Monday, July 24, 2023

मौसी आई है इस बार

मौसी आई है इस बार

सुना है यूपी की किसी मंत्री महोदया ने टमाटरों के महंगे हो जाने पर सुझाव दिया है कि जो महंगा हो उसे खाना छोड़ दें या फिर अपने घर के गमलों में टमाटर उगाएं !  यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। कई देशप्रेमी लोग तो राष्ट्रीय गौरव में महंगाई को कोई बुरी बात भी नहीं मानते। यह एक मौसमी दुर्घटना है जिसे सहजता से स्वीकार कर लिया जाना चाहिए। दरअसल महंगाई बेचारी तो राजनीतिक क्षेत्रों में हर बार यूंही विषय या मुद्दा बन जाती है। जो लोग इसे डायन कहकर अपमानित करते हैं वे आम लोगों की जीवनशैली को समझते ही नहीं। आना जाना जीवन चक्र है। प्रकृति हो या इंसान का जीवन यह चक्र चलता रहता है। वाट्स एप पर आया भारतीय दर्शन भी यही कहता है।

आमतौर पर  लगता तो यही है कि महंगाई फिर लौट आई है। अच्छा लौटता है। बुरा लौटता है।अच्छा बुरा सब लौटकर आ ही जाता है। मौसम और ऋतुएं लौटती हैं। गर्मी जाती है तो बारिश लौट आती है। बाढ़, सुनामी,भूकम्प सब लौट लौट आते हैं। पतझड़ जाता है तो बसंत लौट आता है। दुख के बाद सुख लौटता है। रुदन के बाद मुस्कुराहट लौटती है। तालिबान लौटता है, हिटलर लौट आते हैं। रूपांतरित होकर साम्राज्यवाद लौटता है, समाजवाद के खंडहरों में हरियाली की बिदाई के बाद पूंजीवाद की जैकेट पहनकर प्रजातंत्र लौट आता है।  आतंकवाद लौटता है। दूर का,पास का,अच्छा आतंकवाद, बुरा आतंकवाद सब लौटते हैं। इमरजेंसी लौटती है। नाम बदलकर लौटते हैं तो कभी उसी तरह लौट आते हैं जैसे पहले आए थे। लौट लौट आना इस सृष्टि की रीत है।

अवतारी पुरुष लौट आते हैं। सोने की चिड़िया लौट आती है। स्वस्थ होने पर तन लौटता है, मन स्वस्थ होने पर सनातन लौट आता है। ऐसे में पहले की 'महंगाई ' लौट आती है तो किसी को कोई दिक्कत कैसे हो सकती है!  महंगाई डायन पहले भी आई थी। आती रहती है। इसका आना प्रकृति सम्मत है। वैसे भी वह बर्फ में दबे जीव की तरह हमेशा जिंदा रहती है। थोड़ी गर्मी पड़ी कि बर्फ पिघलने लगती है और यह डायन पुनः धरातल पर दृष्टिगोचर हो जाती है। 

हम शोर मचाने लगते हैं कि 'महंगाई डायन' लौट आई है। दरअसल वह गई ही कहाँ थी? यहीं बर्फ के नीचे दबी अपने को संस्कारित कर रही थी। अबकी लौटी यह डायन पहले जैसी बुरी आत्मा नहीं है। संस्कारित होकर 'अच्छी डायन' बनकर आई है। इसलिए इसके आने से किसी को कोई परेशानी नहीं है। उल्टे इसकी प्रशंसा है कि इसने अपने को संस्कारित कर लिया है। इसके संस्कारित होने से लोगों की क्रय क्षमता में उछाल आए या न आए किन्तु जीडीपी में वृध्दि अवश्य होगी।

स्वागत है 'अच्छी डायन', माफ करें ,स्वागत है महंगाई मौसी,मौसीजी । पहले तुम साठ, सत्तर रुपयों में एक लीटर पेट्रोल से आग लगा देती थी, अस्सी रुपयों के सरसों तेल में बने भोजन से भी परिवार भूख से बिलखने लगते थे। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं था। तुम्हारे पास संस्कार नहीं थे, तुम्हारा चरित्र ही भ्रष्ट था। अब ऐसा नहीं है। अब तुम अच्छी हो गई हो प्रिय महंगाई।

अब सौ से ऊपर के पेट्रोल और डेढ़ सौ रुपयों के खाद्य तेल में भी हमारा जीवन खुशहाल है। हमें कोई आपत्ति नहीं है मौसीजी। तुम आराम से रहो। हममें से अधिकांश को जीने की आवश्यक सामग्री हमारी संवेदनशील सरकारें निशुल्क उपलब्ध करा ही रही हैं। जो थोड़े उच्च वर्ग के लोग हैं उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, वे वितरक हैं,उत्पादक हैं। मध्यमवर्गीय लोग झंडा उठाए हैं।  तो प्यारी महंगाई मौसीजी तुम बिल्कुल हमारी चिंता मत करो और जब तक चाहो,यहाँ रहो। तुम अब चरित्रवान हो गई हो, भली और ममतामयी हो गई हो, यही क्या कम बड़ी बात है। तुम्हे अब डायन कोई नहीं कहेगा, आराम से रहो। 

मंत्रीजी ने ठीक ही कहा है, टमाटर ही क्या, जो भी महंगा होगा उसे हम घर में उगा लेंगे। इस्तेमाल करना छोड़ देंगे। महंगाई से राहत का यह बड़ा अच्छा उपाय सुझाया है माननीय ने। क्यों न हम लोग महंगी शक्कर खरीदने से बचने के लिए आज ही आंगन में गन्ने की बुवाई शुरू करने की पहल करें। पेट्रोल के इंतजाम के लिए बेकयार्ड में तेल के कुएं खोदने में जुट जाएं। आत्म निर्भर बनना हमारे लिए ही नहीं देश के लिए भी सचमुच गौरव की बात होगी।

ब्रजेश कानूनगो



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