Monday, July 17, 2023

पारदर्शिता : एक समदर्शी चिंतन

पारदर्शिता : एक समदर्शी चिंतन


आज जरा दर्शन की बात करते हैं। मैं कोई दार्शनिक नहीं हूं और नहीं दर्शन का कोई अध्येता। हां,एक दर्शक जरूर हूं किंतु दृष्टा नहीं। बस चुपचाप दर्शन में लगा रहता हूं। दर्शन बोले तो देखना,निहारना, टापते रहना वाला दर्शन। गांधी या मार्क्स वाला मत समझ लीजियेगा इसे। 

जब कहीं कोई अवांछित बाल देखता हूं उसकी खाल उधेड़ने में मुझे बड़ा मजा आता है। इसलिए मैं जो इन दिनों देख रहा हूं उसमें मुझे कुछ बाल नजर आए तो मन किया कि थोड़ा प्रलाप किया जाए।  यों जब भी भोजन करते वक्त मेरी दाल या सब्जी में कोई बाल निकल आता है, मैं चुपचाप उसे हटा देता हूं कुछ बोलता नहीं। लेकिन कहीं और नजर आ जाए तो हाजमा खराब हो जाता है। किसी सुंदरी की फटी जींस में से घुटना दिखने पर भी मुझे कोई आपत्ति नहीं है। यह मेरा सौंदर्य बोध है। लेकिन  प्रायः भाषाई दर्शन में कुछ आपत्तिजनक दिख जाता है तो मैं बौखला जाता हूं। आज ऐसा ही कुछ हो रहा है मेरे साथ। 

एक होता है समदर्शी और एक होता है पारदर्शी। बड़े कमाल के होते हैं ये दोनों शब्द। समदर्शी तो एक मायने में ठीक ही लगता है, सबको एक निगाह से देखना और एक लाठी से हांक देना जैसी फिजूल बातों को यदि छोड़ दें तो समान नागरिकता कानून की तरह यह एक बेहतरीन राष्ट्रवादी विचार है। आज मुझे पारदर्शी शब्द में कुछ काला काला नजर आ रहा है। उसी पर विमर्श को केंद्रित रखते हैं।

जब भी कोई घोटाला उजागर होता है अपने बचाव में आरोपी पक्ष कहता है –'हमने तो सम्पूर्ण पारदर्शिता बरती थी. 'लेकिन घोटाला हो गया है।' घोटाले के दैत्य पर पारदर्शिता के सुकोमल शब्द-पंख  चिपका कर पूरे प्रकरण को अक्सर मनोहारी रूप देकर उड़ा देने  के प्रयास होने लगते हैं।

पारदर्शिता का यह नया मुहावरा इन दिनों बहुतायत से चलन में है।व्यक्ति हो, प्रशासन हो या नीति या प्रक्रिया अपनाने की बात हो, हर कहीं  'पारदर्शिता' की फिटकरी घुमाकर गन्दगी का तलछट हटाने की कोशिश की जाने लगती है। आदमी भले ही बेईमान हो लेकिन उसका व्यक्तित्व पारदर्शी कहा जाता है, ऐसी प्रक्रिया भले ही अपनाई गई हो जिससे देश के राजस्व को चूना लगा हो लेकिन उसे सौ प्रतिशत पारदर्शी सिद्ध करने की कोशिश की जाने लगती है।

आखिर यह पारदर्शी क्या है? शाब्दिक रूप से समझा जाए तो ऐसी चीज जिसके आर-पार देखा जा सके, जैसे कांच  होता है, ठहरा हुआ जल होता है, चश्मे का लेंस होता है। पारदर्शी व्यक्तित्व के अन्दर और उसकी पीठ के पीछे जो कुछ छुपा हुआ हो स्पष्ट नजर आ सकता है,वह छुपा नही रह सकता,बल्कि देखा जा सकता है।

प्रश्न यह उठता है कि अगर किसी व्यक्ति विशेष का व्यक्तित्व पारदर्शी है तो क्या वह इतना पारदर्शी हो सकता है कि अपने अन्दर होने वाली या उसकी आड लेकर की जानेवाली सारी   बेइमानियों को स्पष्ट नजर आने देगा ? 

क्या उसमे इतनी पारदर्शिता बनी रह सकेगी या वह स्वार्थ  की धुन्ध से  अपनी असली  पहचान को ही ओझल बना कर लोगों को   भ्रमित करने की  चेष्टा करेगा ?  यह भी हो सकता है कि उसकी पारदर्शिता किसी लेंस की तरह हो जो वास्तविकताओं को छोटा या  बडा अथवा विकृत बना कर प्रस्तुत कर दे।

कई राज्यों  के दावे रहते हैं कि उनकी सरकार और उनका प्रशासन जनता को  पारदर्शिता उपलब्ध कराने को प्राथमिकता दे रहा है। यह सुखद लगता है कि प्रशासन पारदर्शी हो। प्रशासन की मशीन मे होने वाले भ्रष्टाचार और उसमे व्याप्त गन्दगियां नागरिकों को स्पष्ट नजर आ  सकें। आम आदमी देख सके कि अपना काम करवाने के लिए कहाँ और कितनी भेंट चढानी है, कहाँ और किसकी एप्रोच से काम बन जाएगा।  पारदर्शिता के कारण डीलिंग  के सूत्र और  गलियारे खोजने मे आसानी  हो सकती है। पारदर्शी प्रशासन मे सब कुछ साफ साफ  नजर आ सकेगा कि किस लीडर को साधने से उत्पादक क्षेत्र मे स्थानांतर करवाया जा सकता है। प्रशासन के किस पेंच मे तेल डालकर प्रशासनिक घर्षण को कम किया जा सकता है। प्रशासन का पारदर्शी होना अधनंगे सुखिया से लेकर करोडपति  सेठ सुखनन्दन तक के लिए हितकारी है।    

बहरहाल, उम्मीद की जाना चाहिए कि हमारे देश को खोद डालने के उपक्रम में लगे आकाओं का ध्यान कोयला ढोहती लछमा की पारदर्शी आँखों और उसके पारदर्शी पेट पर भी जाएगा जहाँ आँसुओं और भूख के अलावा कुछ और नजर नहीं आता।

ब्रजेश कानूनगो

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