Friday, May 1, 2020

होनहार बिरवान के होत न चीकने पात

व्यंग्य
होनहार बिरवान के होत न चीकने पात 

'होनहार बिरवान के होत चीकने पात', या 'पूत के लक्षण पालने में ही दिखने लग जाते हैं' जैसी पुरानी कहावतें अब अपने अर्थ खो चुकी लगती हैं।  पूरे यकीन से यह नहीं कहा जा सकता कि बचपन के लक्षण बच्चों के भविष्य का निश्चित संकेत देते ही हैं।  मेहमानों के समक्ष 'अंग्रेजी पोएम' सुनाकर सबका दिल जीत लेने वाला होनहार बच्चा मातृभाषा की परीक्षा में फेल हो जाता है। पिता की परचून की दुकान में पुड़िया बांधता बालक कालांतर में किसी राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी को शोभायमान करता है।

माँ हमेशा कहा करती थी कि मैं बचपन से ही बडा होनहार रहा हूँ। माँओं का दृष्टिकोण संतानों के प्रति हमारे यहाँ ऐसा ही होता आया है। यह अलग बात है कि जिस औलाद को वह होनहार समझती रही हो वही बेटा बदले हुए समय में अपनी होनहारियत पर अपना सिर पीटने को मजबूर हो जाए।

अब केवल होनहारियत या प्रतिभा से काम नहीं चलता। व्यक्ति में प्रबंधन के साथ साथ चतुराई बल्कि चालाकी जैसे गुणों का विकास होना भी जरूरी है। सफलता के लिए एक बार प्रतिभा में थोड़ी कमी रह जाए लेकिन उसमें दुनियादारी के सूत्र सिद्ध करने का कौशल अंगीकार करने की क्षमता अब बेहद जरूरी हो गई है।

अब देखिए, स्कूल के जमाने में चाहे भाषण प्रतियोगिता रही हो या निबन्ध अथवा कविता लेखन स्पर्धा, हमेशा हमने अपनी प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन किया और होनहार होने का तमगा हमारे सीने पर चस्पा कर दिया गया। हमारे जो मित्र होनहार होने को अपना अपमान समझते थे तथा ‘ग’-गणेश की बजाए ‘ग’-गधा  उनको अधिक रुचिकर लगता था,उनका भाग्य देखिए,उनके यहाँ आज छापे पड रहे हैं, करोडों की दौलत गिनी जा रही है और एक हम हैं जो 'सेठ धर्मदास साहित्य सम्मान' की आस लगाए जेब के पैसों से ग्रंथ छपयाये जा रहे हैं।

निबन्ध तथा तात्कालिक भाषण प्रतियोगिता में अक्सर उन दिनों एक विषय रहता था-‘यदि मैं प्रधान मंत्री बन जाऊँ’ । विद्यार्थी बडे उत्साह से लिखते कि कैसे उनके प्रधानमंत्री बनते ही देश का काया कल्प हो जाएगा। कैसे हर तरफ सच्चाई और ईमानदारी की हवा बहने लगेगी। भ्रष्टाचार के दानव का वध किया जा चुका होगा, कोई भूखा नही होगा, हर सिर के ऊपर छत और हर बच्चे के हाथ में कलम होगी और चेहरे पर खुशी के फूल खिल उठेंगे। बचपन से ही बच्चों में प्रधानमंत्री बनने की चाहत पैदा करने के गम्भीर प्रयास किए जाते रहे हैं।

हमारे यहाँ होनहार लोगों की कभी कोई कमी नहीं रही। प्रधानमंत्री बनने के अभिलाषियों की एक लम्बी कतार लगी रहती है जैसे कोई आकाशगंगा राजनीति के आकाश में टिमटिमा रही हो।

तथाकथित होनहार बच्चे  शुरू से इस चेष्टा मे लगे रहते हैं कि जीवन में एक बार प्रधानमंत्री अवश्य बन जाएँ। हर माँ-बाप की ख्वाहिश होती है बेटा पंद्रह अगस्त को लाल किले की प्राचीर से जनता से भारत माता की जय बुलवाए। लेकिन ऐसा होता कहाँ है! होनी को कौन टाल सकता है। जीवन की आपाधापी और संघर्षों के आगे अधिकाँश होनहार ‘हार’ जाते हैं। इस उपक्रम मे कई लोग पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं लेकिन प्रधानमंत्री हो जाने का उनका सपना उसी तरह पूरा नही हो पाता जिस तरह उनके बचपन में लिखे गए निबन्ध या भाषण में देखे गए सपने पूरे नही हो पाते।

सच तो यह है कि सपने पूरा करने के लिए अब  'बिरवान के चीकने पात' के भरोसे नहीं रहा जा सकता।

ब्रजेश कानूनगो

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