Sunday, September 6, 2020

गुस्से का प्रकटीकरण

गुस्से का प्रकटीकरण

 

प्राचीन काल में राजा-महाराजा बडे दूरदर्शी हुआ करते थे। वे अपने प्रासादों और महलों में सारी भौतिक सुख सुविधाओं के साथ एक कोप भवन भी बनवाया करते थे। रानी के मन के आकाश में  जब नाराजी का सूरज चढने लगता और वे कोप गति को प्राप्त होनें लगतीं वे रनिवास की बजाए तुरंत कोप भवन की ओर प्रस्थान कर जाती थीं। महाराजा को जब अपने सेवकों से ज्ञात होता कि रानी साहिबा कोप भवन पधारीं हैं तो वे पूरी सावधानी और तैयारी के साथ कोप भवन की ओर कूच कर जाया करते थे। किसी को कानों कान खबर नहीं पड़ती थी कि राजमहल में कोई आतंरिक भूचाल आया है।  अब तो हालात यह हैं कि आपने जरा सा गुस्सा किया तो पूरी दुनिया को पता चल जाता है।

 

देह भाषा से भी पहले यह पता लगाना बडा मुश्किल हो जाता था कि हुजूर या बेगम  कुपित हैं। नाराजी का नारियल सबके समक्ष नही फोडा जाता था। बडी मुश्किल से गुप्तचरों  से खबर लगती थी कि फलाँ व्यक्ति ने रूठकर या गुस्से में खाना पीना छोड रखा है।

वर्त्तमान दौर में अब सहज प्रकटीकरण के साधनों की उपलब्धता के कारण गुस्से की सार्वजनिक प्रस्तुतियाँ होने लगी हैं। अपने हितों को साधने के लिए कई उदाहरण देखे जा सकते हैं। ऐसे कई सार्थक प्रसंग भी हमारी स्मृति की धरोहर बने हैं। भरी सभा में क्रोध प्रकट करते हुए शीर्ष नेता या प्रमुख को केमेरे के सामने जलील करते हुए बहिर्गमन करके अपना अलग गुट बनाया जा सकता है। जन सभा में कुर्ते की बाँहें चढाकर किसी कागज को चिन्दी-चिन्दी करके भी क्रोध की अभिव्यक्ति की जा सकती है। चलते टीवी साक्षात्कार में माइक छीनकर या संवाददाता के सवालों पर लम्बी चुप्पी से भी भीतर का गुस्सा सार्वजनिक हो जाता है। पार्टी या सरकार में महत्वपूर्ण पद की आकांक्षा को मूर्त रूप देने के सन्दर्भ में भी अपनी नाराजी के सार्वजनिक इजहार से अपनी स्थिति को मजबूत बनाया जा सकता है।

 

यद्यपि गुस्से को पी जाने का सटीक फार्मूला हमारे संत महात्मा बहुत पहले से बता गए हैं लेकिन अब ऐसा सम्भव नही रह गया है, क्योंकि पीने के लिए अब बहुत सी चीजें उपलब्ध हैं।  गुस्सा पीना पिछडा हुआ और अप्रासंगिक तरीका रह गया है। वैसे भी नाराजी और गुस्से को दबा कर चेहरे पर मुस्कुराहट बनाए रखने का अब पहले जैसा अभ्यास भी नही रह गया है, दूसरी ओर अब किसी के गुस्से को ताड़ लेने के साधन और नई कलाओं ने भी इन दिनों काफी प्रगति कर ली है। आपका जरा सा गुस्सा भी छुपता नही बल्कि तुरंत सार्वजनिक हो जाता है। सार्वजनिक रूप से बोले गए चन्द शब्दों के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण से प्रखर विशेषज्ञ तुरंत पता लगा लेते हैं कि बन्दे की नाराजी की तीव्रता और उसकी असली वजह क्या है।

आम मान्यता है कि गुस्सा करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है लेकिन देश के स्वास्थ्य की खातिर जब मतदाता अपने गुस्से का प्रकटीकरण करते हैं तो सत्ता के समीकरण बदल दिया करते हैं। ईवीएम के बटन पर मतदाता की उंगली भले ही हल्के से पडती है लेकिन उसके गुस्से की गूँज  बरसों तक राजनीति की हवाओं में तैरती रहती हैं।


ब्रजेश कानूनगो


 

 

No comments:

Post a Comment