Saturday, July 10, 2021

महाराज श्रृंखला 5

महाराज श्रृंखला 5

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प्रतीक्षा करता 'पाषाण पुष्प'
 

राज्य का 'पाषाण पुष्प' क्षेत्र अपने नाम की तरह ही पहाड़ों और चट्टानों के बीच किसी पुष्प की तरह ही नजर आता था। राज्य सीमा के एक छोर से दूसरे छोर तक प्रवाहित होने वाली प्रमुख नदी 'राजगंगा' का उदगम भी इसी क्षेत्र के पर्वतों से निकली धाराओं के समुच्चय से हुआ था। नदी के कछार घने वनों से आच्छादित थे। कुछ तो ऐसे इलाके भी थे, जहां कभी कभी सूरज की रोशनी भी छन कर बड़ी मुश्किल से पहुंच पाती थी।
'राजगंगा' के प्रति राज्य के लोग माँ की तरह श्रद्धाभाव रखते थे। वास्तव में यह नदी राज्य की सामाजिक,आर्थिक विकास की जीवन रेखा भी थी।
इसी 'पाषाण पुष्प' की वनों से आच्छादित भूमि के नीचे स्वर्ण खनिज भंडार उपलब्ध होने का पता चला था। बाद में जांच आदि के बाद पुष्टि भी हुई।
आज यहां प्रस्तावित 'स्वर्ण खनिज उत्खनन परियोजना' का उद्घाटन करने महाराज का काफिला राजधानी से प्रातः ही प्रस्थान कर चुका था।
'पाषाण पुष्प' तालुका के प्रमुख कृष्णपाल ने सारी व्यवस्थाएं अपने हाथ में ले रखीं थीं। वे नहीं चाहते थे कि महाराज के दौरे के समय कोई कसर रहे। उन्हें महाराज के निजी सचिव काकदंत की ओर से क्षण प्रतिक्षण कार्यक्रम की रूपरेखा पहले ही प्राप्त हो चुकी थी।

समय रहते उन्होंने संत रगडू महाराज के आश्रम में जाकर तैयारियों का जायजा ले लिया था। वनवासी लोगों की संत रगडू महाराज में अत्यंत आस्था थी। यों कहें कि वे एक मायने में वनवासियों के साक्षात भगवान थे। महाराज स्वयं संत को नमन कर आशीर्वाद लेने सबसे पहले राजगंगा नदी के कछार के प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण बहुत सुंदर स्थान पर स्थित इसी आश्रम में पधारने वाले थे। हालांकि संतश्री का आश्रम राज भूमि पर कोई बीस बरस पहले उनके गुरुजी  ने छोटी से पर्णकुटी के रूप में तैयार किया था। जिसका विस्तार शनै शनै अनुयायियों की संख्या के अनुपात में बढ़ता गया। राजकीय दस्तावेजों में आश्रम विवादित भूमि पर निर्मित बताया गया था और बीच बीच में कुछ समाज सुधारक याद दिलाया भी करते थे, किन्तु संतश्री का यह ईश्वरीय चमत्कार ही था कि सब कुछ भुलाकर महाराज स्वयं उनके दर्शनों को पधार रहे थे।इसके पीछे राज्य के व्यापक हित में महाराज की वह सोच थी जिससे स्वर्ण उत्खनन परियोजना का रास्ता साफ होना था। 

महाराज को यह जानकारी दी गई थी कि संतश्री का आशीर्वाद यदि उन्हें मिल गया तो वनवासी समाज की ओर से उत्खनन योजना के सफल कार्यान्वयन में आने वाली बाधाओं में कुछ कमी लाई जा सकती है। इसीलिए संतश्री के दर्शन और उनके आशीर्वाद प्राप्त करना राजन की प्राथमिकता में था।

