Wednesday, February 28, 2024

आओ जोड़ने पर जोर लगाएं

आओ जोड़ने पर जोर लगाएं

जोड़ने का उपक्रम हर कोई करता आया है। देश जोड़ने के लिए पद यात्राएं और मन जोड़ने के लिए भीतर का द्वेष बाहर निकालना पड़ता है।

जोड़ने के लिए कुछ तोड़ना भी पड़े तो लोग कोई कसर नहीं छोड़ते। बनी बनाई सरकार को भी विपक्ष की पार्टियां सत्ताधारियों को अपने में जोड़कर तोड़ डालने में संकोच नहीं करतीं। सरकार को बचाने में भी ऐसा ही कुछ जोड़तोड़ हमेशा से होता रहा है।

आज थोड़ा सकारात्मक ही बात करते हैं। तोड़ने की बजाए थोड़ी जोड़ने की क्रिया को समझने की कोशिश करते हैं।


बिना जोड़ लगाए कोई बात बनती नहीं। जोड़ना बहुत जरूरी है। यह कोई नई बात नहीं है। बिना जोड़ लगाए कोई बात बनती नहीं।  प्रभु राम के लंका प्रवेश को सुगम बनाने के लिए वानरों ने बिना किसी साधन के मात्र पत्थर से पत्थर जोड़कर सेतु निर्मित कर दिया था। आज तो ऐसे ऐसे पदार्थ बाजार में उपलब्ध हुए हैं कि सब कुछ जोड़ा जा सकता है। हाथियों से खींचकर भी कपलिंग तोड़े नहीं जा सकते। हरियाणा का लकड़ा पंजाब के पीतल से जुड़ जाता है और कर्नाटक का ग्रेनाइट राजस्थान के मार्बल से।


बोलचाल की भाषा में कहें तो ’कपलिंग’ चाहे जीवन की कठिन डगर पर निकले स्त्री-पुरुष के बीच दाम्पत्य का हो या लोहे की चिकनी पटरियों पर फिसलती तेज रफ़्तार रेलगाड़ी के डिब्बों के बीच के लीवर का, इनकी मजबूती ही सुखद यात्रा की गारंटी होती है। इस कपलिंग में की गयी ज़रा-सी लापरवाही रेलगाड़ी को दो हिस्सों में विभक्त कर देती है।


सच तो यह है कि बिना जोड़ लगाए कोई बात बनती नहीं। जोड़ना बहुत जरूरी है। जोड़ लगाए बगैर कोई फर्नीचर भी तैयार नहीं किया जा सकता। कुर्सी भी नहीं बनाई जा सकती। जरा देखिए, सत्ता की कुर्सी के लिए तो राजनीतिक दलों को कितनी कपलिंग करना पड़ती हैं। कपलिंग बोले तो गठबंधन। कई बार तो ऐसी कपलिंगों में कोई मेल ही नहीं होता, मजबूरी होती है। प्रजातंत्र की रेल दौड़ाने के लिए बेमेल कपलिंग भी करना पड़ जाती हैं। लोकतंत्र की गाड़ी फिर जहां तक पहुँच जाए... जब की तब देखेंगे। कपलिंग टूटेगा तो नए लीवर लगाकर आगे का सफ़र पूरा कर लिया जाएगा। चिंता में अभी से दुबले होने से क्या फ़ायदा।


चीजों के जुड़ाव में कड़ियों का बहुत महत्त्व होता है। रेल डिब्बों को कड़ियों से कपलिंग किया जाता है। जब तक कड़ियाँ आपस में नहीं जुड़ती निर्माण को विस्तार नहीं मिलता।

रेलगाड़ी बनती है, मकान हो या देश, कड़ी से कड़ी मिलती है तब ही दिखाई देता है कि भवन बन रहा है, देश बन रहा है। ईंट से ईंट मिलती है तो दीवार खडी होती है। आदमी से आदमी जुड़ता है तो देश खडा होता है।


कई कड़ियाँ होती हैं जिनसे आदमी से आदमी जुड़ता चला जाता है।  प्रेम, सौहार्द , भाई चारे और शान्ति में जो यकीन रखते हैं वे हमेशा इसी कोशिश में लगे रहते हैं कि कड़ियाँ जुडी रहें। अपने अपने हाथों की कड़ियाँ जोड़कर मानव श्रंखलाएं बनाते हैं, मगर विघ्न संतोषी सांड हर क्षेत्र में बहुतायत से पाए जाते हैं। कुछ निरंकुश सांड अक्सर इन शांतिप्रिय लोगों के बीच घुस आते हैं एक दूसरे का हाथ थामें लोगों की कड़ियों को तोड़ने के उपक्रम में उत्पात मचाने लगते हैं। इसके बावजूद विभिन्न भाषाओं, धर्मों, रीति रिवाजों और संस्कारों के इतने बड़े देश में भी ऐसी अनेक कड़ियाँ हैं जिन्होंने राष्ट्र को एक साथ जोड़ रखा है।


हर हाल में यह जरूरी होगा कि जोड़ने वाली हरेक कपलिंग को मजबूती देने का हर संभव उपाय सुनिश्चित किया जाए। किसी ने कहा भी है किसी चीज को तोड देना बहुत आसान होता है लेकिन जोड़ना बहुत मुश्किल काम है। जीवन में विवाह हो,लोकतंत्र में राजनीति की रेल हो या देश दुनिया के हालात, ऐसी ही कपलिंग से सुचारू संचार संभव हो पाता है। रहस्यों के राज तक पहुंचने के लिए कई कड़ियों को जोड़ना जरूरी होता है। हाथ से हाथ जोड़ते हुए लोगों तक पहुंचने में सफलता मिलती है। दिल के दरिया मिल जाते हैं तो सौहार्द्र का सागर लहराने लगता है। बस ध्यान इतना जरूर रखना पड़ता है कि सभी कड़ियों की मजबूत कपलिंग करने में कोई कसर न रहे। बाकी तो जो है सो है।


ब्रजेश कानूनगो

No comments:

Post a Comment