हवाईअड्डे की हड्डियाँ
बचपन के वे दिन अक्सर याद आते हैं जब हम स्कूल में छुट्टी की घंटी बजने के बाद अपनी कॉपियों से पन्ने निकालकर हवाईजहाज बना-बना कर छत से उन्हे उडाया करते थे। जब तक वह हवा में बना रहता हम रोमांच से भरे होते थे। जब कभी वह नीम के पेड़ पर अटक जाता हमारी सांसे भी जैसे अटक जाती थीं। नीचे मैदान में पानी के नल के पास जो कुछ फर्शियाँ जडीं थीं, वही हमारा एयरपोर्ट होता था। हर बच्चा इसी कोशिश में निशाना साधता था कि हवाई जहाज ठीक हवाईअड्डे पर ही उतरे,लेकिन अक्सर ऐसा होता नही था,कागज का प्लेन कहीं भी अपनी मर्जी से लेंड कर लिया करता था। बाद में आकाश में चीलगाडियों को देखते रहे।
हवाईजहाजों और विमानन को लेकर हमारे मन में जिज्ञासा और रोमांच का भाव बराबर बना रहा है। दादाजी भी अक्सर गर्मियों में छत पर तारों को निहारते हुए कहानियाँ सुनाते थे। उन्होने ही सबसे पहले बताया था कि जब श्रीराम लंका विजय करके अयोध्या लौटे तब वे आकाश मार्ग से यात्रा करते हुए आए थे। इस यात्रा के लिए उन्होने पुष्पक विमान का उपयोग किया था। जाहिर है उनका विमान लंका से उड़ा होगा और अयोध्या में उसने लेंड किया होगा। यह तो हर कोई जानता है कि विमान को उड़ने और लेंड करने के लिए एक हवाईअड्डा होना बहुत जरूरी है।
जहाँ तक मेरी जानकारी है अयोध्या के इतिहास में किसी प्राचीन एयरपोर्ट के अवशेष मिलने की कोई सूचना नही है लेकिन उधर श्रीलंका से खबर आई थी कि वहां की रामायण रिसर्च कमेटी ने शोध किया है कि उस जमाने में रावण के अपने हवाईअड्डे थे। एक नही बल्कि वह चार-चार हवाईअड्डों का मालिक था। सम्भव है श्रीराम के विमान ने रावण के उन्ही में से किसी एक हवाईअड्डे से उडान भरी होगी। अब यह भी एक प्रश्न है कि अयोध्या में वह उतरा कहाँ होगा ? जिज्ञासा वाजिब है। इसका पता अवश्य लगाना चाहिए हमारे इतिहासकारों और शोधकर्ताओं को। श्रीलंका के शोधकर्ताओं से हम कोई कम तो हैं नही। जब हम राम के वनगमन मार्ग और उनके यात्रा के पडावों को खोज सकें हैं तो यह भी मुश्किल नही है कि हम उस स्थान का पता न लगा सकें जहाँ अयोध्यावासियों ने विमान की सीढियों से उतरते प्रसन्नचित राम,जानकी और लक्ष्मण की ओर हाथ हिला-हिलाकर उनका जोरदार स्वागत किया होगा। निश्चित ही दीवाली तो इसके बाद ही मनाई होगी सबने।
एक बात और जो कुलबुला रही है भीतर, वह यह है कि रावण तो राजा था वहाँ का और अगर हवाईअड्डे उसके खुद के थे तो निश्चित ही वे सरकारी हुए। सरकारी संस्थाओं की तत्कालीन स्थितियाँ क्या उस वक्त आज की तरह उतार पर रही होंगी जिसके कारण कालांतर में इस भूखंड से विमानन लुप्त हो गया। इसीतरह यदि हिन्दुस्तान के अयोध्या के बारे में विचार करें कि अगर यहाँ हवाईअड्डा रहा होगा तो बाद में वह किस गति को प्राप्त हो गया। यहाँ के विमानपत्तनम के पतन के पीछे क्या कारण रहे होंगे? क्या राजकीय एयरलाइंस का निजीकरण किया गया था या फिर बढते घाटे से परेशान होकर सम्राट ने अनुबन्धित सेवाओं के नाम पर उस जमाने के व्यापारियों ,सौदागरों को इसका संचालन सोंप दिया था। हो सकता है बाद में संचालकों द्वारा भस्मासुरी सेवाएँ जारी रखने के लिए कर्ज तथा अन्य सुविधाएँ मांगने पर सम्राट ने अपने हाथ खींच लिए हों। शायद इस तरह हमारी प्राचीन विमानन सेवाएँ तहस-नहस होकर इतिहास का हिस्सा बन गई होंगी। समय की गर्त में दबे इसी इतिहास की खोज होना चाहिए।
अयोध्या में निश्चित ही त्रेता युग के विमानतल के अवशेष मिलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
ब्रजेश कानूनगो
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