Sunday, February 27, 2022

मूँछ और पूँछ के बाल

मूँछ और पूँछ के बाल 

मूँछ और पूँछ के बालों की अलग महत्ता रही है। यों कहें कि ये भी एक तरह का वर्ग विभाजन है। एक ओर वे लोग हैं जो किसी के मूँछ के बाल होने का सौभाग्य प्राप्त किए हुए हैं और दूसरी ओर वे लोग भी हैं जो किसी की दुम या पूंछ या अन्य हिस्सों से झर कर यहाँ उपस्थित हैं।

बड़े लम्बे समय से हमारे यहां मूँछ रखना बड़े गौरव की बात रही है। लेकिन अब किसी के मूँछ का बाल हो जाना उससे भी ज्यादा महत्त्व रखता है। जमाने के चलन और नए फैशन के दौर में आप भले ही मूँछ मुंडवा चुके हों लेकिन किसी तरह नेताजी,बाहूबली या मंत्री जी की मूँछ के बाल होने का सौभाग्य यदि प्राप्त कर लेते हैं तो आपका कद समाज में ऊंचा होने की पूरी सम्भावना बन जाती है।

जो मूँछ के बाल की कद्र करते हैं, वे अच्छी तरह इसके मूल्य को भी जानते हैं। कभी इन्हीं मूँछों की कसमें खाई जाती थीं। वादे-इरादे न पूरे कर पाने पर मूंछों के बलिदान कर देने का महान कार्य सम्पन्न कर इतिहास को समृद्ध किया जाता रहा है। मूँछ का एक-एक बाल बेशकीमती हुआ करता था। केवल एक बाल को गिरवी रखने पर करोड़ों के ऋण के लिए मार्डगेज या जमानत की व्यवस्था हो जाया करती थी। मूँछ के बाल की कीमत तुम क्या जानो साहब!

यदि आप मूँछ के बाल नहीं बन पा रहे तो घबराइए नहीं, नाक के बाल बनने का प्रयास कीजिए। मूँछ के बाल और नाक के बाल में कोई ज्यादा अंतर नहीं होता है। जैसे विज्ञान विषय में एडमीशन नहीं मिल पा रहा हो तो कॉमर्स की डिग्री ले लेते हैं, जैसे आईआईएम में प्रवेश नहीं मिलता तो बी-ग्रेड बिजनेस स्कूल से काम चलाते हैं, वैसे ही यदि आप मूँछ के बाल नहीं बन पा रहे हों तो नाक के बाल होने के लिए भी कोशिश करें।  नाक के बाल भी वही करिश्मा दिखाने का सामर्थ्य रखते हैं जो मूँछ के बाल करते हैं।

जहाँ तक पूंछ के बालों का सवाल है, वह ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुए हैं। अब कोई पूंछ का बाल बनना भी नहीं चाहता। और जो पूंछ के बाल हो गए हैं वे भी समाज में बहुत अपमानित महसूस करते हैं। कभी घोड़े की पूंछ के बालों से सारंगी को कसा जाता था, और मधुर धुन पैदा की जाती थी। अब सारंगी कोई सुनना ही नहीं चाहता। बालों के समाज में पूंछ के बाल उपेक्षित श्रेणी में देखे जाते रहे हैं। पूंछ के बाल सदियों से मूँछ के बालों द्वारा तिरस्कृत रहे हैं। अपने हितों के लिए पूंछ के बालों का संघर्ष बड़ा असंगठित है। नेतृत्व विहीन है। उनका आन्दोलन भी पूंछ की तरह केवल हिलता-डुलता रहता है, जिससे महज कीट-पतंगों के आक्रमण से तो अपने को बचाया जा सकता है, किंतु मूँछ के बालों के सुनियोजित हमलों का मुकाबला नहीं किया जा सकता।

पूँछ के बाल बरसों से यही आस लगाए बैठे हैं कि कभी कोई ऐसा भी उद्धारक पूंछ का बाल अवतरित होगा जो सभी पूंछ के बालों को गूंथकर शस्त्र बनाएगा और शत्रुओं से लोहा लेने में सफल होगा।

ब्रजेश कानूनगो


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