निबंध में प्रधानमंत्री
ब्रजेश कानूनगो
माँ हमेशा कहा करती है कि मैं बचपन से ही बडा होनहार रहा हूँ। माँओं
का दृष्टिकोण संतानों के प्रति हमारे यहाँ ऐसा ही होता आया है। यह अलग बात है कि
जिस औलाद को वह होनहार समझती रही हो वही बेटा बदले हुए समय में अपनी होनहारियत पर
अपना सिर पीटने को मजबूर हो जाए। अब देखिए,
स्कूल के जमाने में चाहे भाषण प्रतियोगिता रही हो
या निबन्ध अथवा कविता लेखन स्पर्धा, हमेशा हमने अपनी प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन किया और होनहार होने का
तमगा हमारे सीने पर चस्पा कर दिया गया। हमारे जो मित्र होनहार होने को अपना अपमान
समझते थे तथा ‘ग’-गणेश की बजाए ‘ग’-गधा उनको अधिक रुचिकर लगता था,उनका भाग्य देखिए,उनके यहाँ आज छापे पड रहे हैं,करोडों की दौलत गिनी
जा रही है। और एक हम हैं जो ‘मैं प्रधानमंत्री होता’ मे ही अटके पडे हैं।
निबन्ध तथा तात्कालिक भाषण प्रतियोगिता में अक्सर उन दिनों एक विषय
रहता था-‘यदि मैं प्रधान मंत्री बन जाऊँ’
। विद्यार्थी बडे उत्साह से लिखते कि कैसे उनके
प्रधानमंत्री बनते ही देश का काया कल्प हो जाएगा। कैसे हर तरफ सच्चाई और ईमानदारी
की हवा बहने लगेगी। भ्रष्टाचार के दानव का वध किया जा चुका होगा, कोई भूखा नही होगा, हर सिर के ऊपर छत और
हर बच्चे के हाथ में कलम होगी और चेहरे पर खुशी के फूल खिल उठेंगे। बचपन से ही
बच्चों में प्रधानमंत्री बनने की चाहत पैदा करने के गम्भीर प्रयास किए जाते रहे
हैं।
हमारे यहाँ होनहार लोगों की कभी कोई कमी नहीं रही. प्रधानमंत्री बनने के
अभिलाषियों की एक लम्बी कतार है जो आकाशगंगा की तरह राजनीति के आकाश में टिमटिमाती
रही है। होनहार बच्चे तक शुरू से इस चेष्टा मे लगे रहते हैं कि जीवन में एक बार
प्रधानमंत्री अवश्य बन जाएँ। हर माँ-बाप की ख्वाहिश होती है बेटा पंद्रह अगस्त को
लाल किले की प्राचीर से जनता से भारत माता की जय बुलवाए. लेकिन ऐसा होता कहाँ है! होनी
को कौन टाल सकता है. जीवन की आपाधापी और संघर्षों के आगे अधिकाँश होनहार ‘हार’
जाते हैं. इस उपक्रम मे कई लोग पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं लेकिन प्रधानमंत्री
होने का उनका सपना उसी तरह पूरा नही हो पाता जिस तरह उनके बचपन में लिखे गए निबन्ध
या भाषण में देखे गए सपने पूरे नही हो पाते।
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क,कनाडिया रोड, इन्दौर-18
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