Monday, July 12, 2021

महाराज श्रृंखला 7

 महाराज श्रृंखला 7

7

जो राजन मन भाए


स्वर्ण खनिज उत्खनन परियोजना के उद्घाटन समारोह के लिए राजगंगा के तट के निकट की पठार भूमि पर एक भूखण्ड को समतल कर बहुत खूबसूरत मंच व सभा स्थल विकसित किया   गया था। इस कार्य के लिए गोपाल सेठ के सौजन्य से प्रतिष्ठित इवेंट मैनेजमेंट कम्पनी को पड़ोसी राज्य की राजधानी से विशेष रूप से बुलवाया गया था। पड़ोसी राज्य का वह बड़ा शहर नाट्य आदि कलाओं के लिए बहुत विख्यात था और वहां ऐसे मंच आदि बनाकर कई आयोजन होते रहते थे। अंर्तराष्ट्रीय सम्मेलन भी वहां हुए थे, ऐसे कार्यों का कम्पनी को काफी अनुभव था। मात्र दो दिन में ही उसने यह विशाल स्थल व मंच तैयार कर दिया था। 


गोपाल सेठ के दामाद प्रशांत कुमार की उत्खनन कम्पनी का बड़ा बैनर मंच के पीछे लगाया गया था,जिसमें महाराज की बड़ी तस्वीर के साथ रगडू महाराज की तस्वीर भी दिखाई दे रही थी।  पार्श्व में राजगंगा माँ के रूप में चित्रित की गई थी, जिनकी साड़ी किसी नदी के प्रवाह सी पूरे पोस्टर पर फैली हुई थी। किनारों पर महाराज और संतश्री तस्वीरों में माँ को हाथ जोड़े नमन कर रहे थे। अन्य खाली जगहों को गेंदा फूलों की मालाओं,आम्र पल्लव और कदली पात तथा उसके स्निग्ध तनों से सजाकर श्रृंगारित किया गया था। बहुत भव्य और आकर्षक बन पड़ा था समूचा सभा स्थल। पाषाण पुष्प का यह स्थल आज इंद्रलोक के राज पुष्प पारिजात की तरह सौंदर्य बिखेरता महक रहा था। अद्भुत छटा मन को मोह रही थी।

दूसरी ओर उत्खनन कम्पनी के प्रबंध निदेशक प्रशांत कुमार ने सारी व्यवस्थाएं कुछ इस तरह अपने हाथ में ले रखीं थीं कि सब कुछ सहजता से होता जा रहा था। वे ही नहीं अधिकांश प्रजा जन महाराज की पसंद ना पसंद अब भली प्रकार समझने लगे थे। उसी के अनुसार मंच सज्जा से लेकर अन्य बातों में महाराज की रुचि का ध्यान रखा गया था। 

योजना का विरोध कर रहे आंदोलनकारियों को पहले ही नजरबन्द किया जा चुका था। पत्रकारों को साधने के समुचित प्रयास कर के सुनिश्चित कर लिया गया था कि असहज करने वाला कोई प्रश्न न पूछ सकें। प्रश्न वही हो जो राजन मन भाए।

प्रशांत कुमार महाराज की प्रसन्नता के सूत्रों के अलावा यह भी जानते थे कि स्वर्ण उत्खनन होने के पूर्व  कुछ स्वर्ण अपनी ओर से खर्च करना भी जरूरी होगा। पैसा ही पैसा पैदा करता है। आज लगाया बीज कल पेड़ बनने वाला था। 

मंच पर केवल तीन आसन लगाए गए थे। बीच में महाराज का सिंहासन था। उनके आसपास गोपाल सेठ और संत रगडू महाराज के आसन रखे गए थे। थे तो वे भी भव्य किन्तु राज्य मर्यादा  के तहत उनकी भव्यता महाराज के आसन से थोड़ी कमतर थी, ऊंचाई भी कम थी। 

मंच के सामने नागरिकों के बैठने की व्यवस्था की गई थी। राजदल के साथ आए लोगों के लिए कुर्सियाँ लगाई गईं थीं। इवेंट कम्पनी के फोटोग्राफरों और राजधानी से आए पत्रकारों के लिए भी खास कोण पर उचित स्थान आरक्षित किया गया था। अधिकारियों, वनवासियों, नागरिकों के साथ साथ महिलाओं के लिए भी बैठने के लिए अलग अलग वृत्त बनाए गए थे। मंच के पीछे भी दो कक्ष तंबू व कनातों से बनाए गए थे,जिनमें नृत्य कलाकारों के साथ थोड़े स्वल्पाहार की व्यवस्था की गई थी। मंच के पास एक उपमंच बना था जिस पर दो कलाकार बैठे शहनाई और नगाड़ा वादन शुरू कर चुके थे। धीरे धीरे आयोजन स्थल नागरिकों से भरता जा रहा था। 

इसी बीच राज्य के सुरक्षा प्रमुख मंच का निरीक्षण कर गए, यद्यपि खतरा सूंघने वाला श्वान नजर नहीं आया तथापि सुरक्षा प्रमुख की निजी घ्राण क्षमता के राज्य में बड़े चर्चे थे। प्रत्यक्षतः  महाराज के आसन के आसपास कोई यंत्र लहराकर वे आश्वस्त हुए कि कोई घातक उपकरण अथवा बम आदि वहां नहीं लगाया गया है। सुरक्षा प्रमुख के मंच से उतरते ही संतश्री का एक अनुयायी भी मंच पर आया और निर्धारित आसन पर लगा रेशमी आवरण हटाकर उस पर कुश से बनी एक चटाई सी बिछा दी। यह संकेत था कि अब अतिथि मंच पर अपना स्थान ग्रहण करने ही वाले हैं। 

तभी मंच के समीप हलचल हुई। व्यवस्था में तैनात सुरक्षाकर्मी चौकन्ने और उपस्थित नागरिक उतावले होने लगे। 

महाराज का वाहन मंच के पास आकर रुका तो आगे बढ़कर तालुका प्रमुख कृष्णपाल ने पुष्पगुच्छ देकर उनकी अगवानी की।

पीछे संतश्री रगडू महाराज और गोपाल सेठ की गाड़ियां भी लगी हुई थीं। अधिकारीगण स्वागत व स्क्वाड करते हुए अतिथियों को लेकर मंच की सीढ़ियाँ चढ़ने लगे। मंच के सूत्रधार और प्रजा जनों ने महाराज की जयकार से पाषाण पुष्प के गगन को चीर कर रख दिया। 

थोड़ी देर में महाराज भी हृदय चीरकर प्रजा को अपने भीतर विद्यमान अदृश्य स्नेहगंगा के दर्शन करवाने वाले थे।


ब्रजेश कानूनगो 

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