Monday, September 6, 2021

डायन का लौट आना

डायन का लौट आना

वह फिर लौट आई है। अच्छा लौटता है। बुरा लौटता है।अच्छा बुरा सब लौटकर आ ही जाता है। मौसम और ऋतुएं लौटती हैं। गर्मी जाती है तो बारिश लौट आती है। बाढ़, सुनामी,भूकम्प सब लौट लौट आते हैं। पतझड़ जाता है तो बसंत लौट आता है। दुख के बाद सुख लौटता है। रुदन के बाद मुस्कुराहट लौटती है। तालिबान लौटता है, हिटलर लौट आते हैं। रूपांतरित होकर साम्राज्यवाद लौटता है, समाजवाद के खंडहरों में हरियाली की बिदाई के बाद पूंजीवाद की जैकेट पहनकर प्रजातंत्र लौट आता है।  आतंकवाद लौटता है। दूर का,पास का,अच्छा आतंकवाद, बुरा आतंकवाद सब लौटते हैं। नाम बदलकर लौटते हैं तो कभी उसी तरह लौट आते हैं जैसे पहले आए थे। लौट लौट आना इस सृष्टि की रीत है।


अवतारी पुरुष लौट आते हैं। सोने की चिड़िया लौट आती है। स्वस्थ होने पर तन लौटता है, मन स्वस्थ होने पर सनातन लौट आता है। ऐसे में पहले की 'महंगाई डायन ' लौट आती है तो किसी को कोई दिक्कत कैसे हो सकती है!  महंगाई डायन पहले भी आई थी। आती रहती है। इसका आना प्रकृति सम्मत है। वैसे भी हमेशा बर्फ में दबे जीव की तरह जिंदा रहती है। थोड़ी गर्मी पड़ी कि बर्फ पिघलने लगती है और यह डायन पुनः धरातल पर दृष्टिगोचर हो जाती है। 

हम शोर मचाने लगते हैं कि 'महंगाई डायन' लौट आई है। दरअसल वह गई ही कहाँ थी? यहीं बर्फ के नीचे दबी अपने को संस्कारित कर रही थी। अबकी लौटी यह डायन पहले जैसी बुरी आत्मा नहीं है। संस्कारित होकर 'अच्छी डायन' बनकर आई है। इसलिए इसके आने से किसी को कोई परेशानी नहीं है। उल्टे इसकी प्रशंसा है कि इसने अपने को संस्कारित कर लिया है। इसके संस्कारित होने से लोगों की क्रय क्षमता में उछाल आए या न आए किन्तु जीडीपी में वृध्दि अवश्य होगी।

स्वागत है 'अच्छी डायन'। पहले तुम साठ, सत्तर रुपयों में एक लीटर पेट्रोल से आग लगा देती थी, अस्सी रुपयों के सरसों तेल में बने भोजन से भी परिवार भूख से बिलखने लगते थे। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं था। तुम्हारे पास संस्कार नहीं थे, तुम्हारा चरित्र ही भ्रष्ट था। अब ऐसा नहीं है। अब तुम अच्छी डायन हो गई हो प्रिय महंगाई।

अब सौ से ऊपर के पेट्रोल और डेढ़ सौ रुपयों के खाद्य तेल में भी हमारा जीवन खुशहाल है। हमें कोई आपत्ति नहीं है बुआजी। तुम आराम से रहो। हममें से अधिकांश को जीने की आवश्यक सामग्री हमारी संवेदनशील सरकारें निशुल्क उपलब्ध करा ही रही हैं। जो थोड़े उच्च वर्ग के लोग हैं उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, वे वितरक हैं,उत्पादक हैं। मध्यमवर्गीय लोग झंडा उठाए हैं।  तो प्यारी महंगाई बुआजी तुम बिल्कुल हमारी चिंता मत करो और जब तक चाहो,यहाँ रहो। तुम अब चरित्रवान हो गई हो, भली और ममतामयी हो गई हो, यही क्या कम बड़ी बात है। तुम्हे अब डायन कोई नहीं कहेगा, आराम से रहो। 


ब्रजेश कानूनगो

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