Tuesday, February 22, 2022

पत्र परंपरा : फूल तुम्हे भेजा है ख़त में

 पत्र परंपरा : फूल तुम्हे भेजा है ख़त में

पत्रलेखन की परम्परा हमारे यहाँ बहुत पुरानी है। जब मै चौथी कक्षा मे पढता था तब हिन्दी के पर्चे मे अपने पिता को पत्र लिखने के लिए कहा गया था जिसमे स्कूल की पिकनिक के लिए पिताजी से सौ रुपए मँगाने का अनुरोध करना था। पाँचवी कक्षा मे आने पर किसी मित्र को पत्र लिखने के लिए कहा गया। जैसे जैसे अगली कक्षाओं में चढ़ता गया,पत्रों के विषय जरूर बदलते गए लेकिन पत्र लेखन का प्रश्न अनिवार्य बना रहा। 

बचपन से ही पत्र लेखन के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन हमारे यहाँ दिया जाता रहा है। होठों के ऊपर काली रेखा के उगते ही,आम भारतीय छोरा ’मैने तुम्हे खत लिखा ओ सजनी...’ गाते हुए पत्र लेखन प्रतिभा का सार्वजनिक प्रदर्शन करने को आतुर हो उठता है। यहाँ तक कि निरक्षर प्रेमिका भी मुँह बोले भाई से ‘खत लिख दे साँवरिया के नाम बाबू’ कहने को विवश हो जाती है। पत्र लिखने लिखवाने की भावनाएँ बड़ी फोर्स से आती हैं। इसी विवशता और इसके महत्व के कारण सरकारों को भी प्रौढ़ शिक्षा जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा देना पडा ताकि पत्र परम्परा बनी रह सके। उद्देश्य यही है कि देश का हर व्यक्ति और कुछ नही तो कम से कम खत लिखना अवश्य सीख जाए। सोशल मीडिया के डिजिटल दौर के इस समय मे जो भी कागजी खत लिखे जा रहे हैं, देर सबेर उन्हे अपने गंतव्य तक पहुँचाने की गारंटी तो हमारे डाकघर अब भी देते ही हैं। चूँकि डाकघर आजादी के पहले खुल गए थे अत: लालडब्बे मे मय टिकिट और पते के डल जाने के पश्चात वे किसी न किसी तरह कभी न कभी ठिकाने लग ही जाते हैं। हमारे अग्रज व्यंग्यकार शरद भाई को भी इस बात का बडा संतोष था कि अँगरेज डाकघर यहीं छोड गए। 

एक वक्त वह भी था जब कालिदास की नायिका को मजबूरीवश मेघराज के मार्फत अपना सन्देश पहुँचाना पड़ा था। फिर कबूतर उडने लगे, चिट्ठियों के साथ। हरकारे दौडे, मोटरें,रेलें और हवाई जहाज आए तो खत भी सफर करने लगे। डाक विभाग अस्तित्व मे आया और एक बड़े महत्वपूर्ण प्राणी का विकास हुआ जिसे डाकिया कहा गया। डाकिया बाबू परिवार के आत्मीय सदस्य बन गए। इंतजारे डाकिया अपने आप मे एक हसीन अहसास रहा है। अहा ! कैसी अद्भुत रेशमी डोर हुआ करते थे साइकिल पर घर आए डाकिया बाबू। 

पत्र लेखन से हमारा साहित्य भी कम समृद्ध नहीं हुआ है। वो चाहे मिर्ज़ा ग़ालिब के खुतूत हों, महात्मा गांधी के हस्त लिखित पत्र हों या पंडित जवाहरलाल नेहरू के बिटिया इंदु के नाम लिखी चिठ्ठियाँ हों। विश्व साहित्य की अनमोल धरोहर हैं ये खत ! अब्राहम लिंकन का अपने बेटे के शिक्षक के नाम लिखे पत्र को कैसे भुलाया जा सकता है। ख़त लिखने की शुरुवात करने से ही आम इंसान में से टॉलस्टाय,शेक्सपियर,और मुंशी प्रेमचंद  निकलने की संभावनाएं पैदा होती हैं। 

दशको पहले दादाजी,पिताजी के लिखे ख़त आज भी स्नेह और अपनत्व की खुशुबू बिखेरते रहते हैं ! प्रेयसी द्वारा लिखे प्रेम पत्र आज भी मता-ए-ज़ीस्त लगते हैं ! दीपावली और ईद पर मिले बधाई पत्र आज भी यादो की मरूभूमि में नखलिस्तान बन जाते हैं। एसएमएस या ईमेल या वाट्सएप संदेश सब कागज़ के फूल हैं ! लेकिन यह भी एक कड़वी हकीक़त है.... अश्कों में बह जाती थी जिनकी इबारतें ..! अब वो मज्मून कहाँ, वो ख़त कहाँ ... !

दरअसल, दिल हो,फूल हो या खत हो यदि उस पर कोई आँच आती है तो सचमुच वह तो बहुत बड़ी खता होगी। पत्र परम्परा को बचाए रखने की जिम्मेदारी अब हम सब पर है।


ब्रजेश कानूनगो 

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