Tuesday, September 8, 2020

योगासन से जनासन तक

 योगासन से  जनासन तक 


साधुरामजी की नजर जब मेरे बढ़ते हुए पेट की ओर गई तो बरबस उनका सींकिया शरीर कांप गया। थोड़ा झल्लाकर बोले- 'यह क्या हो रहा है भाई! सारी बीमारियों की जड़ है यह मोटापा, कम करिए जरा अपनी तोंद को, इसे कम करने के लिए कोई लोकपाल नहीं आने वाला है।' 


मैं थोड़ा झेंप सा गया, बोला- 'अब मैं क्या करूं साधुरामजी बढ़ती उम्र में यह सब होता ही है और मेरे पिताजी की भी ऐसी ही तोंद निकली हुई थी, खानदानी पहचान है'। मैंने अपनी झेंप छिपाते हुए स्स्पष्टीकरण दिया तो मेरे पेट पर एक हल्की सी धौल जमाते हुए वे बोले- 'सुबह सुबह आ जाया करो मेरे घर, मैं नित्य योगासन करता हूं, तुम भी करना, सब मोटापा छट जाएगा।'  


साधुरामजी का आदेश मेरे लिए पार्टी हाईकमान के आदेश की तरह ही होता है। मैं दूसरे दिन तड़के उनकी घर की छत पर पहुंचा तो वे सूर्य नमस्कार की कुछ क्रियाएं करने में लगे हुए थे। 

उन्होंने मेरी ओर देखकर कहा-'करो तुम भी करो।'  मैंने टाल दिया-'आज तबीयत ठीक नहीं है, कल से करूंगा।'  

मैं जानता था कल कभी नहीं आता और इस प्रकार योगासन से मैं सहज रूप से बच भी सकता हूं।  


विषय को दूसरी दिशा देने के उद्देश्य से मैंने साधुरामजी से पूछ लिया-'यह तो ठीक है साधुरामजी कि योगासन से हमारा शरीर स्वस्थ हो जाता है, बीमारियां दूर होती हैं, पर क्या ऐसा कोई आसन भी है जिससे हमारे समाज का स्वास्थ्य सुधर पाता हो, व्यवस्था की बीमारियां समाप्त हो जाती हों।'  

'क्यों मजाक करते हो, ऐसे भी कोई अटपटे आसन हो सकते हैं।' साधुरामजी योगासन लगाना छोड़ कर मेरे पास आसन पर आकर बैठ गए।

'हां हो सकते हैं ऐसे आसन भी। राजनीतिक लोग और सरकारें बहुत पहले से 'आश्वासन'  का प्रयोग करती रही हैं, मान्यता है कि हर समस्या 'आश्वासन' के जरिए हल हो जाती है।  सरकार की सेहत में इस आसन का बड़ा महत्व रहा है। जो नेता जितनी अच्छी तरह से यह आसन लगाने में सफल होता है उसका राजनीतिक स्वास्थ्य लंबे समय तक ठीक बना रहता है।'

साधुरामजी भी शायद अब मूड में आ गए थे तो मजे लेते हुए बोले- 'लेकिन जनता बेचारी को क्या फर्क पड़ता है, असल में उसकी समस्या तो जस की तस बनी रहती है।' 

'ऐसा नहीं है साधुरामजी, लोगों ने खुद अपना गलत आसन चुन रखा था।  वर्षों तक उन्होंने इसी आसन की मदद से अपनी सेहत बनाए रखने का भ्रम बनाए रखा। किसी भी प्रकार का अच्छा बुरा उन पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ता था। उनका मानना था कि यही मूकासन उनकी सहायता करता है। चिंता चिता समान होती है इस आसन का सूत्र है। साधक समझता रहा की चिंता से दूरी बनाए रखकर अपने स्वास्थ्य की क्षति को रोक पा रहा है।' मैंने कहा।

'लेकिन अब तो यह संभव नहीं रह गया है चुप रहकर समस्याएं हल नहीं हो सकती। व्यवस्था की बीमारी इतनी बढ़ चुकी है कि इस कठिन समय में आश्वासन और मूकासन जैसे आसन निष्फल दिखाई दे रहे हैं।' साधुरामजी ने चिंता व्यक्त की।


'बात तो ठीक है आपकी साधुरामजी लेकिन समय और परिस्थितियाँ ही इसका रास्ता भी दिखाते हैं। अब देखिए एक और भी आसान है 'धरनासन'। यह आसान भी बड़ा कमाल का है। असर करता है। इसका प्रयोग भी हर कोई अपनी बात मनवाने और मुद्दे पर ध्यानाकर्षण हेतु कर सकता है। पहले कभी सरकार के विरोध में विपक्ष और जनता धरनासन  लगाकर उसे जगाने का प्रयास किया करते थे लेकिन अब तो कई सरकारें खुद भी यह आसान लगाते दिखाई देने लगी हैं।और यह इतना है कारगर है कि आम और खास आदमी से लेकर बड़े-बड़े नेता समाजसेवी योग गुरु तक इस आसन के कायल हो रहे हैं।' मैंने कहा तो साधुरामजी ठहाका मारकर बोले- 'वाह! क्या बात है! अब तो समझो व्यवस्था के सारे विकारों के 'शवासन'  में चले जाने के प्रबल योग बन रहे हैं।


ब्रजेश कानूनगो

No comments:

Post a Comment