Sunday, February 20, 2022

खटिया खड़ी करना

 खटिया खड़ी करना 

महानगर से ग्रामीण क्षेत्र में चुनाव प्रचार को आए नेताजी बड़े जोश से कह रहे थे कि इस बार तो वे अपने दल के प्रतिद्वंदी की खटिया ही खड़ी करके रख देंगे। 

एक स्थानीय हिंदी प्रेमी पत्रकार कम साहित्यकार ने उनसे पूछ लिया कि क्या उन्हें पता है कुछ खटिया के बारे में? कभी सोए हैं उस पर? मूँज की रस्सियों से कैसे कलात्मक रूप से वह बुनी जाती है? उत्तर में वे नेताजी बगलें झांकने लगे।

दरअसल हर कोई अपने विरोधी की खटिया खड़ी करने पर तुला रहता है भले ही वह खुद या सामने वाला खटिया का इस्तेमाल तो दूर उसकी बनावट,बुनावट आदि तक के बारे में ठीक से नहीं जानता होगा। मुहावरे का प्रयोग करने से पहले कम से कम उसके बारे में थोड़ा बहुत अवश्य जान लेना चाहिए। खटिया क्या होती है? कैसी होती है? कैसे बुनी जाती है। कब खड़ी की जाती है। पहले समझो फिर इस्तेमाल करो।

अभी कुछ वर्ष पहले का इतिहास ही टटोल लेते जब एक जनसभा के बाद उपस्थित श्रोताओं ने वहां बिछाई गईं ‘खाटो’ को लूट लिया था। 

राजनीतिक पार्टी ने अपनी रैली में जरूर यही सोंचकर जनता-जनार्दन के लिए खटिया बिछाई होंगी कि वह चुनाओं में उनके निशान वाला बटन दबाकर अपना ‘खटिया धर्म’ निभाएगी, मगर अफसोस, मतदाता खटिया ही ले उड़े।

मेरे ख़याल से वह दुनिया में पहली और अकेली बात थी जब हमारे लोगों ने इतनी बड़ी संख्या में खुले आम लूट की महानतम घटना को अंजाम दिया था। यह मामूली घटना नहीं थी। संख्या के लिहाज से भी और साहस के हिसाब से भी। किसी भी लूट में हजारों की संख्या में लुटेरों ने कभी इतना जोरदार धावा पहले नहीं बोला होगा। बहुत संभव है गिनीज बुक सहित दुनिया की सभी रिकॉर्ड पुस्तकों में इसे दर्ज भी किया गया हो। इतनी बड़ी घटना के बावजूद कोई उनकी खटिया खड़ी नहीं कर पाया आज तक। वही प्रसंग पढ़ लेते तो खटिया के बारे में जानकारी मिल जाती। लेकिन नेताजी क्यों इतनी जहमत उठाने वाले।बस कह दिया कि खटिया खड़ी कर देंगे। 

अरे भाई, कुछ पता भी है खटिया कब खड़ी की जाती है? कैसे खड़ी की जाती है? खटिया के खड़ी होने के पीछे कितना दुख है,व्यथा है,करुण रस है। भारतीय सिनेमा नहीं देखते क्या? विविधभारती की राष्ट्रीय चैनल पर गाने नहीं सुनते क्या? या बस यों ही राष्ट्रवाद का राग अलापते रहते हो।  सुना नहीं वह बेचारा नायक कैसे गा गा कर गिड़गिड़ाता रहता है अपनी प्रेयसी के सामने, सरकाय लियो खटिया जाड़ा लगे....और हमारे हरि बाबू की व्यथा को याद कीजिए, रामदुलारी मैके गई, खटिया हमरी खड़ी कर गई...

हिन्दुस्तानी समाज में खटिया की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। धरती पुत्र का जीवन है खटिया। शादी ब्याह में माता पिता द्वारा बच्चों को उपहार में खटिया देने की परम्परा रही है, ‘खाट बैठनी’ जैसी मांगलिक रस्म होती है जिसमें नव-दंपत्ति साथ-साथ जीने-मरने का संकल्प लेते हैं। घर के बुजुर्गों के अवसान के बाद गाय, छतरी, बिछौने के साथ एक खटिया भी दान की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इससे संतान को बड़ा पुण्य मिलता है और मृतात्मा को सीधे स्वर्ग में खटिया सुख नसीब होता है। 

आज भी जब हम ग्रामीण क्षेत्र में जाते हैं तो सबसे पहले मेजमान आपके लिए खटिया बिछाता है, बैठाता है, फिर जलपान की व्यवस्था करता है। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो वह बहुत अपमान जनक माना जाता है। सामने वाला कहता है ’फलां ने तो हमारे लिए खटिया तक नहीं बिछाई!’ 

इस कथा के नायक नेताजी ‘खटिया खड़ी’ करना चाहते थे ? अगर खटिया खड़ी भी करना चाहते हैं तो वह सीधी खड़ी करना चाहते थे या उल्टी खड़ी करना चाहते थे?  किसी के सिधार जाने के बाद जब खटिया का पैरों के तरफ वाला हिस्सा दीवार पर सटाकर ऊपर की ओर रखकर खडा किया जाता है उसे खटिया को उल्टी खड़ा करना कहा जाता है। अब बताइए किसी भी व्यक्ति की खटिया को खड़ी कर देना या अपने प्रतिद्वंदी की मौत की कामना करना भारतीय संस्कृति के अनुकूल है? क्या किसी भी राजनीतिक पार्टी या व्यक्ति के गुजर जाने की चाह प्रजातंत्र की मौत की आकांक्षा की तरह नहीं होगी। विचार करें।

ब्रजेश कानूनगो


No comments:

Post a Comment