Saturday, September 5, 2020

गले न मिल पाने का दुःख

गले न मिल पाने का दुःख

साधुरामजी जब भी मिलते हैं पूरे जोश से मिलते हैं। उन्हें मिलते हुए देखकर सबको लगता है कि वे गले मिल रहे हैं। उनका गले मिलना किसी किसी को 'गले पड़ने' जैसा भी लग सकता है। लेकिन वे किसी मुसीबत की तरह गले नहीं पड़ते।  मुसीबत तो अब खुद साधुरामजी के सामने आ खड़ी हुई है जब कोरोना जैसा खतरनाक वायरस उन्हें सबसे गले मिलने से रोक रहा है।  दैहिक दूरी बनाए रखना जरूरी है। संकट की घड़ी है। किसी से गले मिलने से 'विषाणु'  के गले पड़ने की आशंका बन जाती है।

सब लोग साधुरामजी की तरह नहीं मिलते। मिलते तो हैं लेकिन नहीं भी मिलते। मिलकर भी कहीं और रहते हैं। देह यहाँ होती है मगर दिल कहीं और छोड़ आते हैं। जैसे शैतान का दिल दूर वीराने में स्थित किसी खंडहर में किसी पिंजरे में कैद होता था।
साधुरामजी शैतान नहीं हैं। अपना दिल साथ लेकर चलते हैं। इसलिए हमेशा गले मिलकर भी वे दिल से मिलते हैं।

इस समय सुरक्षित यह भी हो सकता है कि एक दूसरे का केवल चेहरा देखिए,नजरें मिलाइए और मुस्कुराहट उछालकर प्रेम प्रदर्शित करें। कहते हैं मुस्कुराहट संक्रामक होती है। जितना फॉरवर्ड करो वाट्सएप मेसेज की तरह फैलती जाती है किंतु दिक्कत यह है कि कोरोना इससे भी ज्यादा संक्रामक है। एक विषाणु आठ को संक्रमित करता है। इसलिए मुस्कुराहट का 'मीठाणु' वायरस कमजोर पड़ गया है। मुंह पर मास्क लगा है। 'बुलबुल' बेचारी कैद हो गई है सैयाद के पिंजरे में।

कहते हैं भगवान भी भाव के भूखे होते है। संकेतों में हमारी प्रार्थना से संतुष्ट हो जाते हैं। मनुष्य की भावनाओं को समझते हैं। सारी भौतिकता यहीं पृथ्वी लोक में रह जाती है, हमारी भावनाओं और निवेदनों की अदृश्य तरंगें सेटेलाइट सिग्नल की तरह तुरंत देवलोक पहुंचकर ईश्वर के समक्ष प्रस्तुत हो जाती हैं।

इसी परंपरा से कोरोना काल में आभासी संकेतों ने हमारे लोक व्यवहार को सुगम कर दिया है।  मोबाइल फोन के बटनों को दबाते ही दुनिया आपके दरवाजे पर आ खड़ी होती है। पहले की तरह ही विपक्ष अपना विरोध प्रदर्शन कर सकता है। सरकार और सत्ता के समर्थन में जयकारे  लगाए जा सकते हैं। ऑन लाइन मुकदमें चल रहे हैं। छापे पड़ रहे हैं। फैसले लिए जा रहे हैं। सब कुछ हो रहा।

दैहिक दूरियां आभासी उपस्थितियों से पाट दी गईं हैं। हजारों किलोमीटर दूर की मुस्कुराहट डिजिटल संकेतों में बदलकर छह इंच दूर हमारे कम्प्यूटर या मोबाइल फोन स्क्रीन पर साकार हो रही है।

बस बेचारे साधुरामजी ही दुखी हैं। खुलकर सबसे गले नहीं मिल पाने से इन दिनों बहुत दुखी हैं किन्तु समय के सच को समझने को विवश हैं कि यह वक्त 'नमस्कार से चमत्कार' करने का है। यह क्या कम खुशी की बात है कि उनके दूर के नमस्कार में भी गले मिलने जैसी आत्मीय भावनाएं हमारे दिलों तक भली प्रकार पहुंच रहीं हैं।

ब्रजेश कानूनगो

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