महाराज श्रृंखला 10
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अपशगुन की छाया
पाषाण पुष्प की जनसभा को संबोधित करने के बाद महाराज ने कुछ समय लोक कलाकारों के साथ बिताया और स्वर्ण उत्खनन परियोजना के शिलान्यास स्थल पर हेतु जल्दी ही पहुंच गए। उनकी बेसब्री से वहाँ प्रतीक्षा हो रही थी। उत्खनन कम्पनी के एमडी प्रशांत कुमार ने महाराज की अगवानी की। संगमरमर पर शिलान्यास का एक आकर्षक पत्थर तैयार किया गया था, जिस पर महाराज के अलावा संतश्री और गोपाल सेठ की उपस्थिति का उल्लेख भी बड़े अक्षरों में किया गया था।
शिलालेख को स्थापित करने के पूर्व राज पुरोहित ने महाराज से पूजा अर्चना करवाई और एक कुदाल से भूमि पर थोड़ी सी औपचारिक रूप से प्रतीकात्मक खनन कार्य करवाया। फोटोग्राफरों के कैमरों की चमक के साथ वहां उपस्थित लोगों ने तालियां बजाकर ऊंचे स्वर में महाराज का परम्परागत जयघोष किया।
तभी एक राजसेवक ने उपस्थित होकर महाराज के निजी सचिव काकदंत के कानों में कुछ आवश्यक संदेश दिया। निजी सचिव तुरन्त महाराज के समीप पहुंचे और उनको राजधानी से आए आवश्यक संदेश की जानकारी दी।
यद्यपि संध्या काल में संतश्री के आश्रम में प्रार्थना सभा और रात को सांस्कृतिक कार्यक्रम में महाराज को भी शामिल होना था, किन्तु संदेश पाते ही महाराज ने पाषाण पुष्प का दौरा उसी वक्त समाप्त कर दिया।
थोड़ी ही देर में उनकी विलायती बड़ी कार राजमहल की दिशा में आगे बढ़ रही थी। महाराज के मुख मण्डल पर परेशानी पढी जा सकती थी।
ड्राइवर लाखनसिंह शांत चित्त गाड़ी चला रहा था। महाराज और काकदंत की धीमी आवाज में बातचीत के शब्द कानों तक पहुंच कर स्पष्ट कर रहे थे कि रियासत के अस्तित्व पर बड़ा संकट आ खड़ा हुआ है।
मन विचलित हुआ तो एकाग्रता भंग हो गई। नजर हटी कि दुर्घटना घटी। अकस्मात ब्रेक लगने की जोरदार आवाज के साथ गाड़ी रुक गई।
'क्या हुआ लाखनसिंह?' काकदन्त और महाराज की आवाजें एक साथ गूंजी।
सुरक्षाकर्मी तुरन्त गाड़ी से उतर कार के टायरों की ओर देखने लगा। लाखनसिंह भी उतर कर देखने लगा।
अगले पहियों के नीचे एक व्यक्ति कुचल गया था।
देखने में वह कोई बुजुर्ग वनवासी लग रहा था।
इस बीच काकदंत भी नीचे उतर आए थे। कार में केवल महाराज रह गए।
नीचे उतरे तीनों व्यक्तियों ने रियासत पर आई विपदा व महाराज की मनःस्थिति को ध्यान में रख कर कुछ मन्त्रणा की।
गाड़ी पुनः आगे बढ़ी तो महाराज ने पूछा, ' क्या हो गया था काकदंत? गाड़ी क्यों रोकना पड़ी?'
'कुछ नहीं महाराज! एक श्वान गाड़ी के नीचे आकर मर गया!'
'ओह! ईश्वर उसे सदगति दे।' महाराज ने आंखें बंद कर लीं।
आधा पौन घण्टा यात्रा के बाद महाराज राजमहल पहुंच चुके थे। महामंत्री के सचिव ने बताया कि संघ गणराज्य का एक प्रतिनिधि मंडल अतिथिगृह में विश्राम कर रहा है और संध्या समय महाराज से भेंट करना चाहता है।
जिस अनिष्ट की महाराज को आशंका थी,वह घड़ी बिल्कुल करीब थी।
शीतल जल से स्नान के बाद तनाव तनिक कम होने की संभावना बनती है...महाराज प्रसाधन गृह की ओर बढ़ गए...
ब्रजेश कानूनगो
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