Tuesday, September 28, 2021

गड्ढों में छुपा सुख

गड्ढों में छुपा सुख

'गड्ढा' होना एक सामान्य सी बात है। प्राकृतिक संरचना से थोड़ी सी सतह नीचे चली जाए तो वह 'गड्ढा' कहलाने लगती है और थोड़ी ऊंची उभर आए तो 'टीला' बन जाती है। यह बहुत विचित्र बात है कि सतह से ऊपर उठना सम्मानजनक हो जाता है और गड्ढे में गिर जाने से अब तक के सारे हासिल की ऐसीतैसी हो जाती है।

बड़ी भद्द पिट रही है बेचारे गड्ढों की। गड्ढों को बदनाम करने की  यह बड़ी साजिश लगती है। यह ठीक है कि कुछ बातें, कुछ व्यक्ति मखौल के पात्र बनते रहे हैं,  परंतु दुख है कि इसी परम्परा में 'गड्ढों' को भी अपमान सहना पड़ रहा है। पहचान के केवल एक पक्ष की चर्चा बार बार करके उसके उजले पक्ष पर पर्दा डाल दिया गया है। 'गड्ढा' बेचारा तो निर्विकार भाव से चुपचाप प्रकृति,समाज और दुनिया की बेहतरी के लिए अपने कर्तव्य पालन में  निष्ठा से संलग्न है।

सुख समृद्धि और सम्पन्नता का खजाना बगैर गड्ढों में उतरे हासिल नहीं किया जा सकता। बहुमूल्य संपदा इस धरती के नीचे दबी पड़ी है। गड्ढों के निर्माण के बाद ही देश के आर्थिक आकाश में सोने की चिड़ियाँ उड़ाई जा सकती है। यह भी कोई बात हुई कि वैश्विक महामारी की वजह से आई मंदी के कारण एक बार जीडीपी गड्ढे में क्या उतर गई,अर्थशास्त्रियों का बीपी बढ़ गया। सरकारों के हिमालय इरादों को भी तो गौर करिए जरा!

गड्ढों से ही इस संसार का सौंदर्य कायम है। पृथ्वी का बड़ा हिस्सा एक विशाल गड्ढा है, जो पानी से लबालब है। दुनिया के सुखों का बड़ा खजाना इसके भीतर छुपा है। सागर न होता तो बचे भूभाग और पर्वतों की जरूरत व खूबसूरती का महत्व हमें कैसे पता चल पाता। थोड़े से गड्ढे सड़कों पर क्या बन गए और उनमें बरसात का जल क्या जमा हो गया तो इतना हल्ला मचाने की क्या आवश्यकता है? थोड़ी तो उदारता अपने आचरण में रखनी चाहिए। सड़क के गड्ढों का भी मजा लेना चाहिए। दशहरे पर हजारों रावणों के दहन के बाद व दिवाली पर सवा सौ करोड़ दीपक जलते ही मच्छरों का आतंक भी खत्म हो जाएगा। धैर्य और धीरज से सब ठीक हो जाता है। 

एक कलाकार की रचनात्मक प्रतिभा का मैं बड़ा कायल हो गया हूँ जिसने एक सड़क के कीचड़ भरे गड्ढों में हमारे प्यारे भारतवर्ष के मानचित्र की छबि खोज निकाली। गड्ढों से ही सड़क बनती है, देश बनता है। गड्ढे हैं तो अखण्डता है। सौंदर्य तो हमारी दृष्टि या नजरिये में होता है। इन निरीह गड्ढों के कारण ज्यादा दुखी होना स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं, इससे चेहरे पर तनाव आता है, त्वचा खिंच जाती है। मुस्कुराने से गालों में डिम्पल पड़ते हैं। चेहरे के इन गड्ढों में भी कितनी मोहकता होती है। जरा समझिए इस बात को! 


ब्रजेश कानूनगो


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