Friday, February 18, 2022

दम्भी गोभी की सोच और विनम्र चने की मौज

 दम्भी गोभी की सोच और विनम्र चने की मौज

जो स्थान पुष्प समाज मे गोभी को प्राप्त है लगभग वही स्थान वृक्ष जगत में चने को मिला हुआ है। गोभी फूल होकर भी पुष्प नहीं है और चने का वृक्ष नहीं होकर भी झाड़ कहलाता है। यद्यपि गुलाब को फूलों का राजा माना गया है लेकिन बदलती दुनिया में उसके स्थान धीरे धीरे अब कमल कब्जा करता जा रहा है। पुष्प समाज में गोभी के फूल की कोई औकात नहीं है फिर भी  शक्ल सूरत में कमल सी रंगत के चलते मन में कमल होने का भ्रम पाले रहती है। अब कहाँ राजा हिंदुस्तानी और कहां गंगा पनिहारिन ! कोई तुलना ही नहीं है। 

चना इस मामले में थोड़ा गोभी से अलग सोचता है। उसे कोई मुगालता नहीं है। लोग जुमलो में कितना ही चने के झाड़ पर चढ़ने की खयाली कवायद करते रहे हों किन्तु चना जानता है कि उसके तनों में इतना जोर नहीं कि अकड़कर अपना सीना ताने इठलाता फिरे। वृक्ष कुटुम्ब का हिस्सा होकर भी कभी यह चिंता नहीं करता कि उसे समाज का सदस्य माना भी जाए या नहीं। इसीलिए वह सुखी है। फालतू की महत्वाकांक्षा पालने के चक्कर में नहीं पड़ता। दूसरों को भले चने के झाड़ पर चढ़ाते गिराते रहिए पर चना स्वयं इस चक्कर में कभी नहीं पड़ता। चने को अपनी इसी विनम्रता व समझदारी की वजह से लोगों का भरपूर प्यार मिला है।

इस मामले में गोभी का चरित्र अलग है।  पत्ते उतरते ही उसका असंतुष्ट व कुपित चेहरा उजागर हो जाता है। कमल न हो पाने व पुष्प न माने जाने का दुख उसे सदैव परेशान करता रहता है। जब कमल स्वयं गुलाब का स्थान पाने में कामयाब नहीं हो पा रहा,संघर्षरत है, तब गोभी की क्या बिसात कि वह बगीचे की सरताज बन सके। क्यों जबरन ये भाजी बहिने बुआओं की तरह मुंह फुलाए बागवान को मुंह चिढाती रहती हैं। यदि आलू मटर के साथ ऊब गईं हों तो कमल गट्टे के साथ मिलकर नए जायके से लोगों का मन जीतने की कोशिश करें। इधर फुलवारी में अतिक्रमण क्यों करना चाहती हैं। 

गोभी के मुकाबले चना बड़ा संतुष्ट रहता है। कई तरह से वह लोगों के दिलों में जगह बनाने में कामयाब हुआ है। इससे जो खुशी मिलती है वही शायद उसकी धरोहर है। कच्ची उम्र में ही चना लोगों का मन मोह लेता है। उसका हरापन बहुत लुभाता है। पत्तियों से लदी डाल से घेटियों या लिलुओं से निकले मुलायम दानों की मुस्कुराहट जरा महसूस कीजिए... और जब चखेंगें,चबाएंगे तो काजू किशमिश और बादाम को भूलने लगेंगें। 

चना हर आम और खास का मेवा है। क्या राजा और क्या प्रजा। चने का खेत देखा नहीं कि वाहन से उतरने का मन करने लगता है। सेवक हो या प्रधान सेवक, छोड़ ही नहीं सकते इसे। एक बार चने के लिलुए से दाना निकाल चबाना शुरू किया तो मुंह रुकता ही नहीं। चबाते जाइए... इसके विपरीत गोभी के लाख तरह के पकवान बना लीजिए पर वह आनन्द कहाँ जो गुड़ चने में है। शायद महान बलशाली बजरंगबली को भी इसीलिए गुड़ चने का भोग लगाने की परंपरा रही है। 

यह बड़ा दिलचस्प है कि ज्यादातर प्रधानमंत्री अपनी शेरवानी पर गुलाब का फूल या कमल का बैज धारण करते रहे हैं। गोभी का फूल आज तक किसी ने नहीं लगाया लेकिन हर प्रधान ने चने के खेत में उतरकर स्वयं छोड़ तोड़कर चने के दाने अवश्य सेवन किए हैं। चने की विनम्रता देखिए इतना गौरव पाकर भी वह चने के झाड़ पर नहीं चढ़ता। खैर छोड़िए अब... छोड़ सेंकिए, होला खाइए...!!

ब्रजेश कानूनगो


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