Monday, May 18, 2020

ऑन लाइन जीवन

ऑन लाइन जीवन
ब्रजेश कानूनगो

वे लाइव हैं। ऑन लाइन लाइव हैं। जीवित हैं इसलिए लाइव हैं। लाइव न होते तो भी जीवित ही होते। जो लाइव नहीं हैं वे भी अभी मरे नहीं हैं। जो मर गए वे भी लाइव हैं। यहां मरकर भी लाइव रहने की सुविधा है। सुविधा तो यह भी अच्छी है कि यहां जीते हुए भी आप चुपचाप मरे दिखाई दे सकते हैं। ऊबकर छोड़कर चले जाते हैं यह जीवन। लेकिन पुनः लौट लौट आते हैं। अधिक देर  वियोगी रहना सम्भव नही। ऑन लाइन जीवन ललचाता है। मोह छूटे नहीं छूटता। क्या करे बेचारा आसक्ति में डूबा मनुष्य।

वास्तविक दुनिया में ऐसा नहीं होता। आप एक बार मर गए तो समझो मर गए। चार कंधों पर लदकर मुक्तिधाम। मुक्तिधाम से सीधे परमधाम। तीसरे दिन उठावना और तेरहवे दिन गंगाजी। कोरोना काल में तो कुछ के लिए यह भी उपलब्ध नहीं। उसी दिन सब कुछ। यह ऐसा संकट आया है कि सब कुछ उलट पुलट हो गया है। मेरे जैसे ‘घर घुस्सुओं’ पर अब कोई कटाक्ष की गुंजाइश नहीं। समझदार और एक अनुशासित नागरिक होने का अचानक सम्मान मिलने लग गया है। जो ‘न्यू इंडिया’ बनाने की बात करते थे अतीत के गौरवशाली  ‘आर्यावर्त’ में लौट जाने का विचार करने लगे हैं। पश्चिम की संस्कृति के अनुसरण की दिशा बदलकर भारतीय संस्कारों के अनुगमन की ओर हो गयी है।  हैंडशेक नमस्कार में बदलने लगा है।

वक्त वक्त की बात। संसार का सारा भास अब आभासी दुनिया में। ज्ञान का भंडार बनी है  वैश्विक वाट्सएप यूनिवर्सिटी। मनुष्य जाति के जिंदा होने का अहसास फेसबुक पर। फेसबुक की प्रोफ़ाइल पिक्चर जैसे जीवन प्रमाण पत्र। आप चाहें तो कम्प्यूटर स्क्रीन की फ्रेम पर खुद फूलमाला डालकर स्वयं स्वर्गीय घोषित हो सकते हैं। मर्जी आपकी, बस बताया कि उचित सुविधा उपलब्ध है। चाहें तो आजमा लें।  दोस्तों की पोस्ट पर थोड़े दिन लाइक या कमेंट न करें, ऑन लाइन दुनिया में आपकी आभासी मौत निश्चित है। निभाने से ही रिश्ते प्रगाढ़ और आत्मीय होते हैं। दोस्तों की सही परख उसके द्वारा किये गए आपके स्टेटस पर किये कमेंट्स, इमोजी और लाइक्स की गणना से की जाती है।  

तो श्रीमान इन दिनों ऑन लाइन लाइव है सब कुछ। लोग लाइव हैं। प्रेम लाइव है। घृणा लाइव है। नारे लाइव हैं। गालियाँ लाइव हैं।

ऑन लाइन साहित्य लाइव है। कविता लाइव है। विचार लाइव है। गोष्ठियां लाइव हैं। संचालन लाइव है। गुलदस्ते लाइव हैं। वाह वाह लाइव है. आलोचना लाइव है तो प्रशंसा और पुरस्कार भी लाइव है। तालियाँ लाइव हैं। आभार लाइव । स्वल्पाहार लाइव । मिष्ठान लाइव है। समोसा लाइव है। चाय लाइव है।

ऑन लाइन किटी पार्टी में हाऊजी लाइव है। सच लाइव है। झूठ लाइव है। गंध लाइव है. दुर्गन्ध लाइव है। ईर्ष्या और चुगली लाइव है। लोग ऑनलाइन रोटियाँ बेल रहे हैं। बैंगन का भुरता बना रहे हैं। ऑनलाइन पार्टियां उडाई जा रहीं हैं।

पूरा केबिनेट ऑन लाइन ,सचिवालय ऑन लाइन। सरकारें ऑन लाइन लाइव हैं। मीटिंग लाइव है। प्रशासन लाइव है तो आदेश लाइव हैं। निर्देश लाइव हैं।

दुनिया भर में सोशल डिस्टनसिंग है मगर फुट भर डिस्टेंस नहीं है यहां। मिट गईं दूरियाँ। दैहिक दूरियां हैं लेकिन बंदा ऑनलाइन मिल रहा है। दिल मिल रहे हैं। आत्मा परमात्मा में ऑनलाइन एकाकार हो रहीं है। इस मनमोहक ऑनलाइन समय में जब सब कुछ सिमट आया है,परस्पर सुरक्षित दूरी बनाए आभासी दुनिया में आमोद-प्रमोद,साहित्य और आध्यात्म की रोशनी से सब कुछ जगमगा रहा है।

राहतों और संकल्पों की दौड़ती बेशुमार लारियाँ दौड़ रहीं हैं। मगर कितना अजीब है कि कुछ नासमझ लोग धूप में जलती सड़कों पर भूखे ही नंगे पैरों हजारों मील का सफर तय कर घर पहुंचने की जिद पाले हुए हैं। वास्तविक दुनिया में वे लाइन में लगे हैं। लाइन में  लगना ही उनका लाइव होना है। आभासी दुनिया का ऑन लाइन बन्दा उसके हाल से बेहाल और हतप्रभ है।

ब्रजेश कानूनगो

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