Monday, September 27, 2021

कनिप के डोज

कनिप के डोज

पिछले रविवार को जब मैं अपने मित्र साधुरामजी के घर गया तो देखा कि उनके दाहिने पैर में प्लास्टर चढ़ा हुआ है। वे आरामकुर्सी पर बैठे थे तथा पट्टायुक्त पैर उन्होंने सामने रखे स्टूल पर टिका रखा था।

'यह क्या हो गया साधुरामजी?' मैंने अचंभित उनसे पूछा।

'यह सब आप के तथाकथित विकास का परिणाम है, विकास के नाम पर पूरा शहर खोद रखा है। सड़कों पर गड्ढे ही गड्ढे हैं। पुरानी सड़कों की रिपेयरिंग भी मात्र दिखाने के लिए ही होती है। कुछ दिनों में सड़कें फिर उखड़ जाती हैं।कोई कब तक कैसे और कहां तक बच सकता है।' उन्होंने कहा, 'अपनी मोपेड पर जा रहा था, पानी भरे गड्ढे में अगला पहिया गया और मोपेड पलट गई। पैर में फ्रैक्चर हो गया है।' उन्होंने आगे बताया।

'अरे यह तो बड़ा दुखद रहा!'  मैंने संवेदनाएं व्यक्त कीं। 

लेकिन साधुरामजी ऐसी छोटी-मोटी परेशानियों की कहां चिंता पालते हैं, तुरंत अपने स्वभाव के अनुसार बात की गंभीरता को खत्म करते हुए बोले, 'उस वक्त मैं स्वयं ही शायद थोड़ा असावधान था।  खैर जो होता है अच्छा ही होता है। पिछले पन्द्रह दिनों के विश्राम के दौरान मुझे अद्भुत ज्ञान प्राप्त हो गया है।' 

'कैसा ज्ञान साधुरामजी?'  मैंने जिज्ञासा व्यक्त की।

'आपने अक्सर देखा होगा,अनेक नीम हकीम और डॉक्टर अखबारों में विज्ञापन छपाते हैं कि पुराने और निराश रोगी ही मिलें। हम फलां बीमारी का शर्तिया इलाज करते हैं।' वे बोले।

'हां, वह तो है नीम हकीम खतरे जान।' मैंने कहा।

'लेकिन मेरे चिंतन ने मुझे अनेक परेशानियों और समस्याओं से मुक्ति का रामबाण नुस्खा उपलब्ध करा दिया है। यूं कहें कि यह एक नई चिकित्सा पद्धति है,जो मैंने खोज निकाली है।' साधुरामजी ने कहा।


'वाष्प चिकित्सा, चुंबक चिकित्सा, स्पर्श चिकित्सा, एक्यूपंचर, इलेक्ट्रो चिकित्सा, आयुर्वेद, होम्योपैथी, एलोपैथी की तरह ही यह चिकित्सा पद्धति भी मरीजों के लिए बेहद कारगर साबित होगी।' वे धाराप्रवाह बोल रहे थे। 

'यह कौन सी पद्धति है साधुरामजी, कहीं आप गधे के सींग तो नहीं खोज लाए हैं।'  मैंने चुटकी ली।

'भाई यह कोई गधे के सींग वाली बात नहीं है। यह बहुत असरकारी है लेकिन इसके विकास में सरकार का बड़ा योगदान है।'  उन्होंने आगे कहा, 'महात्मा बुद्ध को बोधिवृक्ष के नीचे सत्य मिला था, आर्कमिडीज बाथरूम से बगैर टावेल लपेटे बाहर भागे थे और मैं अपनी खोज के बाद ही दुर्घटना की वजह से तुम तक नहीं पहुंच सका। दरअसल इस खोज का बीज  उस वक्त पड़ा जब मैं अपने शहर की सड़कों पर गुजरता रहता था। कुछ सड़कों की स्थिति तो ऐसी थी कि गड्ढों के बीच उसे खोजना कठिन हो जाता था। जब दुर्घटना हुई, पैर पर प्लास्टर चढ़ा तो चिंतन का अवसर मिला। तब  इस चिकित्सा पद्धति का जन्म हो सका।' उन्होंने कहा।

'अब आप बता ही दें कि आखिर है क्या यह चिकित्सा पद्धति!'  मेरी अधीरता बढ़ती जा रही थी।

'तो सुनो!'  उन्होंने किसी दार्शनिक की तरह अपना चेहरा नीचे से ऊपर उठाया और कहा, 'हमारे शहर की सड़कों पर मरीज को वाहन यात्राओं के नियमित डोज देना ही इस पद्धति का मूल मंत्र है।' 

'वह कैसे?'  मैंने पूछ लिया।

'मरीज पुरानी कब्ज से परेशान हो उसे शहर की विशिष्ट सड़क पर पांच दिन नियमित स्कूटर यात्रा के लिए परामर्श दिया जाए, छठे दिन वह स्वयं को हल्का महसूस करने लगेगा। किसी मरीज की प्रसूति में विलंब हो रहा हो और शल्य क्रिया संभव न हो तो ऑटो रिक्शा से किसी दूरस्थ चिकित्सालय ले जाएं, सामान्य प्रस्तुति सहज रूप से संपन्न कराई जा सकती है। कोई व्यक्ति बचपन से हकलाता हो, बोलने में शब्द गले में ही अटक जाते हों, उसे एक माह तक शहर की विशिष्ट सड़क पर तेज गति से मोटर चलाने का परामर्श दें, शब्द ही क्या चित्कार निकलने लगेगी। अगर डॉक्टर ने शल्य क्रिया के दौरान गलत हड्डियां जोड़ दी हो तो शहर की सड़कों पर तेज गति से मोटरसाइकिल चलाने का परामर्श दें, अपने आप हड्डी सही स्थान पर बैठ जाएगी। स्नायु विकार और पुराने सिर दर्द में लगातार पन्द्रह दिनों का स्कूटर चालन लाभ पहुंचाता है। शरीर की अकड़न, कान से कम सुनाई देना जैसी समस्याओं में भी शहर की सड़कों से वाहन यात्रा के निश्चित डोज लाभप्रद हो सकते हैं। डॉक्टरों की थोड़ी सी सूझबूझ और यात्रा की प्रामाणिक खुराक का परामर्श मरीजों को अनेक कष्टों से मुक्ति प्रदान करवा सकता है।' साधुरामजी किसी मेडिकल कॉन्फ्रेंस के मुख्य वक्ता की तरह बोले जा रहे थे, जहां मैं अकेला सैकड़ों डेलीगेट्स का प्रतिनिधित्व कर रहा था। 

'और हां शहर की ऐसी सड़कों का नामकरण भी कनिप-वन, कनिप -2, कनिप -10 आदि  किया जा सकता है।'

'यह कनिप 1,2,3 क्या है?'  मैंने पूछ लिया। 'कनिप यानी 'कष्ट निवारण पथ'। इन सड़कों की गुणवत्ता के आधार पर इनकी रोग निवारक क्षमता का आकलन करके इनका नामकरण किया जा सकता है, जैसे दवाइयों का होता है सिपलॉक्स 100 विक्स 500 एविल 5 आदि।' उन्होंने स्पष्ट किया। 

मैंने साधुरामजी से विदा ली। घर लौटते हुए सोच रहा था कि चिकित्सा विज्ञान में एक गैर चिकित्सकीय व्यक्ति के योगदान के लिए क्या साधुरामजी का नाम 'सर शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार' के लिए प्रस्तावित करना उचित नहीं होगा?


ब्रजेश कानूनगो

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