यद्यपि राजन की सम्पूर्ण शिक्षा दीक्षा विलायत में हुई थी किन्तु राज्य के कल्याण और विकास के लिए उन्होंने भारतीय परंपराओं को कुछ इस तरह अपना रखा था कि वे अपने व्यक्तित्व को देश काल और परिस्थितियों के अनुसार कभी भी परिवर्तित कर सकते थे। भोजन,भाषा,वेशभूषा के प्रति वे बहुत लचीले थे, जिसका लाभ उन्हें समय समय पर मिल जाता था। यद्यपि महाराज के अवसर उपयुक्त परिधानों की संदूक काकदंत साथ लेकर चलते थे लेकिन तालुका प्रमुख ने एहितियातन आश्रम प्रवास के समय धारण करने हेतु महाराज के लिए एक उपयुक्त सादगीपूर्ण अतिरिक्त धवल वेशभूषा तैयार करवा ली थी।

चूंकि महाराज के प्रवास की प्राथमिकता में संतश्री का आश्रम सबसे पहले था, इसलिए तालुका प्रमुख  कृष्णपाल ने भी सबसे पहले यहां की व्यवस्थाएं सुनिश्चित कर ली। अपने एक अधिकारी की ड्यूटी उन्होंने एक दिन पहले ही लगा दी थी कि वह यहां की व्यवस्थाओं पर नजर रखता रहे।

संतश्री के आश्रम के आसपास के वातावरण की शुद्धता का खास तौर पर खयाल रखा गया था। तालुका प्रमुख के निकट संबंधी एक दबंग व्यवसायी के लाभ हेतु कुछ कार्यों को उनसे करवाया गया था। यही वजह थी कि प्राकृतिक रूप से सम्पन्न होने के बावजूद कुछ खुशबूदार फूलदार पौधे रातों रात आश्रम मार्ग के दोनों तरफ सुशोभित कर दिए गए थे। जिसके खर्च का भुगतान राजकोष से आवंटित राशि से होना था।

आश्रम के सेवादारों को भी निर्देश थे कि वे स्नानादि से निवृत्त होकर नवीन धवल व स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। जिससे वातावरण में उत्कृष्ट आध्यात्मिक गंध व दृश्य उपस्थित हो सके। तालुका प्रमुख के कहने पर नगर सेठ ने  यथायोग्य नवीन वस्त्रों , स्वल्पाहार आदि सहित अन्य व्यवस्थाएं अपनी ओर से प्रायोजित कर दी थीं। यह दायित्व निभाते हुए उन्हें आत्मिक प्रसन्नता हो रही थी। उनका परिवहन का कारोबार था और खनन परियोजना में अपने कारोबार के विकास की बड़ी संभावनाएं दिखाई दे रहीं थीं।

अचानक तालुका प्रमुख  कृष्णपाल को स्मरण हुआ कि कहीं महाराज आश्रम  में प्रवेश करने के पूर्व राजगंगा को नमन करने उधर तट की ओर न मुड़ जाएं। उनका भरोसा नहीं रहता था,कब क्या इच्छा जाहिर कर दें। पिछली बार भी अचानक उन्होंने एक वनवासी परिवार के साथ भोजन करने और लोक नृत्य का आनन्द उठाने की आकांक्षा व्यक्त करके बड़ी परेशानी पैदा कर दी थी। इस बार पहले से ही यथोचित तैयारी तालुका के सांस्कृतिक विभाग के अधिकारियों ने कर ली थी। वनवासी परिवार की झोपड़ी में राज हलुवाई द्वारा तैयार किया गया भोजन पहुंचा दिया गया था। वनवासी युवक युवतियाँ सज धज कर लोक नृत्य करने के उत्साह से भरे हुए थे।
महाराज के रामगंगा दर्शन व नमन की आकांक्षा की आशंका के चलते  कृष्णपाल ने अपने एक अधीनस्थ को नदी के तट की ओर दौड़ाया और किनारे पर स्थित शिव मंदिर के पुजारी को सचेत कर उचित व्यवस्था करने के निर्देश दिलवाए।

समूचा 'पाषाण पुष्प' अब महाराज के काफिले का नगर में प्रवेश का बेचैनी से इंतजार कर रहा था। तालुका प्रमुख की धड़कने कभी तेज तो कभी मध्दिम पड़ रहीं थीं। 

ब्रजेश कानूनगो
 

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