्ण बैज और एक छोटा मोर पंख उसे अन्य तुच्छ साफों से अलग कर विशिष्ठता दे रहा था।

सम्राट के कंधों पर इस बार अंग वस्त्र गोपाल सेठ ने पहनाकर महाराज का अभिनन्दन किया। इस खास काले रंग के अंगवस्त्र के बारे में महाराज ने पहले से जानकारी प्राप्त कर ली थी ताकि वे आज पहनने के लिए उचित वेशभूषा का चयन कर सकें। यह बहुत सही निर्णय भी रहा महाराज का। पीले अंगरखे और लाल धोती के साथ श्याम रंगी रेशमी अंगवस्त्र का खूबसूरत मेल हो रहा था।सम्राट के  दिव्य, अलौकिक और भव्यता के दर्शन तो उस वक्त हुए जब संतश्री रगडू महाराज ने वनवासियों की ओर से पारंपरिक हाथीदांत वाला काला टोप उनके सिर पर सजाया। यद्यपि इस प्रक्रिया में पूर्व से धारण राजसी साफा उतरने से महाराज का बढ़ता हुआ गंज क्षेत्र तनिक सार्वजनिक हो गया। किन्तु जो व्यक्तित्व का अद्भुत सौंदर्य अब नजर आ रहा था उसके आगे वह बहुत मामूली बात थी। 

राज्य सूचना तंत्र के राजकीय और पत्रकार फोटोग्राफरों ने इस भव्यता को अपने कैमरों में सहेज लेने में तनिक भी विलंब नहीं किया।

महाराज के स्वागत की सर्वाधिक महत्वपूर्ण और जोखिमपूर्ण रस्म निर्विघ्न सम्पन्न हो गई थी। यही रस्म महाराज को सर्वाधिक रुचिकर भी लगती थी। आगे तो बस औपचारिकताएं शेष रहीं थीं।

अतिथियों ने अपने आसान ग्रहण कर लिए। प्रशांत कुमार व अन्य अधिकारी मंच से उतरकर तनाव से थोड़ा मुक्त हो सामने नियत स्थान पर जा बैठे।

अब आगे की चीजें निजी सचिव काकदंत और महाराज का भाषण लिखने वाले राजकवि ज्ञानरिपु की सेवाओं पर प्रभाव डालने वाली और चिंता की बात हो सकती थीं। 

सूत्रधार मंच के सूत्र संभालने को फिर से उद्यत हुआ और पाषाण पुष्प का वायुमण्डल सम्राट की जयकारों की ध्वनि तरंगों से पुनः कम्पित होने लगा। 


ब्रजेश कानूनगो 

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