Thursday, February 17, 2022

कपलिंग कथा

कपलिंग कथा

एक गोष्ठी में विमर्श के दौरान जब उन्हें अकस्मात कहा गया कि वे भी विषय पर अपनी बात कहें। शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा कि वे अपनी बात 'टुकड़े टुकड़े' में कहने की कोशिश करेंगे।  उनका ऐसा कहने पर कुछ लोगों के चेहरों पर जो मुस्कान उभरी उसमें हास्य मिश्रित उपहास का भाव दिखाई दिया जैसे वे तथाकथित किसी अनैतिक गैंग के सदस्य हों।

सच यह है कि टुकड़ों टुकड़ों को जोड़ना ज्यादा जरूरी और उल्लेखनीय कार्य होता है।  बिना जोड़ लगाए कोई बात बनती नहीं। जोड़ना बहुत जरूरी है। यह कोई नई बात नहीं है। प्रभु राम के लंका प्रवेश को सुगम बनाने के लिए वानरों ने बिना किसी साधन के मात्र पत्थर जोड़कर सेतु निर्मित कर दिया था। आज तो ऐसे ऐसे पदार्थ बाजार में उपलब्ध हुए हैं कि सब कुछ जोड़ा जा सकता है। हाथियों से खींचकर भी कपलिंग तोड़े नहीं जा सकते। हरियाणा का लकड़ा पंजाब के पीतल से जुड़ जाता है और कर्नाटक का ग्रेनाइट राजस्थान के मार्बल से।

बोलचाल की भाषा में कहें तो ’कपलिंग’ चाहे जीवन की कठिन डगर पर निकले स्त्री-पुरुष के बीच दाम्पत्य का हो या लोहे की चिकनी पटरियों पर फिसलती तेज रफ़्तार रेलगाड़ी के डिब्बों के बीच के लीवर का, इनकी मजबूती ही सुखद यात्रा की गारंटी होती है। इस कपलिंग में की गयी ज़रा-सी लापरवाही रेलगाड़ी को दो हिस्सों में विभक्त कर सकती है।

बड़ी दिलचस्प है जोड़ने व कपलिंग की यह माया। जोड़ लगाए बगैर शायद ही कभी कोई फर्नीचर तैयार हुआ होगा। कुर्सी भी नहीं बनाई जा सकती। सत्ता की कुर्सी के लिए तो राजनीतिक दलों को कितनी कपलिंग करना पड़ती हैं। कपलिंग बोले तो गठबंधन। कई बार तो ऐसी कपलिंगों में कोई मेल ही नहीं होता, मजबूरी होती है। प्रजातंत्र की रेल दौड़ाने के लिए बेमेल कपलिंग भी करना पड़ जाती हैं। लोकतंत्र की गाड़ी फिर जहां तक सहजता से पहुँच जाए... नहीं तो जब की तब देखेंगे। कपलिंग टूटेगा तो नए लीवर लगाकर आगे का सफ़र पूरा कर लिया जाएगा। चिंता में अभी से दुबले होने से क्या फ़ायदा।

चीजों के जुड़ाव में कड़ियों का बहुत महत्त्व होता है।  जब तक कड़ियाँ आपस में नहीं जुड़ती निर्माण को विस्तार नहीं मिलता। विकास इसी निर्माण में झलकता है। रेलगाड़ी बनती है, मकान हो या देश, कड़ी से कड़ी मिलती है तब ही दिखाई देता है कि भवन बन रहा है, देश बन रहा है। ईंट से ईंट मिलती है तो दीवार खडी होती है। आदमी से आदमी जुड़ता है तो देश खडा होता है।

कई कड़ियाँ होती हैं जिनसे आदमी से आदमी जुड़ता चला जाता है।  प्रेम, सौहार्द , भाई चारे और शान्ति में जो यकीन रखते हैं वे हमेशा इसी कोशिश में लगे रहते हैं कि कड़ियाँ जुडी रहें। इसी सदइच्छा से नागरिक हाथों की कड़ियाँ जोड़कर मानव श्रंखलाएं बनाते हैं।  कुछ निरंकुश नरसांड अक्सर इन शांतिप्रिय लोगों के बीच घुस आते हैं, एक दूसरे का हाथ थामें लोगों की कड़ियों को तोड़ने के उपक्रम में उत्पात मचाने लगते हैं। इसके बावजूद विभिन्न भाषाओं, धर्मों, रीति रिवाजों और संस्कारों के इतने बड़े देश में अब भी कुछ ऐसे पदार्थ हैं जिन्होंने बड़ा शानदार कपलिंग किया हुआ है। ऐसी अनेक कड़ियाँ हैं जिन्होंने राष्ट्र को एक साथ जोड़ रखा है।

विवाह और राजनीति की रेल ही कपलिंग के कारण नहीं दौड़ती है बल्कि हमारी यह प्यारी दुनिया प्रकृति,मनुष्य और रिश्तों के मजबूत कपलिंग से ही खूबसूरत और जीने लायक अब तक बनी हुई है।अब यह हम पर है कि कपलिंग को मजबूती देने वाले एधेसिव को हम कितना महत्व देते हैं।किसी ने कहा भी है किसी चीज को तोड देना बहुत आसान होता है लेकिन जोड़ना बहुत मुश्किल काम है। विचार करें!!

ब्रजेश कानूनगो 



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