Sunday, July 11, 2021

महाराज श्रृंखला 6

 महाराज श्रृंखला 6

6
संतश्री के आश्रम में 

प्रातः नौ बजे के आसपास महाराज का काफिला 'पाषाण पुष्प' सीमा में प्रवेश कर गया। महाराज के वाहन के साथ कुछ अधिकारियों के वाहन भी विश्राम गृह की ओर मुड़ गए। बाकी गाड़ियां सीधे कार्यक्रम स्थल की ओर निकल गईं। उन लोगों का स्वागत,स्वल्पाहार आदि वहीं होना था। इनमें कुछ पत्रकार, महाराज के प्रशंसक, व्यवस्था से जुड़े छोटे अधिकारी थे। कुछ सामान्य नागरिक महाराज की सभा में उपस्थिति बढाने की दृष्टि से भी निजी सचिव काकदंत साथ में ले आए थे। ये लोग इसी काम के लिए नियुक्त थे। काफिले में सदैव साथ जाने के लिए समुचित मानदेय की व्यवस्था भी इनके लिए की गई थी।

जैसी की परंपरा थी, विश्राम गृह पर एक कक्ष महाराज के लिए श्रेष्ठतम सुविधाओं से सज्जित, श्रृंगारित व व्यवस्थित किया गया था। अन्य कक्ष उनके साथ आए व्यवसायी मित्र गोपाल सेठ और कुछ बड़े अधिकारियों के लिए निर्धारित थे।

कोई आधा पौन घण्टे में महाराज तैयार होकर कक्ष से बाहर आए। स्वच्छ,धवल वेशभूषा में वे बहुत निर्मल व पावन दिखाई दे रहे थे। सुनहरी किनारी वाला अंग वस्त्र ही ऐसी चीज थी जिससे लगता था कि वे सम्राट हैं। बाकी उनकी छवि से किसी राजा के ऐश्वरीय तेज बजाए दिव्य आध्यात्मिकता टपकती दिखाई दे रही थी।
जैसा देश वैसा भेष की रीति नीति के अनुरूप संतश्री से भेंट के समय राजन एक संत की तरह ही मिलना चाहते थे। मन और आत्मा का तो कह नहीं सकते पर तन और वेशभूषा से तो प्रत्यक्षतः यही आभासित हो रहा था।

थोड़ी ही देर में संत रगडू महाराज के आश्रम की दिशा में महाराज के विशेष दल ने प्रस्थान किया।  तालुका प्रमुख कृष्णपाल की गाड़ी सबसे आगे स्क्वाड करते हुए चल रही थी। दस मिनट की यात्रा के बाद ये लोग संतश्री के आश्रम के मुख्य द्वार पर थे। यहां से पैदल ही उन्हें संतश्री की कुटिया तक जाना था।  वनवासियों और अन्य नागरिकों की काफी भीड़ यहां महाराज के दर्शन हेतु एकत्र हो गई थी। पैदल पथ के दोनों ओर रात को ही सजाए गए फूलों के ताजे पौधे अभी मुरझाए नहीं थे। फूलों और चंदन की खुशबू  वातावरण को और अधिक ही आध्यात्मिक बना रही थी। इत्र आदि की खुशबू बिखरने का एक यंत्र स्वागत द्वार के करीब के पौधे में तनिक छुपा कर रखा गया था।

मार्ग से गुजरते हुए आश्रम के निकट बहती हुई 'राजगंगा' की झलक दिखाई देते ही महाराज के चरणों की दिशा निकट की पगडंडी की ओर हो गई। कोई सौ गज दूर नदी का निर्मल जल प्रवाहित हो रहा था। तालुका प्रमुख कृष्णगोपाल ने मन ही मन अपनी पीठ स्वयं थपथपाई। उन्होंने तत्काल मन बदल लेने वाले महाराज के मन का पूर्व अनुमान जो लगा लिया था। नदी तट पर वे सारी तैयारियां पहले ही करवा चुके थे।
इसी बीच तट पर स्थित शिव मंदिर का पुजारी स्वयं अगवानी करने चला आया। महाराज के मस्तक पर उसने तिलक लगाया,आरती उतारी।

सम्पूर्ण श्रद्धा भाव से महाराज ने पहले माँ राजगंगा को ऊंचे स्वर में मंत्रोच्चार के साथ नमन किया फिर शिव मंदिर में पुजारी ने उनसे संक्षिप्त पूजा करवाई। कुछ राज्य मुद्राएं महाराज ने स्वयं अपने कुर्ते से निकाल कर आरती के दीप व मन्दिर की चौखट पर अर्पित कीं। उन्हें खुद पता नहीं चल सका कि उनके कुर्ते की जेब में तालुका प्रमुख ने कब ये मुद्राएं रख दी थीं। अन्यथा तो उनका पर्स दौरे के वक्त सामान्यतः काकदंत के पास रहता था। 
बहरहाल, माँ राजगंगा के दर्शन व आराधना के बाद यहां से पुनः वे संतश्री के आश्रम की ओर लौटे।
कुटिया के बाहर पादुकाएं उतारकर भीतर प्रवेश किया। संतश्री अपने आसन पर विराजे किसी पोथी में डूबे हुए थे। पता नहीं अध्ययन कर रहे थे,या आंखें बंद कर योगनिंद्रा ले रहे थे, कहा नहीं जा सकता। महाराज को द्वार पर देख पोथी तिपाही पर रखकर खड़े हो गए। बोले, 'आइए राजन, स्वागत है आपका।'
महाराज ने आगे बढ़कर, दोनों हाथ जोड़ थोड़ा झुककर प्रणाम किया।
'सुखी रहें, आपका ऐश्वर्य चारो दिशाओं में व्याप्त हो, आपकी प्रजा का कल्याण हो!'
कुछ देर महाराज आध्यात्म,आश्रम की कठिनाइयों, माँ राजगंगा के महत्व आदि के सम्बंध में बातचीत करते रहे। अब तक संतश्री के अनुयायी और महाराज के कुछ अधिकारी वहीं बने रहे थे। महाराज ने एकांत का इशारा किया तो सारे अधिकारी व अनुयायी बाहर चले गए।
एकांत में संतश्री से महाराज की क्या बातें हुई यह तो कोई नहीं जान पाया किन्तु बाद में महाराज का वाहन चालक लाखनसिंह कहीं बता रहा था कि जल्दी ही रगडू महाराज के आश्रम की अवैध भूमि का विवाद सुलझने की उम्मीद बंध गई थी।

अपराह्न स्वर्ण खनिज उत्खनन परियोजना के उद्घाटन समारोह में महाराज के साथ गोपाल सेठ के अलावा संत रगडू महाराज का आसन भी लगाया गया था।

ब्रजेश कानूनगो
    

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